गुरुनानक देव जी उपदेश देते हुए एक गांव से दूसरे गांव तक अपने कुछ शिष्यों के साथ यात्रा करते रहते थे। एक बार इसी तरह घूमते-घूमते, एक गांव में पहुंचे। रात होने को थी तो उसी गांव में रुकने का निर्णय लिया गया। गांव के निवासियों ने उनका स्वागत बड़े धूमधाम से किया। जब वे वहां से चलने लगे तो आशीर्वाद स्वरूप उन्होंने कहा, उजड़ जाओ। इसी तरह उपदेश देते-देते शाम को एक अन्य गांव में पहुंचे, वहां के लोग बहुत बुरी प्रवृति के लोग थे। गांव वालों ने गुरुनानक जी के गांव में पहुंचते ही, उनसे दुर्व्यवहार करना आरंभ कर दिया। गुरुनानक जी को कटु वचन कह कर अपमानित किया। गुरुनानक जी जब गांव से चलने लगे, तो उन्होंने ग्रामवासियों को संबोधित करते हुए कहा, आबाद रहो, यहीं खुशहाल रहो। एक शिष्य, जो बड़े ध्यान से गुरुनानक जी के वचनों को सुन रहा था, उसने पूछा, भगवन, यह क्या? जिन्होंने आपको सम्मान दिया, आपकी खूब आवभगत की, उन्हें आपने उजड़ने का और जिन्होंने आपका अपमान किया, आपको कटु वचन बोले, उन्हें आपने आबाद और खुशहाल रहने का आशीर्वाद दिया, ऐसा क्यों? गुरुनानक जी ने कहा, अच्छे लोग घर छोड़कर जहां भी जाएंगे, वहां सुरभि फैलाएंगे, खुशियां बांटेंगे और दुष्ट और बुरी प्रवृति के लोग एक जगह ही सिमट कर रहें, वही अच्छा है, अन्यथा अनर्थ हो जाएगा, ये जहां भी जाएंगे वहीं अपनी कटुता और द्वेष ही फैलाएंगे। संतो के वचन, उनकी दूर दृष्टि पर आधारित होते हैं। शिष्य गुरुनानक जी का उत्तर सुनकर, उनके समक्ष नतमस्तक हो गया। -प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा