बिहार के मुजफ्फरपुर में हाई स्कूल के एक क्लासरूम में हुई एक गंभीर घटना ने एक बार फिर से शिक्षा के मंदिर को शर्मसार कर दिया है। यहां दो छात्रों के बीच हुई मारपीट ने एक छात्र, सौरभ, की जान ले ली। यह घटना केवल एक व्यक्तिगत हत्या की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज के गिरते मानवीय मूल्यों और नफरत की बढ़ती फसल का एक चिंताजनक प्रतीक है। जब स्कूल जैसे सुरक्षित स्थान पर भी इस प्रकार की घटनाएं होने लगें, तो यह हमारे समाज की गंभीरता को उजागर करती है और यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं।
विगत कुछ वर्षों में, भारत में राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक नफरत का बीजारोपण तेजी से हुआ है। विभिन्न समुदायों और समूहों के बीच बढ़ती दरारें हमारे समाज में हिंसा और अशांति को बढ़ावा दे रही हैं। जब युवा पीढ़ी को इस तरह के नफरत के उदाहरण देखने को मिलते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि वे इसे अपने व्यवहार में अपनाने लगते हैं। एक अध्ययन से यह पता चलता है कि नफरत की भावनाओं को बढ़ाने में मीडिया और सोशल मीडिया का भी योगदान है। हिंसा और नफरत के मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, जो बच्चों के मन में नकारात्मक सोच का विकास करता है। जब बच्चे अपने आसपास के वातावरण में घृणा और हिंसा के उदाहरण देखते हैं, तो यह उनके मन में एक नकारात्मक छवि को स्थापित करता है।
भारत की शिक्षा प्रणाली, जो ज्ञान और विवेक का प्रसार करने का कार्य करती है, उसमें भी गहरी खामियां हैं। स्कूलों में हिंसक घटनाएं होना इस बात का संकेत है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं, बल्कि बच्चों में सहिष्णुता, नैतिकता और सहानुभूति का विकास करना भी होना चाहिए। इसके अलावा, स्कूलों में शिक्षकों का प्रशिक्षण भी आवश्यक है।
शिक्षकों को यह समझना होगा कि वे केवल ज्ञान का प्रसार नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे बच्चों के मानसिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जब शिक्षक अपने छात्रों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा नहीं देते हैं, तो यह स्थिति गंभीर हो जाती है। इस घटना में सरकार की नाकामी भी एक बड़ा मुद्दा है। शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं। जब स्कूलों में सुरक्षा व्यवस्था का अभाव होता है और छात्रों के बीच आपसी विवादों को सुलझाने के लिए कोई प्रभावी प्रणाली नहीं होती, तो यह सरकार की विफलता को दशार्ता है।
सरकार को चाहिए कि वह स्कूलों में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करे। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षकों को बच्चों के बीच आपसी विवादों को सुलझाने के लिए उचित प्रशिक्षण दिया जाए। इसके साथ ही, छात्रों को संवाद का महत्व समझाना आवश्यक है ताकि वे अपनी भावनाओं को सही ढंग से व्यक्त कर सकें। इसके अलावा, सरकार को स्कूलों में मनोवैज्ञानिक परामर्श की व्यवस्था को अनिवार्य करना चाहिए। एक प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक की उपस्थिति छात्रों को अपनी भावनाओं को समझने और नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।
परिवार की भूमिका इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। माता-पिता को अपने बच्चों के लिए आदर्श बनना चाहिए। बच्चों को यह सिखाना होगा कि नफरत और हिंसा का कोई स्थान नहीं है। जब परिवार में माता-पिता अपने बच्चों को सिखाते हैं कि किसी भी समस्या का समाधान हिंसा नहीं है, बल्कि संवाद और सहिष्णुता से होना चाहिए, तो बच्चे उसी के अनुसार विकसित होते हैं। समाज को भी इस दिशा में जागरूक होना होगा। स्थानीय समुदायों में आपसी मेलजोल और संवाद बढ़ाने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। इसके अलावा, स्कूलों और कॉलेजों में विविधता और समर्पण पर आधारित कार्यक्रम आयोजित करने से बच्चों में आज के युग में मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव अत्यधिक बढ़ गया है। नफरत और हिंसा के मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, जिससे युवा पीढ़ी में नकारात्मक सोच का विकास होता है। जब बच्चे अपने आसपास नफरत और हिंसा के उदाहरण देखते हैं, तो यह उनके मन में गहरी छाप छोड़ता है। इस संदर्भ में, मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। उसे नफरत के बजाय समाज में सकारात्मकता फैलाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे कार्यक्रमों और समाचारों का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए, जो सहिष्णुता और प्रेम का संदेश दें।
इस घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या हम अपने बच्चों को एक सुरक्षित और प्रेमपूर्ण वातावरण दे पा रहे हैं? जब समाज नफरत की बुनियाद पर खड़ा हो जाता है, तो उसका हश्र वही होता है, जो हमने देखा है। अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर इस समस्या का समाधान करें। अंत में, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बच्चे नफरत नहीं, बल्कि प्रेम और सहिष्णुता का पाठ पढ़ें। शिक्षा, परिवार और समाज के सभी स्तरों पर एक सकारात्मक बदलाव की आवश्यकता है। अगर हम अब भी इस दिशा में कदम नहीं उठाते हैं, तो हम एक और गंभीर घटना का सामना करने के लिए तैयार रहें।
जब तक हम समाज में नफरत को खत्म करने के लिए संगठित प्रयास नहीं करेंगे, तब तक हम एक बेहतर भविष्य की उम्मीद नहीं कर सकते। यह हमारे युवा पीढ़ी के भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा है, और हमें इसे हर कीमत पर रोकना होगा। तभी हम अपने समाज को एक सुरक्षित और सहिष्णुता से भरा बना सकते हैं।