Monday, May 5, 2025
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दयालु सुभाष

 

Amritvani 10


यह सुभाषचंद्र बोस के बचपन की घटना है। एक दिन उनकी मां प्रभावती देवी उनके अध्ययन कक्ष में आर्इं। सुभाष कमरे में नहीं थे। प्रभावती देवी ने देखा कि चीटियों की लंबी कतार सुभाष की मेज से होती हुई किताबों की अलमारी की ओर जा रही है। उन्होंने फर्श और अलमारी के चारों तरफ ध्यान से देखा। वहां पर चीटियों का आना-जाना आश्चर्यजनक था। प्रभावती देवी ने सोचा कि हो सकता है कि अलमारी में कोई कीड़ा-मकोड़ा मर गया हो। इस अनुमान से उन्होंने अलमारी खोली और किताबें उलट-पलट कर देखने लगीं। तभी पुस्तकों के पीछे दो मीठी सूखी रोटियां पड़ी दिखीं। चीटियां रोटियों के कण तोड़-तोड़कर ले जा रही थीं। मां को समझते देर न लगी कि अवश्य ही रोटियां उनके बेटे ने किसी खास कारण से रखी होंगी। तभी सुभाष आ गए। मां उसे देखकर बोली, बहुत लापरवाह हो गया है तू। लगता है तेरा दिमाग खराब भी हो गया है। तूने उस अलमारी में रोटियां क्यों डाल रखी थीं? सब जगह चीटिंयां ही चीटिंयां हो गई हैं। सुभाष पहले चुप रहे, फिर भरे गले से कहा, तुमने वे रोटियां फेंक दी न मां? ठीक ही किया। अनायास ही उनकी आंखें छलछला आई। फिर उन्होंने कहा, बात यह है कि मैं रोज अपने खाने से दो रोटियां बचाकर एक बूढ़ी भिखारिन को दिया करता था। वह मेरे स्कूल के रास्ते में खड़ी होती थी। कल जब मैं रोटियां देने गया, तो वह अपनी जगह पर नहीं थी। इसीलिए उसके हिस्से की रोटियां मैंने यहां रख दीं कि फिर किसी समय जाकर दे आऊंगा। मैं अभी वहां गया, तो पता चला कि उस बेचारी का स्वर्गवास हो गया है। प्रभावती देवी एकटक सुभाष को देखने लगीं। सुभाष का यह दया भाव जीवन भर बना रहा।


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