- ऐसे वाहन जो सरकार से केवल कृषि कार्यों के लिए स्वीकृत
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: महज तीन हजार के लालच में आरटीओ के कुछ अफसर मौत का लाइसेंस बांट रहे हैं। उनकी कारगुजारी से सूबे की योगी सरकार को भी हर माह करोड़ों रुपये के राजस्व का फटका लग रहा है। ऐसे वाहन जो सरकार से केवल कृषि कार्यों के लिए स्वीकृत हैं, उन्हें व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए महज हजार रुपये माह लेकर पूरे महानगर में इस्तेमाल करने की छूट दे दी गई है। ऐसा करके मेरठ में आरटीओ के पीटीओ (पैसेंजर टैक्स आॅफिसर) सरीखे अधिकारी लखनऊ में बैठे उच्च पदस्थ अफसरों की आंखों में भी धूल झोंकने का काम कर रहे हैं।
आरटीओ के पीटीओ इस कच्चे लालच के चलते अब तक कई की जान जोखिम में डाली जा चुकी है। इनका यह शर्मसार करने वाला कारनामा जानलेवा भी साबित हो चुका है, लेकिन अफसरों पर इसका फर्क नहीं पड़ रहा। वे ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को व्यवसायिक प्रयोग में उतारकर पूरे सिस्टम को डुबोने मेें लगे हैं। कमिश्नर और डीएम सरीखे प्रशासन के बडेÞ अधिकारियों की बदौलत जो सिस्टम बना है, आरटीओ के कुछ अफसरों व उनके साथ फील्ड का स्टाफ उसे बेपटरी कर देता है।
अवैध ही नहीं, ओवरलोड भी, फिर भी अफसर खामोश
शहर में कुछ प्रमुख मार्गों, जिनमें बागपत रोड, सरधना रोड, रोहटा रोड व मोदीपुरम के रास्ते अल सुबह बड़ी संख्या में अवैध टैÑक्टर-ट्रॉलियां भट्ठों से र्इंटें, डस्ट व मिट्टी तथा गोदाम से सीमेंट लोड कर दौड़ती देखी जा सकती है। जबकि सरकार ने टैÑक्टर-ट्रॉलियों को कृषि कार्यों के लिए प्रयोग की छूट दे रखी है। पर व्यवसायिक चीजों में जमकर इस्तेमाल हो रहा है। ऐसी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों की संख्या 300 से 500 तक आंकी जाती है।
हालांकि इनकी सही संख्या मालूम करने का सबसे अच्छा तरीका व रास्ता टोल पर लगे सीसीटीवी हैं। जहां से एक पल में इनकी सटीक संख्या मालूम की जा सकती है, लेकिन आज का विषय इनकी संख्या नहीं बल्कि इनकी वजह से रोड सेफ्टी को पलीता लगाते हुए टैÑक्टर-ट्रॉलियों से होने वाले हादसे हैं, जिन पर आरटीओ के प्रवर्तन दल के पीटीओ सरीखे अफसर परदा डाले हुए हैं। दरअसल हो यह रहा है कि आरटीओ के जो अफसर प्रवर्तन का काम देख रहे हैं,
आरोप है कि वो महज तीन हजार रुपये महीना चौथ लेकर ऐसे टैÑक्टर-ट्रॉलियों व अन्य वाहनों को खुलकर खेलने का मौका दे रहे हैं। अब शहर हो या देहात, शहर के भीतर के हिस्से हों या देहात के, हर जगह ऐसे ट्रैक्टर-ट्रॉलियां धड़ल्ले से किसी भी वक्त एंट्री कर सकती हैं। इन पर कहीं कोई रोक-टोक नहीं होती। एक तरह से इन्हें किसी भी वक्त एंट्री करने और हादसे करने का परमिट मिल जाता है।
रोक के बाद भी दौड़ रहीं बेरोकटोक
टैÑक्टर-ट्रॉली जैसे वाहनों को कृषि यंत्रों या वाहनों की सूची में शामिल किया है। सरकार ने इनके कारोबारी प्रयोग पर रोक लगायी हुई है। सरकार का मानना है कि खेती किसानी के काम में टैÑक्टर-ट्रॉली प्रयुक्त किए जाते हैं। इसी वजह से इन्हें भारी भरकम टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन आरटीओ की इन पर पूरा कृपा है। महज तीन हजार रुपये मासिक सुविधा शुल्क लेकर इन्हें र्इंट, सीमेंट, रेत और मिट्टी ढोने का व्यवसायिक लाइसेंस मिल जाता है।
व्यवसायिक कार्यों में प्रयुक्त किए जाने वाले ट्रैक्टर-ट्रॉलियों से यदि कामर्शियल की तर्ज पर टैक्स व जुर्माना वसूला जाए तो सूबे की सरकार को भारी भरकम राजस्व की प्राप्त हो सकती है, लेकिन आरटीओ अफसरों के निजी हित सरकारी खजाने का वजन बढ़ाने में आड़े आते हैं। इनसे हर माह करोड़ों के राजस्व का फटका लग रहा है।
पुलिस पर भारी पड़ रही आरटीओ की कारगुजारी
अवैध रूप से चल रही ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को लेकर आरटीओ के पीटीओ जैसे अफसरों की कारगुजारी शहर में सबसे ज्यादा टैÑफिक पुलिस के लिए मुसीबत बनती है। शहर की घनी आबादी व पुरानी आबादी वाले इलाकों में अवैध तरीके से टैÑक्टर-ट्रॉलियां पहुंचती हैं तो वहां मुसीबत खड़ी हो जाती है। इनकी वजह से जगह-जगह जब जाम लगता है तो मुसीबत ट्रैफिक पुलिस के स्टाफ पर टूटती है।
आखिर हादसों के लिए जिम्मेदार कौन?
तीन हजार में पूरे माह के लिए मारने ठोकने का लाइसेंस आरटीओ के पीटीओ जैसे अफसरों से हासिल करने वाले ऐसे टैÑक्टर-ट्रॉलियों की वजह से आए दिन हादसे भी होते हैं। उनकी चपेट में बेकसूर आते हैं। जब भी कोई हादसा होता है तो सवाल यही पूछा जाता है कि किसानी के कार्य यानि कृषि कार्य में प्रयुक्त ट्रैक्टर-ट्रॉली जिसको कृषि कार्य में गांव व खेतों पर होना चाहिए, वह भीड़ वाले घनी आबादी के इलाकों में कैसे आ गया। इसके लिए जिम्मेदार कौन?