बीते दिनों वाघ बकरी के मालिक पराग देसाई रोजाना आवारा कुत्तों की वजह से मौत की खबर अभी शांत नहीं हुई थी कि ऐसी कुछ खबरें और भी आ गर्इं। पराग देसाई की मौत पर देश भर में चर्चा हो रही है चूंकि यह एक हाई प्रोफाइल व्यक्ति से जुड़ा हुआ मामला है, लेकिन बता दिया जाए कि हमारे देश में हर रोज ऐसी सैकड़ों मौतें होती हैं। इस मामले को लेकर कई बार केंद्र व राज्य सरकारों को अवगत भी कराया जा चुका है। लेकिन जब भी कोई घटना होती है, उसके हफ्ते भर ही शासन-प्रशासन एक्शन में आता है और फिर वैसी ही स्थिति हो जाती है। कुछ समय पहले भी दिल्ली में एक प्रोफसर को कुत्तों ने नोच-नोच कर मार डाला था। दरअसल, ऐसी मौते किसी के द्वारा की गई हत्या नहीं मानी जाती, लेकिन यदि इसकी गंभीरता को समझा जाए तो यह संबंधित विभाग द्वारा हत्या ही माननी चाहिए क्योंकि आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने के लिए एक अच्छा खासा बजट होता है, लेकिन फिर भी इस पर काम नहीं होता। कई बार तो ऐसी खबरें सामने आती हैं कि छोटे बच्चों को भी कुत्तों ने नोच कर खा लिया। मानव जीवन की अप्राकृतिक हानि बहुत तकलीफ देती है। हम इसके लिए न जाने क्यों गंभीर नही हैं? कई जगह तो ऐसी हैं जहां स्ट्रीट डॉग्स की वजह से लोगों ने उस रास्ते से जाना ही बंद कर दिया। बावजूद इसके निगम इस पर कोई भी एक्शन लेने को तैयार नहीं है। बीते दिनों एक खाना देने वाले डिलीवरी ब्वॉय के पीछे कुत्ते पड़ गए, जिसकी वजह से उससे अपनी मोटरसाईकिल तेज भगाई और उसका बैलेंस नहीं बन पाया, जिससे बाइक खंभे में जाकर टकराई और वह वहीं मर गया। इस तरह की सारी घटनाओं को लेकर प्रश्न यही बनता है कि क्या यह प्राकृतिक मौत मानी जाए या सकारी विभाग द्वारा हत्या? एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स के एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा आवारा कुत्तों के हमले भारत में होते हैं। कुत्ता काटने के कारण हुई मौतों में करीब 36 फीसदी लोगों की मौत रेबीज की वजह से होती है, जिनमें से अधिकांश मामले तो रिपोर्ट ही नहीं होते। भारत में सबसे ज्यादा आवारा कुत्ते हैं और हमारे यहां ऐसा कानून है कि आवारा कुत्तों को मारा नहीं जा सकता, जिसकी वजह से इनकी संख्या में लगातार वृद्धि होना जारी है और इससे मानव जीवन पर संकट बना हुआ है।
आवारा पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जान जा रही है और इसके बचाव लिए सरकारों के पास कोई भी प्लान नहीं हैं। रात होते ही आवारा पशुओं, जिसमें गांय, सांड व बैल शामिल हैं, इनसे छुटकारा पाने के लिए पशुओं को गांववासी गांव की सीमा से दूर खदेड़ देते हैं और अंधेरे का फायदा उठाकर लोग पशुओं के झुंड को सड़कों पर ही छोड़कर चले जाते हैं, जबकि वो इस बात से भली-भांति अवगत होते हैं कि इन पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जानें जाती हैं। इस मामले में प्रशासन की ओर दलील दी जाती है कि वह कई बार गांव वासियों से कह चुके कि वह आवारा पशुओं को हाईवे पर न छोडेÞ, लेकिन इस पर कोई अमल नहीं करता। यहां प्रशासन की भी ढील मानी जाएगी, क्योंकि जब उनको भली-भांति पता है कि लोग आराम से नहीं मान रहे, तो उन्हें कानून के डर से समझाना चाहिए, क्योंकि मामला सीधे लोगों की जिंदगी से जुड़ा है। प्रशासन हमेशा सिर्फ यह कह कर अपना पलड़ा झाड लेता है कि हम उन्हें समझाते हैं उनके कान पर जूं तक नही रेंगती।
देश के जितने एक्सप्रेस-वे व हाईवे हैं, उन पर होने वाली मौतें की संख्या बहुत ज्यादा है। हमारी सरकार हाईवे के मामले में हर रोज नए कीर्तिमान बना रही है। बीते दिनों भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने पांच दिनों से भी कम समय में एनएच-53 राजमार्ग पर लगातार एक ही लेन में 75 किलोमीटर सड़क बनाने का नया रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया है। एनएचएआई को यह रिकॉर्ड महाराष्ट्र के अकोला से अमरावती के बीच चल रहे निर्माण कार्य के लिए मिला है। इस मार्ग पर प्राधिकरण ने 105 घंटे 33 मिनट के रिकॉर्ड समय 75 किलोमीटर हाईवे का निर्माण किया है, लेकिन यह तरक्की अधूरी इसलिए लगती है क्योंकि जिस वजह से देश के नागरिकों को सुविधा दे रहे हो और उस ही वजह से उनकी जान पर बात बन जाए तो क्या फायदा। आवारा पशुओं से हो रही दुर्घटना को लेकर भी नितिन गडकरी को नीति बनानी चाहिए। जो लोग आवारा पशुओं को हाईवे पर छोड़ देते हैं, उनके लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए और इसके लिए एक नया विभाग बनाकर पूरे मामले पर निगाह भी बनाए रखनी होगी।
हम आज हर तकनीकी से लैस हैं। डिजिटल युग में प्रवेश करने की बात भी करते हैं, लेकिन यहां हम क्यों हारते हुए नजर आ रहे हैं। यदि हमारी सरकार अपने आप को विकासशील देशों में गिनने लगी तो इस तरह की घटनाएं चांद पर दाग होने का महसूस कराती हैं। आश्चर्य और पीड़ा तो इस बात की होती है कि इस तरह की अप्राकृतिक मौतें हर रोज नहीं, बल्कि हर घंटे होती हैं। लेकिन इस पर एक्शन न होना बहुत विचलित सा कर देता है। विशेषज्ञों के अनुसार सड़क पर जो आवारा कुत्ते घूमते हैं, उन्हें कई-कई दिनों तक खाना नहीं मिलता। क्योंकि अब लोग घरों का कचरा कूड़ागाड़ियों में सूखे और गीले कचरे के तौर पर डालते हैं, जिससे कुत्ते भूखे रह जाते हैं। जबकि पहले लोग सड़क के किनारे व घर के बाहर खाना डाल देते थे, जिससे आवारा कुत्ते अपना पेट भर लेते थे। लेकिन कुछ घटनाओं में देखा गया जो लोग कुत्तों को खाना डालते थे, उन्होंने उन पर भी हमला कर दिया जिससे लोग अब ऐसा करने में डरते हैं। दोनों पहलुओं से परेशानी हो रही है, जिसका समाधान शासन-प्रशासन को निकालना चाहिए।