Wednesday, May 14, 2025
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देश भर की सैन्य छावनियों को बंद करेगा रक्षा मंत्रालय

  • रक्षा मंत्रालय का बहुत बड़ा बजट छावनियों पर खर्च होता है
  • नगर निगम में आने से लोगों को भूमि संबंधी कानूनों से मिलेगी मुक्ति

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: रक्षा मंत्रालय ने फंड बचाने को लेकर देश के 19 राज्यों में फैली 62 सैन्य छावनियों को खत्म करने की योजना बना रहा है। मंत्रालय का कहना है कि रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा छावनी क्षेत्रों के विकास पर खर्च हो रहा है। इन इलाकों को अब नगर निगम या नगर पालिकाओं में मिला दिया जाएगा। सिर्फ उस इलाके की जिम्मेदारी सेना की होगी जहां सैनिक रहेंगे।

उन इलाकों को मिलिट्री स्टेशन बना दिया जाएगा। हिमाचल प्रदेश से इसकी शुरुआत भी हो गई है। जनवरी महीने में रक्षा मंत्रालय ने शिमला के खसयोल कैंट इलाके को नगर निगम में मिलाने को मंजूरी भी दे दी थी। इसी तरह बाकी के कैंटोनमेंट को भी खत्म किया जाना है।

सेना द्वारा छावनियों को खत्म करने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय के पास भेजा गया है। अभी तक छावनी परिषद के नागरिकों को राज्य सरकार की योजनाओं का सीधा लाभ नहीं मिल पाता था। लेकिन अब उन्हें सरकार की सभी योजनाओं का फायदा मिल सकेगा। छावनी के नागरिकों को नए भवनों के निर्माण, भवन की ऊंचाई बढ़ाने, वाणिज्यिक निर्माण और कन्वर्जन, सफाई, सीवरेज, रोशनी, सड़क के लिए सेना के पास नहीं जाना पड़ेगा।

छावनियों में वित्तीय तथा भूमि संबंधी प्रतिबंध, विशेषकर आवासीय तथा वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए एक क्षेत्र है। छावनी बोर्ड का गठन छावनी अधिनियम 2006 के तहत किया गया है। रक्षा मंत्रालय के इस फैसले का असर आबूलेन, सदर, लालकुर्ती और रजबन पर पड़ेगा। ये इलाके नगर निगम में शामिल हो जाएंगे। कैंट बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष सुनील बाधवा ने बताया कि रक्षा मंत्रालय के नियम से करीब 50 हजार की आबादी पर असर पड़ेगा।

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यह एक सराहनीय कदम है। छावनी बंद होने से लोगों को बैनामे, भूमि संबंधी प्रतिबंध, कन्वर्जन आदि समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। इन छावनियों में से कई ऐसी भी हैं जो 200 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। इन्हें अंग्रेजों ने इसलिए बनाया था ताकि सेना को शहरों से दूर रखा जा सके। अब भारत सरकार इन्हें खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है।

सरकार का तर्क यह है कि छावनियों में रहने वाले नागरिकों को स्थानीय नागरिकों को मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। दूसरी तरफ सेना को भी इन छावनियों की व्यवस्था में अपने संसाधन खर्च करने पड़ते हैं। हिमाचल प्रदेश की खसयोल छावनी से इसकी शुरुआत हो चुकी है। इसके बाद राजस्थान के नसीराबाद छावनी में कार्रवाई शुरू होगी।

इन 62 छावनियों में से 56 अंग्रेजों के जमाने की हैं जबकि 6 को आजादी के बाद बनाया गया है। सेना के पास पूरे देश में लगभग 18 लाख एकड़ जमीन है। इसमें से लगभग 1.61 लाख एकड़ जमीन देश भर में फैली छावनियों के पास है। इस जमीन और उस पर बनी छावनियों की देखभाल में रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है। साथ ही ये छावनियां अब बड़े शहरों के बीचोंबीच आ गई हैं लेकिन यहां रहने वाले नगर निकायों की सुविधाओं से वंचित होते हैं।

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