Friday, January 10, 2025
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एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद भी लापरवाह बने हैं आरटीओ

  • चंद सिक्कों के लिए शहर की फिजा में आरटीओ अफसर घोल रहे जहर
  • रोक के बावजूद शहर में बेरोकटोक दौड़ रहीं गाजियाबाद-दिल्ली से खदेड़ी गाड़ियां

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: दिल्ली-एनसीआर में घुल रहे प्रदूषण के जहर को लेकर भले ही एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल) व सुप्रीम कोर्ट सख्त हों, लेकिन मेरठ के आरटीओ और कार्यालय की पीटीओ सरीखे दूसरे अधिकारी पूरी तरह से लापरवाह बने हुए हैं। तमाम आरटीआई एक्टिविस्ट का आरोप है कि आरटीओ व उनके अफसर चंद सिक्कों के लिए वातावरण को जहरीला बनाने पर तुले हुए हैं। सांसों में जहर घोला जा रहा है।

कुछ आरटीआई एक्टिविस्ट आरटीओ व पीटीओ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में घसीटने की बात कह रहे हैं। उन्होंने जानकारी दी कि इसका मसौदा जुटाया जा रहा है। नाम न छापे जाने की शर्त पर उन्होंने बताया कि अगले माह आरटीओ व आरटीओ (प्रवर्तन) को पक्षकार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में आरटीआई दायर की जाएगी। एक अन्य आरटीआई एक्टिविस्ट ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर किए जाने की बात कही है।

एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने जानकारी दी कि यह पूरा मामला आरटीओ व आरटीओ (प्रवर्तन) की गुरुग्राम, दिल्ली, नोएडा व गाजियाबाद से खदेडेÞ गए डीजल वाहनों को लेकर की जा रही कारगुजारियों से जुड़ा है। दिल्ली एनसीओर की आबोहवा खराब होने के बाद एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीओर में 10 साल की उम्र पूरी कर चुकी डीजल व 15 साल की उम्र पूरी कर चुकी पेट्रोल गाड़ियों की चलने पर रोक लगा दी है। इसके बाद ऐसे वाहनों को खदेड़ दिया गया। अब ऐसे तमाम वाहन आरटीओ के अधिकारियों की छत्रछाया में मेरठ में दौड़ रहे हैं।

प्रवर्तन दल की पीटीओ हैं बड़ी जिम्मेदार

जानकारों का कहना है कि इसको लेकर बड़ी जिम्मेदारी आरटीओ कार्यालय की पीटीओ की है, लेकिन जिस प्रकार से शहर की सड़कों पर ऐसे वाहन नजर आ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि पैसा बोलता है…वर्ना कोई वजह नहीं कि पीटीओ इन पर कार्रवाई ना करे।

प्रदेश परिवहन विभाग के आदेशों पर भारी पीटीओ के टोकन

एनसीआर इलाके में प्रदूषण के कारण हालात काफी मुश्किल हो रहे हैं। दिल्ली सरकार के बाद अब उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदूषण को लेकर कडेÞ निर्देश जारी किए हुए हैं। प्रदेश के परिवहन विभाग ने पूरे एनसीआर इलाके में 10 साल से पुरानी डीजल गाड़ियों पर रोक लगा दी है, लेकिन इस रोक के आदेश पर आरटीओ की पीटीओ का टोकन भारी पड़ रहे है।

वहीं, दूसरी ओर सूबे की योगी सरकार के परिवहन विभाग के रोक के आदेशों की बात की जाए तो ये आदेश नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, शामली और हापुड़ तक प्रभावी हैं। एनसीआर में नौ लाख ऐसे वाहन हैं, जो सांसों में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। मेरठ में ऐसे वाहनों को आरटीओ और पीटीओ का खुला संरक्षण हासिल है, का आरोप आरटीआई एक्टिविस्ट लगा रहे हैं।

20 हजार से ज्यादा पुराने वाहन बाहरी राज्यों के

जिले में 20 से 22 हजार से ज्यादा वाहन ऐसे हैं, जो बाहरी राज्यों में रजिस्टर्ड हैं और इनका संचालन यहां पर हो रहा है। इसमें दिल्ली व हरियाणा के नंबर के वाहन सबसे ज्यादा हैं। डीजल ट्रक तो 30 से 40 साल पुराने भी सड़कों पर दौड़ते मिल जाते हैं। डग्गामार बसें भी 10 साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं। 25 साल पहले बंद हो चुकी मेटाडोर तक कुछ रूट पर सवारियां ढोते देखी जा सकती हैं।

टोकन है तो नो टेंशन

इसको लेकर आरटीओ के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट में घसीटने की बात करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट सनसनीखेज खुलासा करते हुए बताया कि शहर की सड़कों पर इस प्रकार के वाहन दौड़ाने से पहले वाहन स्वामी के लिए पीटीओ या उनके स्टॉफ से टोकन लेना जरूरी होता है। यह टोकन दो से पांच हजार रुपये तक या फिर और भी ज्यादा प्रति माह की रकम देने के बाद मिल जाते हैं। उम्रदराज हो चुके जिन वाहनों के चालकों के पास ये टोकन होते हैं, उन्हें किसी प्रकार चेकिंग से नहीं गुजरना पड़ता और न ही उन्हें किसी प्रकार की कार्रवाई मसलन चालान या सीज होने का डर होता है।

…तो दलालों को पता है, आरटीओ को नहीं

आरटीओ आफिस में आने वाले लोगों का गाड़ियों से संबंधित काम कराने वाले कुछ दलालों ने नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि जो नोटिस पूर्व में तत्कालीन आरटीओ के कार्यकाल में जारी किया गया था। उसमें कहा गया था कि 31 मई 2019 तक यूएससी, यूएसएल, यूएसटी, यूएसडी, यूआरजे, यूटीजी, यूएचडी, यूपी-15ए, बी, सी, डी, एफ, टी, एटी, बीटी व सीटी सीरीज वाले वाहन जो 10 साल की आयु सीमा पूरी कर चुके हैं, उन्हें 30 दिन के अंदर एनसीआर क्षेत्र और उत्तर प्रदेश के प्रतिबंधित जनपदों को छोड़कर अन्य जनपदों में एनओसी लेनी होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस शख्स ने बताया कि यह भी हो सकता है कि उस नोटिस की वर्तमान आरटीओ को जानकारी तक ना हो।

मेरठ में दम तोड़ गया कानून

नियमानुसार 10 साल पुराने डीजल व 15 साल पुराने पेट्रोल वाहन अब शहर सड़क पर नहीं उतारे जा सकते, यह नियम बना दिया गया है, लेकिन शासन का यह कायदा कानून आरटीओ के अफसरों की कमाई के लालच में दम तोड़ रहा है। वाहन स्वामियों ने इन वाहनों को बेचने या दूसरे जिलों में रजिस्ट्रेशन कराने के लिए एनओसी नहीं ली तो अधिनियम की धारा 53(1) के तहत रजिस्ट्रेशन स्वत: रद्द हो जाएगा।

वायु प्रदूषण से लोगों का दम घुट रहा है। एनसीआर तक इसकी आंच पहुंच रही है। लोग बीमार हो रहे हैं, इसको देखते हुए एनजीटी ने दिल्ली समेत एनसीआर में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को काफी पहले प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन सच्चाई ये है कि अकेले मेरठ में ही 80 हजार से ज्यादा प्रतिबंधित वाहन धुआं उगलते दौड़ रहे हैं।

50 हजार प्रतिबंधित वाहन दौड़ रहे शहर में

आरटीओ से एक सेवानिवृत्त कर्मचारी ने नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि 31 अक्तूबर 2007 से पहले के 11 हजार 226 डीजल वाहन ऐसे हैं, जो अभी तक एनओसी लेकर बाहर नहीं गए हैं। ये वाहन शहर और आसपास दौड़ रहे हैं। इसके अलावा 15 साल पुराने 42 हजार से ज्यादा पेट्रोल वाहन है, जो शहर में दौड़ रहे हैं।

दोनों श्रेणियों के 55 हजार प्रतिबंधित वाहन एनजीटी के आदेशों को हवा में उड़ाते हुए शहरवासियों का दम घोट रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं कि आरटीओ इससे बेखबर हों, पता सब को, लेकिन बात तो तब है कि जब ऊपरी कमाई का लालच छोड़कर जिस काम के लिए सरकार ने भेजा है अफसर वो काम करें।

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