Tuesday, July 9, 2024
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मधुमेह से छिन सकती है आंखों की रोशनी

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60 वर्षीय नंदकुमार 8 वर्षों से मधुमेह (डायबिटीज) के मरीज हैं। पिछले कई दिनों से उनकी शुगर भी नियंत्रण में नहीं है। एक शाम उनको लगा कि उनकी आंखों के आगे अंधेरा सा छा रहा है। फिर कुछ देर ठीक रहा और थोड़ी देर बाद फिर वही स्थिति हो गई। दो दिनों के बाद अचानक उन्हें लगा कि उन्हें नहीं के बराबर यानी बहुत ही कम दिख रहा है। तुरंत चिकित्सक से संपर्क किया गया।

जांच से मालूम हुआ कि मधुमेह का असर आंख पर पड़ा है और उनका रेटिना क्षतिग्रस्त हो गया है। चिकित्सक की सलाह पर शहर के बाहर विशेषज्ञ रेटिना सर्जन से संपर्क किया गया। रेटिना सर्जन के इलाज से उनकी आंखों की रोशनी को बचाया जा सका वरना वे नेत्रहीन हो जाते।

मधुमेह यदि ज्यादा पुराना हो या अनियंत्रित हो तो उसका कुप्रभाव आंखों पर अवश्य पड़ता है। इसे चिकित्सा शास्त्र में ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ कहा गया है। इस जटिलता, जो मधुमेहजन्य है, में आंखों के परदे, जिसे रेटिना कहा गया है, की रक्त वाहिनियां नष्ट हो जाती हैं और इससे रक्त बहने लगता है या रिसाव होने लगता है। यह जटिलता समाज के उच्च वर्ग में अधिक देखने को मिलती है। ऐसे में हरेक मधुमेह रोगी को चाहिए कि वह वर्ष में दो बार अपना नेत्र परीक्षण अवश्य करवाएं।

दृष्टि पर कैसे-कैसे प्रभाव

एक तरह की रेटिनोपैथी तो अधिकतर लोगों में देखने को मिलती है। इसका कोई लक्षण या संकेत नहीं मिलता। इसमें रेटिना में सूजन आ सकती है तथा आंखों के पास गंदगी या मैल जमा हो सकती है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, आंख की इस छोटी से रक्तवाहिनी को काफी नुकसान झेलना पड़ता है। यह रेटिनोपैथी फैलती नहीं है। दूसरी तरह की रेटिनोपैथी में नई रक्तवाहिनियां रेटिना के आसपास बनने लगती हैं, जिससे रक्तस्राव होने लगता है।

इसमें कई बार व्यक्ति की दृष्टि चली जाती है। नई रक्तवाहिनियों के पनपने से रेटिना पर खिंचाव आ सकता है जिससे वह अलग भी हो सकती है। रेटिना की आगे की जैली में भी खून आ सकता है। जब रेटिना से द्रव्य बाहर निकलता है तो वह रेटिना के बीच ‘मैक्यूला’ पर आने लगता है। इसे ‘मैक्युलोपैथी’ कहा जाता है।

इसके अलावा मधुमेह के रोगियों में मोतियाबिंद भी जल्दी पनपता है। अल्प आय वर्ग में यह ज्यादा देखने को मिलता है क्योंकि उनका ज्यादातर कार्य सूर्य की रोशनी में होता है। रक्त संचार अव्यवस्थित व अपूर्ण होने के कारण आंखों को लकवा भी मार सकता है। मधुमेह के पुराने मरीजों की दृष्टि में शुरू-शुरू में धुंधलापन आता है, रेटिना की सतह तथा दृष्टि के लिए उत्तरदायी मुख्य नाड़ी ‘आॅप्टिक नर्व’ पर नई रक्त वाहिनियां बनने लगती हैं।

प्रमुख कारण

आंख की रेटिना पर कुप्रभाव का पहला महत्त्वपूर्ण कारण है मधुमेह कितने समय से है। एक चिकित्सकीय आंकड़े के अनुसार, करीब 10 वर्षों से मधुमेह के रोगी पर इसके होने की संभावना 50 फीसदी, 20 वर्षों से मधुमेह के रोगी पर 70 फीसदी तथा 3० वर्षों से मधुमेह के रोगी पर 90 फीसदी संभावना होती है। यदि मधुमेह के साथ उच्च रक्तचाप भी है तो संभावना और अधिक बढ़ जाती है।

  • गर्भावस्था में भी इसकी संभावना बढ़ जाती है।
  • यह स्थिति वंशानुगत भी होती है।
  • स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा यह स्थिति अधिक पाई जाती है।
  • रक्त शर्करा स्तर की नियमित जांच कराते रहें।

‘फंडस फ्लोरिसीन एंजियोग्राफी’ नामक विशिष्ट जांच से यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि लेजर तकनीक द्वारा उपचार की जरूरत कहां-कहां है। ‘आॅम्थालमोस्कोप’ नामक उपकरण द्वारा आंखों की नियमित जांच करवाएं।
इस प्रकार इस वैज्ञानिक जानकारी के साथ मधुमेह के रोगी अपनी आंखों की रोशनी को बचा सकते हैं क्योंकि अंधेपन के कारणों में इस स्थिति की विशेष भूमिका रहती है।

लेजर पद्धति से उपचार

लेजर फोटो कोएगुलेशन द्वारा लेजर बीम प्रभावित रेटिना पर डाली जाती है जिससे रक्तस्राव या रिसाव बंद हो जाता है, साथ ही दूसरी असामान्य रक्तवाहिनियों का बनना भी बंद हो जाता है। यह उपचार यदि रोगी को समय पर मिल जाए तो परिणाम अच्छे रहते हैं।

यदि रोग काफी ज्यादा बढ़ गया हो तो शल्यक्रिया द्वारा उपचार संभव है, जिसे ‘वीट्रेक्टॉमी सर्जरी’ कहा गया है। इसमें अलग हुए रेटिना को फिर जोड़ा जाता है। एक नया इंजेक्शन वीईजीएफ आंखों में लगाया जाता है जिसके प्रभाव से इसके अतिरिक्त अन्य खामियां भी ठीक हो जाती हैं। इसके साथ-साथ लेजर द्वारा भी उपचार लिए जाने के अच्छे परिणाम आते हैं।

बचाव

  • मधुमेह हो या उच्च रक्तचाप या दोनों, इन्हें हर हालत में नियंत्रित रखें, चाहे दवा से या परहेज से।
  • अपने रक्तशर्करा व रक्तचाप की नियमित जांच कराएं।
  • धूम्रपान या तंबाकू का सेवन त्याग दें।
  • हरी सब्जियों का अधिक सेवन करें।
  • खुराक में विटामिन ए, विटामिन सी व विटामिन ई आदि का भरपूर सेवन करें।
  • फिश या फिशआॅयल का सेवन करें।

नरेंद्र देवांगन


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