विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों के स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेस टेस्ट लेने का फैसला किया है। इस फैसले का मतलब है कि अब 12वीं के नंबरों से नहीं बल्कि सीयूईटी टेस्ट के आधार पर छात्रों का देशभर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एडमिशन होगा। यूनिवर्सिटी चाहे तो कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेस टेस्ट के साथ एक न्यूनतम कट-अप भी रख सकता है। इस फैसले का देशभर में स्वागत किया जा रहा है वहीं कुछ विशेषज्ञ ने इसपर संदेह जताया है।
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सोशल साइटों पर भी इस फैसले को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है। लोगों द्वारा ये सवाल उठाया जा रहे हैं कि कहीं ये कॉमन एंट्रेस टेस्ट समस्या न बन जाएं। इस बारे में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर दिनेश सिंह ने कहा कि यूजीसी का यह फैसला स्वागत योग्य है। इससे तमाम स्टेट बोर्ड द्वारा किए जा रहे मनमानी पर रोक लगेगी। हालांकि मुझे संदेह है कि यह टेस्ट भी दूसरे एंट्रेस टेस्ट की तरह न बन जाएं जहां कुछ भी रचनात्मक नहीं है।
एंट्रेस एग्जाम ने शिक्षा, छात्रों और देश का काफी अहित किया है। एंट्रेस एग्जाम ने स्कूल के प्रबंधन, शिक्षा को बहुत हानि पहुंचाई है। बच्चे एंट्रेस एग्जाम के चक्कर में स्कूल के पाठ को ठीक से नहीं पढ़ते। इन एंट्रेस एग्जाम से बच्चों की सोच का विकास नहीं होता है और बच्चे कोचिंग में पढ़ाए पाठ को रट कर एंट्रेस एग्जाम पास कर लेते हैं। ऐसे में इन एंट्रेस एग्जाम में बच्चों की रचनात्मकता या गहरी सोच उजागर नहीं होती है।
वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी की गीता भट्ट ने कहा देश भर की बोर्ड परीक्षाओं में असमानता होती है और उनका मूल्यांकन भी अलग-अलग तरीके से होता है। ऐसे में जो बच्चे बहुत मेधावी होते हैं कट-अप में पीछे छूट जाते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा। देश भर के केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एक ही परीक्षा रखी गई है। अब छात्र अपनी पंसद के आधार पर कॉलेजों में दाखिला ले सकेंगे।
इस एंट्रेस एग्जाम का फायदा यह भी होगा कि इससे बच्चों को अपनी भाषा में पढ़ने और एंट्रेस एग्जाम देने का अधिकार मिलेगा, जिसका उल्लेख राष्ट्रीय शिक्षा नीति में किया गया है। हालांकि इस फैसले को लेकर चिंता भी जताई जा रही है।