उत्तर प्रदेश के बंटवारे की खबर एक बार फिर सुर्खियों में है। यद्यपि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया है कि उत्तर प्रदेश के बंटवारे की कोई योजना नहीं है और ऐसी भ्रामक खबरों को शेयर करने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही भी की जा सकती है, लेकिन इस बार मामला कुछ बदला हुआ है।भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी सरगर्मियां इसे और अधिक हवा दे रही हैं। वैसे उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग आजादी के तुरंत बाद से ही होती चली आ रही है। 1937 में अवध और ब्रज क्षेत्र को जोड़कर बनाया गया संयुक्त प्रांत 1950 में उत्तर प्रदेश बन गया। यह एक बड़ा राज्य था। सन 1953 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता रहे और बाद में प्रधानमंत्री बने चौधरी चरण सिंह समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 97 विधायकों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश को पृथक राज्य बनाने की मांग की थी। इसके अतिरिक्त पूर्वांचल से सांसद रहे विश्वनाथ गहमरी ने पूर्वांचल को अलग राज्य बनाने की मांग की थी। विश्वनाथ गहमरी ने पूर्वांचल की बदहाली का हवाला देते हुए यह मांग की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इसके लिए एक आयोग भी गठित कर दिया था, जिसने 1964 में अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी लेकिन इसके बावजूद भी उत्तर प्रदेश का बंटवारा नहीं हुआ।
पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त बुंदेलखंड के लोग भी अलग राज्य की मांग करते रहे हैं। आपातकाल के बाद सन 1977 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में छोटे राज्य बनाने की बात कही थी। 1978 में विधायक सोहन वीर तोमर ने विधानसभा में पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने के लिए निजी प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष रहे चौधरी अजीत सिंह लगातार पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग करते रहे।
उन्होंने हरित प्रदेश निर्माण के लिए काफी जनसभाएं भी कीं। सन 1989 में शंकरलाल मल्होत्रा द्वारा बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा बनाया गया। उन्होंने भी अजीत सिंह के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश को तीन हिस्सों में बांटने की वकालत भी की थी। फिल्म अभिनेता से राजनेता बने राजा बुंदेला ने भी बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग की थी। कांग्रेस द्वारा मांग पूरी न किए जाने के बाद उन्होंने बुंदेलखंड कांग्रेस का गठन किया था। वर्तमान में वह भाजपा में हैं और बुंदेलखंड विकास परिषद के उपाध्यक्ष भी हैं। वह भी यदा-कदा बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठाते रहते हैं।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा था। 21 नवंबर 2011 को मायावती ने विधानसभा में उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था, जिससे मामला अधर में अटक गया था। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का रुख हमेशा स्पष्ट रहा है कि वह उत्तर प्रदेश का कोई विभाजन नहीं चाहती। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए कई बार आंदोलन भी किया गया, लेकिन सड़क पर वह आंदोलन कारगर नहीं हुआ। पश्चिमांचल निर्माण संगठन के अध्यक्ष अजय कुमार बताते हैं कि उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है।
उन्होंने बताया कि विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश चीन में सबसे बड़े राज्य की जनसंख्या साढ़े दस करोड़ है, जबकि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या लगभग 23 करोड़ है। उन्होंने कहा कि यदि सहारनपुर को केंद्र में लिया जाए तब देश के 9 हाई कोर्ट उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट की अपेक्षा सहारनपुर से नजदीक है। उन्होंने बताया कि यदि सहारनपुर से उत्तर प्रदेश के अंतिम जनपद रॉबर्ट्सगंज तक जाया जाए तो इतने में पूरा पाकिस्तान पार करके कंधार तक पहुंचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि छोटा राज्य हमेशा विकास पथ पर अग्रसर रहता है।
हरियाणा की जनसंख्या लगभग ढाई करोड़ है और वहां की प्रति व्यक्ति आय उत्तर प्रदेश की प्रतिव्यक्ति आय से अधिक है। उत्तर प्रदेश में विदेशी निवेश बेहद कम है इसका भी एक कारण बड़ा प्रदेश होना है। 2 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश में विदेशी निवेशकों का 1 सम्मेलन भी हुआ था, लेकिन इसके बावजूद विदेशी निवेशक उत्तर प्रदेश में नहीं आए। इसका भी एक बड़ा कारण बड़ा प्रदेश होना है।
इस बार लोग प्रदेश के बंटवारे को उत्तर प्रदेश की राजनीति से जोड़कर भी देख रहे हैं। लोगों का मानना है कि भाजपा की अंदरूनी कलह भी उत्तर प्रदेश के बंटवारे में सहायक हो सकती है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऐसा होता है तो भाजपा विपक्षी दलों पर भी लगाम कस सकती है, लेकिन यह दूर की कौड़ी है।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण यह दर्शाता है कि सरकार उत्तर प्रदेश के बंटवारे के प्रति गंभीर नहीं है। अब देखना है कि यह शिगूफा विधानसभा चुनाव से पहले क्या गुल खिलाता है? बंटवारा होता है या यह भी महज एक अफवाह ही निकलता है जैसा 2019 में भी हुआ था। उत्तर प्रदेश का बंटवारा एक बड़ा वर्ग चाहता है जिसे छोटे प्रदेशों में विकास का रास्ता नजर आता है। भविष्य में क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी।