नीतू गुप्ता
डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का चलन आधुनिक युग की पहचान बनता जा रहा है। आधुनिक युग के माता-पिता की व्यस्तता के कारण ऐसे खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जा रहा है। कुछ डिब्बाबंद चीजों का सेवन सीधा किया जा सकता है, कुछ चीजों को बहुत कम समय में पकाया जा सकता है परन्तु आधुनिक शहरी खानपान के कई दुष्प्रभाव भी देखे जा रहे हैं जो हमारे और परिवार के लिए घातक हो सकते हैं।
आजकल बच्चों और युवा पीढ़ी में क्रध बढ़ता जा रहा है। दांत और आंखें अपनी उम्र से पहले यानी छोटी उम्र में ही खराब हो जाते हैं। बच्चों और महिलाओं में चिड़चिड़ेपन के अधिक होने से सहनशक्ति का अभाव भी बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक खुशी और सुन्दरता तो चेहरों से दूर ही होती जा रही है। इन सबका कारण है-खानपान की गलत आदतें और प्रदूषण।
आज के बच्चों को पैकेटबंद खाना मुंह से निकलते ही उपलब्ध हो जाता है जैसे चिप्स, नूडल्स, चाकलेट, बिस्किट, पेस्ट्री, पिजा, बर्गर आदि। पेय पदार्थों में कोल्ड ड्रिंक्स, पैक्ड जूस बच्चों और युवाओं की खास पसंद है। कुछ तो युवा पीढ़ी इन चीजों का सेवन ‘स्टेटस सिंबल’ के लिए करती है और कुछ बच्चे अधिकतर टीवी पर बार-बार उनके विज्ञापनों को देखकर माता-पिता को तंग करने लगते हैं। इन खाद्य पदार्थों को ऐसे आकर्षक तरीकों से पैक किया जाता है कि किसी का भी दिल उन्हें खाने के लिए मचल सकता है। स्कूल जाने वाले बच्चों में टॉफी, चाकलेट खाना तो एक आम आदत है। टमाटर सास का प्रयोग भी बच्चे बेतहाशा करते हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सुभाष शर्मा के अनुसार ऐसे में बच्चों को इन खाद्य पदार्थों के दुष्प्रभावों की जानकारी समय समय पर देते रहना चाहिए।
बाल रोग विशेषज्ञों के पास आने वाले बच्चों को मेडिकल रूप से समझाया जाना चाहिए। स्कूल कैन्टीनों में भी इन खाद्य पदार्थों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। अध्यापक भी बीच-बीच में ऐसे खाद्य पदार्थों को लाने वाले बच्चों को हतोत्साहित करें। माता पिता को भी इनका सेवन घर में नहीं करना चाहिए।
स्कूल भेजते समय बच्चों के लंच बॉक्स में ताजी सब्जी व रोटी या परांठा पैक कर के दें। पोहे, अण्डों के विभिन्न व्यजंन, भुनी मूंगफली, बादाम, मुरमुरे को मिला कर दें। पैक्ड जूस की जगह सप्ताह में एक बार ताजे फलों का जूस घर पर बनायें। सप्ताह में एक बार ताजी सब्जियों का सूप या दाल का सूप दें।
परिवर्तन हेतु बच्चों को घर की बनी पूड़ी आलू की सब्जी, पाव भाजी भी दे सकते हैं। बच्चों को ताजी चटनी और घर के बनी टमाटर की चटनी खाने की आदत डालें। संतुलित भोजन आपको और आपके परिवार को स्वास्थ्य और स्फूर्ति प्रदान करेगा। पढ़े लिखे माता पिता को खानपान के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
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बच्चों को सिखाएं कुछ जरूरी काम
छोटे-छोटे कामों की जानकारी होने पर बच्चे लड़का हो या लड़की, स्वावलंबी बनेंगे। बेटी के बेहतर भविष्य के लिए यह सब आना आवश्यक है, बेटे भी आत्मनिर्भर बनेंगे। बच्चों द्वारा किए कामों की प्रशंसा करें ताकि उनमें आत्मविश्वास बना रहे।
-अपने खिलौने उचित स्थान पर रखना।
-स्कूल से आने पर स्वयं स्कूल बैग रखना और पानी की बोतल के स्थान पर बोतल खाली कर रखना।
-अपने जूते उचित स्थान पर रखना, स्कूल के लिए यूनिफार्म बैल्ट, रूमाल, जुराब, टाई और जूते आदि निकालकर रात्रि को यथा स्थान पर रखिए।
-फ्रिज में खाली बोतलें भर कर रखना।
-रात्रि में डाइनिंग टेबल सजाना, खाने के बाद बर्तन रसोई मे ंरखना और टेबल आदि साफ करना।
-छुट्टी वाले दिन डस्टिंग में जाले उतारने, बुक शैल्फ साफ कराने में मां की मदद करना।
-धुलने वाले वस्त्र निश्चित स्थान पर रखना।
-थोड़े बड़े बच्चे सलाद काटकर और चाय बनाना आदि सीख कर अपनी मां की मदद कर सकते हैं।
-दालों और मसालों के नाम की पूरी जानकारी बच्चों को देनी चाहिए।
-बटन लगाना, कपड़े प्रेस करना, आवश्यकता अनुसार और आयु अनुसार सिखाना चाहिए।
-बाजार से छोटा मोटा सामान कहां से खरीदा जाता है, उसकी जानकारी देते रहें और आवश्यकता पड?े पर उनसे मंगायें।
-मैगी बनाना , अंडा ब्रेड तैयार करना, छोटे मोटे कार्यों में रसोईघर में मदद करना बच्चों को आना चाहिए।
-मां-बाप की उपस्थिति और अनुपस्थिति में आए मेहमान को उचित आदर सत्कार देना भी बच्चों को आना जरूरी है।
-टेलीफोन कैसे अटेन्ड किया जाये और संदेश कैसे नोट किया जाए, इस बारे में बच्चों को उचित तरीके से सिखाया जाना चाहिए।
-घर की सफाई कैसे की जाए, इसकी भी जानकारी बच्चों को देते रहना चाहिए।