मीना जैन छाबड़ा
हाय मेरा बच्चा कुछ खाता ही नहीं। यह वाक्य आज शहरी शिक्षित समृद्ध माताओं के मुंह से अक्सर सुनने को मिलता है, जिसके लिए बच्चे नहीं, सिर्फ माताएं ही दोषी हैं। आज प्राय: सब माताओं की बातचीत का मुख्य विषय भी यही होता है, बच्चा खाता नहीं, क्या करें दरअसल बच्चे को पोषण के लिए भरपूर खिलाना है-यह चेतना जब अति चेतना बनकर अतिरिक्त लाड़-प्यार के साथ जुडकर आड़े आती है, तभी यह समस्या पैदा होती है। आइये, देखें, समस्या कैसे उभरती है।
कुछ माताएं चाहती हैं, बच्चा ज्यादा से ज्यादा खाए। जब मां कुछ खाने को दे, तभी खाने लगे जबकि बच्चा अपनी भूख व रुचि के अनुसार ही खाएगा। कभी उन्हें कोई चीज ज्यादा पसंद आती है तो वे ज्यादा ले लेते हैं, कोई चीज नहीं अच्छी लगती तो थोड़ी सी खाकर ही छोड़ देते हैं। मां उसे जबर्दस्ती खिलाती है कि मेरे बच्चे ने कुछ खाया ही नहीं। कभी-कभी मां डांटकर, लाड़-प्यार से या फिर लालच देकर फुसलाकर खिलाती है। इस तरह करने से बच्चे सहज ही जिद में आ जाते हैं और मां को चिढ़ाने के लिए खाने से भी इंकार करने लगते हैं।
कभी-कभी बच्चे अपना अहम विकसित कर लेते हैं कि मां उनकी खुशामद करे, उनको मनायें, इसी बहाने मां अधिक ध्यान दे। फलत: मां एवं बच्चे में एक भावनात्मक संघर्ष छिड़ जाता है जिसमें जीत प्राय: लाडले की ही होती है। 10-15 मिनट में खाने की बजाय वह 1-1) घंटे में खाने लगाता है। इससे एक तरफ तो मां परेशान होती है, दूसरी ओर लाडला भी अच्छी खुराक उपलब्ध न होने पर अपोषित रह जाता है। कुछ बच्चे आदतन धीरे खाते हैं और मां जल्दबाजी में होती है। मां जल्दी खिलाना चाहती है और लाडला अपने हिसाब से खाना चाहता है। जबर्दस्ती करने पर खाने से इंकार करने लगता है या फिर आधे पेट खाकर ही उठ जाता है।
यदि छोटे-छोटे दो-तीन बच्चे हों तो स्वाभाविक ही है मां का ध्यान सबसे छोटे पर अधिक रहता है। मां के इस व्यवहार से वह स्वयं को उपेक्षित समझ बैठता है और मां का ध्यान स्वयं की ओर आकर्षित करने के लिए वह खाने में आनाकानी करने लगता है। कहीं-कहीं बच्चे को भूख या इच्छा से अधिक खिलाने के लिए जबर्दस्ती ठूंस ठूंस कर खिलाते भी देखा गया है। इस तरह ठूंसकर जबर्दस्ती करना बच्चे के लिए ज्यादती नहीं तो और क्या है इस तरह रोते-चीखते बच्चे के फेफड़े में चले खाना जाने का भय रहता है, जिससे उसे हानि हो सकती है। बच्चे को जरूरत या उसकी मांग अनुसार खाना न देकर अपने फुरसत या इच्छानुसार खाना देने से भी बच्चा कई बार चिढ़ जाता है। देर तक भूख दबाने के बाद भूखा होने पर भी बच्चा खाना उठाकर फेंक सकता है कि पहले क्यों नहीं दिया या फिर मांगने पर क्यों नहीं दिया।
कई बार बच्चे के तुरंत खाने के बाद फिर खाने की कोई चीज पकड़ा दी जाती है। बच्चा भूख न होने के कारण खाने से इंकार कर देता है। जोर-जबर्दस्ती फिर अरूचि का कारण बन जाती है। कई बार बच्चे कोई नई चीज खाना पसंद नहीं करते। धीरे-धीरे थोड़ी मात्रा में उसकी उस चीज में रूचि विकसित करें।
खाना बदल-बदलकर बनाएं। आहार-संतुलन की दृष्टि से भी यह अच्छा है कि उसे पौष्टिक तत्व बारी-बारी से मिल सकें और आपका लाड़ला भी स्वाद ले लेकर खाये, कहे कि मम्मा कल क्या बनाओगी बच्चे को खाने को आकर्षक ढंग से परोसकर दें। बच्चा है। समझकर खाना यूं ही न परोस दें वरना अरुचि उत्पन्न हो जाती है और वह भी यूं ही लापरवाही से थोड़ा बहुत खाकर उठ जाता है। कभी-कभी बच्चे से पूछकर उसकी पसंद का भी खाना बनायें। बच्चा इससे अपने आपको गौरवान्वित समझेगा और फिर अपनी पसंद के खाने को खुश होकर खायेगा। कभी आपकी तो कभी उसकी पसंद का स्वादिष्ट व रूचिकर खाना बनाएं। तभी आपका लाडला खाने को पसंद करेगा व उसे उसका लाभ भी मिलेगा।
कहा जाता है कि कुपोषण का कारण गरीबी है। यह एक भ्रामक धारणा है। कहीं-कहीं आय का 80-90 प्रतिशत केवल भोजन पर खर्च करने के बावजूद लाड़ले को पोषक भोजन नसीब नहीं होता। बहुसंख्यक परिवारों में गरीबी से अधिक अज्ञानता आड़े आती है जबकि परिवारों में कम खर्च में भी पोषणयुक्त भोजन जुटाया जा सकता है। शिक्षित समृद्ध परिवारों में भी यदि बच्चा ठीक से खाये नहीं, भूखा रह जाये, कुपोषित रह जाये तो इसे क्या कहेंगे मां की नादानी या अत्यधिक लाड-प्यार।