Tuesday, January 21, 2025
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भागो मत

Amritvani 21

स्वामी विवेकानंदजी जी को बचपन में सब लोग बिले नाम से पुकारते थे। बाद में नरेन्द्रनाथ दत्त कहलाए। नरेन्द्रनाथ बहुत उत्साही और तेजस्वी बालक थे। इस बालक को बचपन से ही संगीत, खेलकूद और मैदानी गतिविधियों में रुचि थी। नरेन्द्रनाथ बचपन से ही अध्यात्मिक प्रकृति के थे और यह खेल झ्र खेल में राम, सीता, शिव आदि मूर्तियों की पूजा करने में रम जाते थे। इनकी मां इन्हें हमेशा रामायण व महाभारत की कहानियां सुनाती थी जिसे नरेन्द्रनाथ खूब चाव से सुनते थे। एक बार बनारस में स्वामी विवेकानंद जी मां दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां पहले से मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे उनसे प्रसाद छिनने के लिए उनके नजदीक आने लगे। अपने तरफ आते देख कर स्वामी स्वामी जी बहुत भयभीत हो गए। खुद को बचाने के लिए भागने लगे। पर वे बंदर तो पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं थे। पास में खड़ा एक वृद्ध संयासी ये सब देख रहा था, उन्होंने स्वामी जी को रोका और कहा-रुको! डरो मत, उनका सामना करो और देखों कि क्या होता है। बृद्ध संयासी की बात सुनकर स्वामी जी में हिम्मत आ गई और तुरंत पलटे और बंदरों की तरफ बढ़ने लगे। तब उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उनके सामना करने पर सभी बंदर भाग खड़े हुए थे। इस सलाह के लिए स्वामी जी ने बृद्ध संयासी को बहुत धन्यवाद दिया। इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर शिक्षा मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक सभा में इस घटना का जिक्र किया और कहा -यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो, तो उससे भागों मत, पलटो और सामना करों। वास्तव में, यदि हम अपने जीवन में आर्इं समस्याओं का सामना करे तो यकीन मानिए बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

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