
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 12 नवंबर 2025 को बीज विधेयक 2025 का मसौदा जारी किया गया है। यह विधेयक पुराने बीज अधिनियम, 1966 को बदलकर गुणवत्ता नियंत्रण और केवल प्रमुख अपराधों पर कड़ी दंड व्यवस्था लागू करने हेतु बनाया गया है। यह भारतीय बीज क्षेत्र पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) और कॉपोर्रेट का वर्चस्व स्थापित करेगा, खाद्य सुरक्षा व बीज संप्रभुता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और राज्यों के संघीय अधिकारों को कुचल देगा।
यह बीज विधेयक एमएनसी और कॉर्पोरेट को बीज आपूर्ति पर नियंत्रण प्रदान करेगा और वही लक्ष्य पूरा करेगा जो अनुबंध खेती कानून लेकर आया था। इससे फसल-चक्र कॉर्पोरेट बाजार के हितों के अनुसार बदल जाएंगे। इसमें सस्ते और गुणवत्तापूर्ण बीजों की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने, खाद्य-सुरक्षा, किसान की आर्थिक सुरक्षा और लाभकारी कृषि की कोई गारंटी नहीं है। किसी भी सरकार के बीज विधेयक का यह मुख्य लक्ष्य होना चाहिए, परंतु मोदी सरकार ने इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है। यह विधेयक भारत में जीविका-आधारित कृषि के लिए विनाशकारी है। मसौदा विधेयक एक अत्यधिक केंद्रीकृत और कॉपोर्रेट-प्रधान विनियामक व्यवस्था प्रस्तुत करता है जो किसान-केंद्रित सुरक्षा उपायों को और भारत की जैव-विविधता संरक्षण तथा किसानों के अधिकारों की कानूनी संरचना को कमजोर कर सकता है। यह बाजार नियंत्रण और बीज प्रणालियों के कठोर औपचारिकीकरण को बढ़ावा देता है, जिससे स्वदेशी किस्मों, सार्वजनिक संस्थानों और पारंपरिक/अनौपचारिक बीज नेटवर्क हाशिये पर चले जाएंगे।
मसौदा विधेयक के मुताबिक एक बार किसी कंपनी को मान्यता मिल जाने पर वह स्वत: सभी राज्यों में पंजीकृत मानी जाएगी और राज्य सरकारें केवल गलत जानकारी देने के मामलों में ही किसी कंपनी को अस्वीकार या प्रतिबंधित कर सकेंगी। यह निजी कंपनियों को अनुचित लाभ देता है, जबकि सार्वजनिक संस्थानों को ऐसा कोई विशेषाधिकार नहीं मिलता। यह राज्यों के अधिकारों को कमजोर करता है और संघीय ढांचे के खिलाफ है।
अपंजीकृत किस्मों के आयात को परीक्षण हेतु अनुमति देना और विदेशी मूल्यांकन एवं उपयोगिता परीक्षण केंद्रों को मान्यता देना विदेशी बीज कंपनियों के लिए नियमों को कमजोर कर देता है। इनके माध्यम से एमएनसी अपने नए बीजों का भारत के बाहर ही स्वयं मूल्यांकन करके भारत में पेश कर सकती हैं, जिससे भारतीय परीक्षण प्रणाली को दरकिनार किया जा सकता है। इसके अलावा, यह राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण की निगरानी से बाहर संसाधनों के आवागमन के लिए कानूनी रास्ता खोलता है। आयातित बीजों के भारतीय परीक्षण का कोई प्रावधान नहीं है, जो संवेदनशील बीज क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के हाथ सौंपने में सरकार की कमजोरी दर्शाता है। विदेशी कंपनियां भारतीय सार्वजनिक प्रजनन संस्थानों की तुलना में जल्दी और कम लागत में नई किस्में बाजार में ला सकेंगी, जबकि भारतीय संस्थानों को स्थानीय प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ेगा। अनिवार्य ट्रेसिबिलिटी, क्यूआर कोड और विस्तृत लेबलिंग जैसे नए मानकों को केवल बड़ी डिजिटल संरचना वाली कंपनियां ही पूरा कर पाएंगी। यह किसान समूहों के लिए असमान और हानिकारक स्थिति उत्पन्न करेगा तथा अंतत: बीज-संप्रभुता को कमजोर करेगा। जाहिर है, सरकार इस मसौदा विधेयक के माध्यम से किसानों व जनता के हितों के साथ विश्वासघात कर रही है।
बीज मूल्य विनियमन से जुड़े प्रावधान भी निजी बीज कंपनियों को लाभ देने वाले हैं, जो शोषणकारी मूल्य निर्धारण करती हैं। मसौदा विधेयक कहता है कि केंद्र सरकार केवल आपात परिस्थितियों में ही मूल्य नियंत्रित कर सकती है। आपात स्थिति को बीजों की कमी, कीमतों में असामान्य वृद्धि, एकाधिकार मूल्य निर्धारण या मुनाफाखोरी जैसे अस्पष्ट शब्दों से परिभाषित किया गया है। दूसरी ओर, मामूली अपराध वह है जिसमें बीज की बिक्री केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य से अधिक पर की जाती है। इन प्रावधानों में स्पष्टता का अभाव है, मसलन – बीज कमी का मतलब क्या है? क्या कीमत असामान्य मानी जाएगी? क्या केंद्र सरकार मूल्य निर्धारित करती है? यह अस्पष्टता निजी कंपनियों को शोषणकारी मूल्य जारी रखने और कृषि संकट बढ़ाने की छूट देती है। बीज विधेयक 2025 हर किस्म के बीज के पंजीकरण को अनिवार्य करता है, जिसमें ग्राफ्ट, कटिंग, ट्यूबर, बल्ब, टिश्यू-कल्चर प्लांट और दूसरे नर्सरी स्टॉक जैसे वेजिटेटिव तरीके से उगाए जाने वाले प्लांटिंग मटीरियल शामिल हैं, लेकिन भारत के सार्वजनिक उद्यानिकी क्षेत्र में इन फसलों के प्रमाणीकरण, रेफरेंस लैब तथा फील्ड परीक्षण हेतु पर्याप्त अवसंरचना मौजूद नहीं है। इसके विपरीत, निजी नर्सरी और कॉपोर्रेट उद्यानिकी कंपनियों के पास पूंजी, डायग्नोस्टिक उपकरण और तेज आपूर्ति श्रृंखलाएं हैं, जिनसे वे इन नियमों का जल्दी पालन कर बाजार पर कब्जा कर सकती हैं।
भारी मात्रा में विदेशी उद्यानिकी पौध सामग्री निजी रास्तों से अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर रही है, जिससे जैव-सुरक्षा के जोखिम बढ़ते हैं। केवल नर्सरी पंजीकरण को इन अनियमित प्रवेशों को वैध बनाने का रास्ता नहीं बनना चाहिए। बिना सार्वजनिक परीक्षण सुविधाओं और क्वारंटीन व्यवस्था को मजबूत किए, यह विधेयक सार्वजनिक उद्यानिकी संस्थानों को और कमजोर करेगा।
भारत वर्तमान में जैव विविधता अभिसमय और पादप आनुवांशिक संसाधन संधि के अंतर्गत महत्वपूर्ण वार्ताओं में शामिल है, ताकि अपनी विविध आनुवांशिक संपदा के वैश्विक उपयोग से उचित लाभ-साझेदारी सुनिश्चित कर सके। विश्व के सर्वाधिक जैव-विविधता वाले देशों में से एक होने के कारण, भारत को अपने किसानों और स्थानीय समुदायों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए मजबूत संप्रभु अधिकार ढांचे की आवश्यकता है। ऐसे समय में कोई भी कानून जो इन अधिकारों को कमजोर करे या कंपनियों को अनियंत्रित पहुंच दे, भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को कमजोर करेगा। सार्वजनिक संस्थानों की मजबूत भूमिका, पारदर्शी विनियमन और सुव्यवस्थित निजी साझेदारी ही सुनिश्चित कर सकती है कि भारत और उसके किसान अपने आनुवांशिक संसाधनों से उचित लाभ प्राप्त करें, किंतु बीज विधेयक 2025 का मसौदा इन सार्वजनिक हितों के बिल्कुल विपरीत है।
ऐसे में पूरे देश के किसानों को इस प्रतिगामी विधायी सुधार के खिलाफ संगठित होना होगा, जो बीज क्षेत्र का निजीकरण, भारतीय जैव-विविधता पर एमएनसी लाभार्जन और खाद्य-सुरक्षा व बीज-संप्रभुता को नष्ट करेगा। यदि इसे लागू होने दिया गया, तो बेयर, बीएएसएफ, सिंजेंटा, एडवांटा इंडिया, कॉटेर्वा एग्रीसाइंस इंडिया, महायको जैसी एमएनसी कंपनियाँ भारतीय बीज क्षेत्र व कृषि उत्पादन पर नियंत्रण कर लेंगी और किसान-आधारित कृषि को नष्ट कर देंगी।

