Wednesday, June 18, 2025
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बहुपतित्व की शिकार लाखामंडल की द्रौपदियां

Nazariya 22


SEEMA AGARWALमहाभारत की द्रौपदी का नाम पूरी दुनिया जानती है। पांच पांडवों की एक पत्नी द्रौपदी। महाभारत में जिक्र है कि वनवास के दौरान पांडव जो भिक्षा लाते, कुंती बिना देखे उसे पांचों भाइयों में बराबर बांटने का आदेश देती। मां का आदेश शिरोधार्य कर पांडव हर वस्तु आपस में बांट लेते। जिस रोज अर्जुन पांचाल देश में द्रौपदी को स्वयंवर से अपने बल पर जीतकर लाए, उस रोज भी यही हुआ। दरवाजे पर खड़े पांडवों को कुंती ने आदेश दिया, जो लाए हो बराबर बांट लो। उसी क्षण द्रौपदी एक नहीं, पांच पुरुषों की पत्नी हो गई। जिंदगी भर द्रौपदी बहुपति के रिश्ते को निभाती रही। पांडवों ने नियम बनाया कि हर रात द्रौपदी एक भाई के कमरे में जाएगी, उसे पत्नी सुख देगी। महाभारत को गुजरे पांच हजार साल से अधिक हो चुके हैं। लोग कहते हैं कि महाभारत के साथ द्रौपदी भी चली गई, लेकिन पांच पतियों वाली द्रौपदी आज भी जिंदा है। उत्तराखंड के पहाड़ों की जौनसारी जनजाति में आज भी एक महिला को सभी भाइयों की पत्नी बनाने की प्रथा है, जिसमें जौनसारी जनजाति की महिलाएं आज भी घुट रही हैं। इस कुप्रथा को उत्तराखंड के लाखामंडल की महिलाएं आज भी झेल रही हैं। लाखामंडल में जौनसारी जनजाति में आज भी बहुपति का रिवाज है। पत्नी घर में एक आदमी से शादी करती है, लेकिन वैवाहिक संबंध उसे घर के सारे पुरुषों के साथ निभाने पड़ते हैं। स्वत: ही वो सारे भाइयों की ब्याहता बन जाती है। उसे हर भाई के साथ संबंध बनाकर उसे खुश रखना पड़ता है। उसके जीवन में पत्नी की भूमिका निभानी होती है। दरअसल जौनसारी जनजाति के लोग पांडवों को अपना पूर्वज मानते हैं। स्वयं को पांडवों का वंशज कहने के कारण इस जनजाति में बहुपतित्व यानी एक से ज्यादा पतियों का प्रचलन है। जौनसारी के लोग कहते हैं कि बहुपतित्व प्रथा हमारे पितर पांडवों को हमारा अर्पण है। जब तक हमारे घरों में बहुपतित्व प्रथा निभाई नहीं जाती, जीवन अधूरा माना जाता है, इसलिए बहुपतित्व प्रथा महिलाओं पर एक तरह से थोपी जाती है। न चाहते हुए भी महिलाओं को इसे निभाना पड़ता है, जिससे महिला उबर नहीं सकती। एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरी भारत में हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले और तिब्बत के क्षेत्र में यह प्रथा आज भी जीवित है।

बहुपतित्व प्रथा के पीछे एक बड़ा कारण संपत्ति का बंटवारा, इससे जुड़े विवाद भी हैं। लोग मानते हैं कि अगर हर भाई की अपनी पत्नी, बच्चे होंगे तो आम लोगों की तरह उनकी जमीनें बंट जाएंगी। संपत्ति पर झगड़ा होगा। अगर घर में एक महिला होगी तो संपत्ति उसी की संतान को जाएगी। पहाड़ों में कृषि योग्य भूमि का विखंडन रोकना बड़ी चुनौती है। जौनसारी जनजाति खेती और पशुपालन से गुजारा करती है। पुश्तैनी संपत्ति, पशुओं के बंटवारे से बचने के लिए एक पत्नी से सभी भाइयों की शादी हो जाती है। लोग यह मानते हैं कि ज्यादा महिलाओं से घर की शांति भंग होती है। घर में कलह न हो, इसलिए एक महिला होना चाहिए। इससे भाइयों में प्रेम बना रहता है, क्योंकि एक महिला के इर्द-गिर्द हर भाई का जीवन घूमता रहता है। जौनसारी बहुपतित्व को अपनी संस्कृति का मूल भाग कहते हैं। ये जनजाति अपनी जमीन बचाने के लिए महिलाओं की भावनाओं की बलि चढ़ाते हैं।

जौनसारी जनजाति के बुजुर्ग भले इस प्रथा को अपनाने के तमाम कारण मानते हों, लेकिन ये प्रथा कहीं न कहीं इस जनजाति की महिलाओं के लिए बड़ा दर्द बन चुकी है। ऐसी पीड़ा, जिसे ये महिला किसी से कह नहीं सकतीं। पीढ़ी दर पीढ़ी ये प्रथा हर महिला को निभानी है। बहुपतित्व में महिला को दूसरी शादी करने का हक नहीं है, लेकिन पुरुष एक के बाद दूसरी शादी करने का हकदार है। अगर एक पति मर जाता है तो महिला को उसकी विधवा बनकर रहना पड़ता है। एक ही जीवन में महिला विवाहित, विधवा दो किरदार निभाती है। महिला को एक साथ कई पुरुषों से संबंध बनाने पड़ते हैं, जो उसकी भावनाओं पर बड़ा आघात है। महिला किसकी पत्नी है, यह मृत्यु तक तय नहीं हो पाता। महिला से पैदा होने वाली संतानें भी ताउम्र असली पिता से वंचित रहती हैं। पत्नी एक भाई के साथ रहती है तो दूसरे भाई में हिंसक, भेदभाव, ईर्ष्या आ जाती है, जिसका शिकार महिला को होना पड़ता है। इस तरह तमाम दुश्वारियां हैं, जिनका सामना जौनसारी महिलाएं करती हैं।

बहुपतित्व प्रथा से जुड़ी महिलाओं में वैवाहिक असंतुष्टि, अवसाद, शत्रुता का भाव, संदेह की भावना, तनाव, आत्मसम्मान की कमी, अकेलेपन की तमाम बीमारियां पाई जाती हैं। जौनसारी जनजाति की महिलाएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में वर्णित गरिमापूर्ण जीवन जीने से वंचित रहती हैं, जो लैंगिक असमानता का बड़ा उदाहरण हैं। ये महिलाएं सेहत, शिक्षा, सम्मान से वंचित रहती हैं। उत्तराखंड सरकार ने हाल में कहा था कि दिवाली के बाद विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर उसमें उत्तराखंड में प्रचलित बहुविवाह, बहुपतित्व जैसी कुरीतियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने वाले बिल को पारित करेगी। ऐसा करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य होगा, लेकिन अभी तक सरकार ने इस पर विचार नहीं किया। उत्तराखंड में जौनसारी जनजाति की आबादी 1 लाख 37 हजार से ज्यादा है, जो मतदान भी करते हैं। इसके बावजूद आज तक किसी राजनीतिक दल या नेता ने इन महिलाओं को बहुपतित्व से आजादी देने की नहीं सोची। इस प्रथा से आजादी समय की दरकार है, जिस पर हम सभी को मिलकर न केवल सोचना होगा, बल्कि काम भी करना होगा।


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