इंदीवर मिश्र
अखरोट
अखरोट में विटामिन ए, बी और सी पाया जाता है। यह ह्नदय, बल-वीर्य, मस्तिष्क और लिवर को बल देने वाला होता है और शरीर का वजन बढ़ा देता है। रक्त दोष, रक्तचाप, क्षयवात, अजीर्ण तथा गर्मी को दूर कर देता है। इससे शरीर में अम्ल उत्पन्न होता है, पित्त उत्तेजित होता है और वात विकार नष्ट होते हैं। यह मल अधिक उत्पन्न करता है। एक दिन में चार-पाँच अखरोट खाने चाहिएं। इससे अधिक खाने से हानिप्रद होता है। गर्मियों में एक अखरोट की गिरी रात्रि में भिगो कर प्रात: खा सकते हैं।
काजू
काजू में विटामिन ए, बी, सी पाये जाते हैं। इनके सेवन से अर्श, कब्ज, खूनी तथा बादी अर्श, गुल्म, फुंसियाँ, भूख न लगना, वात विकार, श्वेत कुष्ठ, बल-वीर्य, रक्तविकार दूर होते हैं। यह शरीर का वजन बढ़ाता है और उक्त रोगों को दूर करने वाला होता है। यह अम्ल उत्पन्न करता है। गुर्दे में पथरी वाले रोगी को काजू का सेवन नहीं करना चाहिए।
किशमिश
किशमिश में विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके सेवन से लिवर, आंतों की निर्बलता, पुरानी कब्ज, ज्वर, खांसी, दमा, ह्नदय रोग, ह्नदय शूल, भूख न लगना, रक्तपित्त, रक्तदोष व अधिक प्यास की शिकायत दूर होते हैं। आधा पाव किशमिश को आधे लिटर पानी में भिगो कर रख दें। सुबह और शाम 50-50 ग्राम खाने से और इस पानी को पीने से उपर्युक्त रोगों में लाभ देने वाला होता है। किशमिश से क्षार उत्पन्न होता है।
चिरौंजी
चिरौंजी बल बढ़ाने वाली और पित्त और कफ को कम करने वाली है। रक्त दोष व जलन को दूर करती है। देर से हजम होती है। अधिक खाने से कब्ज होती है। यह अम्ल उत्पन्न करती है। चिरौंजी को पीसकर चेहरे पर उबटन लगाने से चेहरे पर कान्ति बढ़ती है। शरीर पर लगाने से सुन्दरता लाती है और झांई, मुँहासों, फुंसी और चर्म रोग को दूर कर देती है।
चिलगोजा
चिलगोजा फेफड़ों पर चिपके हुए पुराने कफ को निकाल देता है। क्षय तथा क्षयजनित खांसी में अत्यन्त लाभदायक होता है। यह पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक, मस्तिष्क की निर्बलता, जिगर की सूजन को दूर करने वाला होता है। यह भूख बढ़ाने वाला, रक्त को शुद्ध करने वाला और कब्ज को यह दूर करने वाला होता है।
छुहारा
छुहारे में विटामिन बी होता है, इनका सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है। यह कब्जकारक, देर से पचने वाला और वीर्यवर्धक होता है। आँखों और सिर के रोगों के लिए यह लाभकारी होता है। खाँसी और तिल्ली की सूजन को बढ़ाता है। इनकी गुठली को पानी में घिसकर सिर में लगाने से सिर दर्द रोग दूर हो जाता है। छुहारे की गुठली को जलाकर इसकी राख में मक्खन मिलाकर छोटी-छोटी फुंसियों पर लगाने से फुंसी ठीक हो जाती है।
पिस्ता
पिस्ता देर से हजम होता है। गर्म और अम्ल उत्पन्न करने वाला होता है। यह पुसंत्व को बढ़ाने वाला और रक्त को शुद्ध करता है। पित्त को बढ़ाने वाला होता है और कफ को नष्ट कर देता है।
मखाना
मखाना का लावा शीतल, बलवर्धक, रक्तपित्त निवारक, कामला रोग में अधिक हितकर होता है। इनका लावा वीर्य बढ़ाने वाला, प्रमेह नष्ट करने वाला और गर्भ को पुष्ट करने वाला होता है। मखाने की खीर अत्यन्त रूचिकारक, बलदायक होती है। मखाना आर्थराइटिस के लिए भी अच्छा है। पाँच दाने रात्रि में भिगोकर प्रात: सेवन कर सकते हैं।
मुनक्का
मुनक्का में विटामिन बी और सी मिलता है। इनके सेवन से निर्बलता, पुराना कब्ज, पेशाब की कमी, दमा, खांसी, ज्वर, दाह, तृष्णा, अरूचि रोगों में हितकारी होता है। इनसे शरीर पुष्ट होता है और बल-वीर्य बढ़ता है। यह क्षय के रोगियों को अत्यन्त लाभदायक और बेचैनी को दूर करने वाला होता है। बिगड़े हुए ज्वरों में मुनक्का को बीजों सहित पीसकर पानी में मिलाकर गुनगुना करके पीने से यह हितकारी होता है। यह क्षार उत्पन्न करता है।
मूंगफली
मूँगफली में विटामिन ए और बी पाया जाता है। यह अम्ल उत्पन्न करने वाली और मांसवर्धक होती है। मूँगफली को भिगो कर अंकुर निकल आने पर इनका प्रयोग करने से अत्यन्त बलकारक और पुंसत्व देने वाली होती है। भुनी हुई मूँगफली कब्ज करने वाली
और कफ को बढ़ाने वाली होती है।
रामदाना
रामदाने का सेवन करने से मैदे व जिगर की खराबी, जुकाम, कंठमाला, ह्नदय रोग, रक्त दोष, पित्त विकार, मस्तिष्क विकार रोगों के लिए यह हितकारी होता है। इनको पीसकर रोटी बनाकर, पूड़ी बनाकर या भूनकर, लावा बनाकर व्रत के दिनों में फलाहार किया जाता है।
साबूदाना
साबूदाने में थोड़ी मात्रा में विटामिन बी पाया जाता है। यह शीघ्र हजम होता है। शरीर के बल को बनाये रखता है। इसकी रोटी रोगियों, दुर्बलों के लिए हितकारी होती है। इसको पानी में उबालकर, पक जाने पर चीनी और थोड़ा दूध अथवा नमक मिलाकर रोगी को खिलाने से हितकारी होता है। इसको उबालकर इसके पानी से घाव को धोने से घाव में शीघ्र आराम मिलता है। इसके पानी से बाल धोने से बाल सुन्दर चिकने, मजबूत और साफ होते हैं।