खलीफा अबू बकर अपनी प्रजा का बहुत ज्यादा ध्यान रखते थे। वे किसी भी जरूरतमंद की मदद गुपचुप तरीके से करने में यकीन रखते थे। वह ऐसा इसलिए करते थे, जिससे व्यक्ति को हीनता का बोध न हो। वह अपने वजीर से भी यही कहते थे कि जरूरतमंद की सहायता करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है। एक बार खलीफा को एक गरीब वृद्धा के बारे में पता चला। उसके पास आमदनी का कोई साधन नहीं था। वे बड़े सवेरे अकेले ही उसकी झोपड़ी में पहुंचे। वृद्धा सोई हुई थी। उसकी झोपड़ी में चौखट तक नहीं थी। थोड़ा-बहुत सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था। उन्होंने चुपके से वहां सफाई की और खाने-पीने का सामान रखकर वहां से आ गए। वृद्धा जब सोकर उठी तो अपनी झोंपड़ी की सफाई के साथ ही खाने-पीने का सामान देखकर दंग रह गई। उसने दिल से मदद करने वाले व्यक्ति को दुआ दी। अब खलीफा रोज ऐसा करने लगे। एक दिन वृद्धा ने सोचा कि आखिर पता लगाना चाहिए कि यह सब करता कौन है? वह अगले दिन वह सोने का नाटक करती रही। खलीफा आकर सफाई करने लगे। वृद्धा खलीफा को देखकर दंग रह गई और बोली, ‘बेटा, जिस मुल्क का शासक एक गरीब वृद्धा की सुरक्षा और उसके भोजन की व्यवस्था को सबसे महत्वपूर्ण समझता है, उसकी प्रजा सचमुच स्वर्ग में रहती है।’ यह सुनकर खलीफा ने वृद्धा को बड़े आदर के साथ सलाम किया और बोले, ‘मां मेरा मकसद अपनी प्रजा की रक्षा करना और उन्हें बेहतर सुविधाएं देना ही है, ताकि मैं अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभा सकूं।’ इसके बाद खलीफा ने वृद्धा को सारी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करा दीं। यह किस्सा संदेश देता है कि राजा को अपनी प्रजा के प्रति जिम्मेदार होना सबसे पहली शर्त होनी चाहिए। क्या हमारे आधुनिक राजा इस कसौटी पर खरे उतर रहे हैं।