Friday, July 18, 2025
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ई-कॉमर्स ने बदली बाजार की सूरत

SAMVAD


52 8आॅनलाइन शॉपिंग, जिसे ई-कॉमर्स के रूप में भी जाना जाता है, तेजी से भारत में खरीदारी के तरीके को बदल रही है। इसने व्यवसाय की धारणा बदल दी है और हर उस व्यक्ति को प्रभावित किया जो व्यवसाय का हिस्सा था या है। चाहे वह उपभोक्ता हो, विक्रेता हो, विज्ञापनदाता हो या स्वयं व्यवसाय मॉडल हो। सुई से लेकर जहाज तक इंटरनेट पर कुछ भी खरीदा जा सकता है।भारत के 900 अरब डॉलर के खुदरा बाजार का केवल 6 प्रतिशत ही ई-कॉमर्स से आता है, इसके बावजूद यह बाजार दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले बाजारों में से एक है। वर्ष 2022 में भारत में 20 करोड़ लोगों ने आॅनलाइन कुछ न कुछ खरीदा, जबकि कुछ साल पहले यह संख्या दस लाख से भी कम थी। हालांकि भारत में बिजनेस टू बिजनेस ई-कॉमर्स बाजार अभी भी 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बाजार के 1 प्रतिशत से भी कम है।

1.4 अरब की आबादी वाले देश में, जहां अर्थव्यवस्था दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, कंपनियों और विश्लेषकों का कहना है कि ये आंकड़े अभी भी केवल सतही तौर पर दिख रहे हैं। 2027 तक 170 अरब डॉलर के बाजार में आॅनलाइन खरीदारी करने वालों की संख्या 500 मिलियन तक बढ़ने का अनुमान है।

ई-कॉमर्स का अचानक बढ़ना और भी उल्लेखनीय है, क्योंकि भारतीय लोगों के खरीदारी करने के तरीके में दशकों से कोई बदलाव नहीं आया है। पश्चिम के विपरीत, जहां विशाल सुपरमार्केट चेन एकाधिकार रखती हैं, वहीं भारत ने खरीदारी के अपने हाइपरलोकल तरीके को बरकरार रखा है। यानी ताजा उपज मुख्य रूप से स्थानीय बाजारों और सब्जीवालों (सब्जी विक्रेताओं) से खरीदी जाती है।

अन्य आवश्यक वस्तुएं अक्सर देश की 11 मिलियन किराना दुकानों, पड़ोस की दुकानों से खरीदी जाती हैं जिन्हें अक्सर भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ के रूप में वर्णित किया जाता है। बड़े नाम वाले फैशन ब्रांड भले ही लोकप्रिय हैं, फिर भी लोग ज्यादातर अपने कपड़े स्थानीय रूप से चलने वाली दुकानों और बाजारों से खरीदते हैं, खासकर शहरी महानगरों के बाहर रहने वाले बाजारों से।

दस वर्षों से इस क्षेत्र पर दो कंपनियों का वर्चस्व रहा है, फ्लिपकार्ट (एक भारतीय स्टार्ट-अप, जिसे बाद में अमेरिकी खुदरा समूह वॉलमार्ट द्वारा अधिग्रहित किया गया था) और अमेरिकी तकनीकी दिग्गज-अमेजॉन। वे न केवल आॅनलाइन शॉपिंग बाजार में लगभग 75 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं, बल्कि भारत में वाणिज्यिक श्रृंखला एकाधिकार की कमी को देखते हुए वे कुल मिलाकर देश के दो सबसे बड़े मार्केट प्लेयर भी हैं।

फिर भी ई-कॉमर्स परिदृश्य बदल रहा है और तेजी से विस्तार कर रहा है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था, जो दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लगातार बढ़ रही है। स्विगी, जोमैटो, बिग बास्केट, जेप्टो, मीशो, ब्लिंकिट, नायका, डंजो सहित कई कंपनियां, जो रेस्तरां के भोजन और फैशन ब्रांडों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स, किराने का सामान और दवाओं तक सब कुछ तुरत-फुरत वितरित करती हैं।

कोविड महामारी ने भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लॉकडाउन ने लोगों को पहली बार किराने के सामान के लिए आॅनलाइन भेजा, जबकि पारंपरिक विक्रेताओं को टिके रहने के साधन के रूप में डिजिटल होने के लिए मजबूर किया। इसने अचानक मांग का लाभ उठाने की कोशिश करने वाले नए ई-कॉमर्स उद्यमों की एक लहर को भी प्रेरित किया। डिजिटल भुगतान प्रणाली के बढ़ते चलन ने इसे और हवा दी। कुछ साल पहले भारत मुख्यत: नकदी-आधारित समाज था, जिसमें क्रेडिट और डेबिट कार्ड का उपयोग समाज का केवल एक छोटा वर्ग ही करता था।

पिछले कुछ वर्षों में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) में परिवर्तन के कारण इसमें काफी उछाल आया है, जिसमें लाखों भारतीयों के बैंक खाते ऐप्स और छोटी वस्तुओं से जुड़े हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि वित्त वर्ष 2021 में 53.8 प्रतिशत की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में टियर-2 और टियर-3 शहरों के खरीदारों की कुल बाजार हिस्सेदारी 61 प्रतिशत से अधिक है। जबकि टियर-1 शहरों में ई-कॉमर्स की वृद्धि दर 47.2 प्रतिशत से कम है।

टियर-2 और टियर-3 शहरों में क्रमश: 92.2 प्रतिशत और 85.2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। भारत के ई-कॉमर्स क्षेत्र ने भारत में व्यापार करने के तरीके को भी बदल दिया है और बिजनेस-टू-बिजनेस (बी2बी), डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (डी2सी) से लेकर वाणिज्य के विभिन्न क्षेत्रों यानी उपभोक्ता-से-उपभोक्ता (सी2सी) और उपभोक्ता-से-व्यवसाय (सी2बी) को खोल दिया है। डी2सी और बी2बी जैसे प्रमुख सेक्टरों में हाल के वर्षों में भारी वृद्धि हुई है।

भारतीय खुदरा उद्योग जिस तरह से आगे बढ़ रहा है, उसे देखते हुए 2023 देखने लायक साल होगा। इंटरनेट और स्मार्टफोन तक पहुंच को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत में ई-कॉमर्स का आकार 2030 तक बढ़कर 40 बिलियन डॉलर का हो जाएगा, जो 2019 में 4 बिलियन डॉलर था।

भारतीय उपभोक्ता, जो किसी एक चीज पर समझौता करने से पहले कई चीजों को आजमाने की आदत रखता है, उसकी झोली में स्मार्टफोन या डिजिटल दुनिया तक पहुंच के अलावा और भी बहुत कुछ है। इससे कुछ अन्य व्यापक चिंताएं भी पैदा हो रही हैं कि भारत की आर्थिक वृद्धि का लाभ कुछ कंपनियों और उनके अरबपति मालिकों के हाथों में केंद्रित हो रहा है।

भारत के पारंपरिक स्थानीय पड़ोसी किराना दुकानों के शक्तिशाली नेटवर्क को भी इससे धक्का पहुंचा है जिसे आम बोलचाल की भाषा में ‘मॉम एंड पॉप’ स्टोर्स कहा जाता है। जो वर्तमान में भारत के किराना बाजार का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि वर्तमान में आॅनलाइन खरीदे जाने वाले किराने का सामान मात्र एक प्रतिशत है। अपनी दुकानदारी पर प्रतिकूल असर देखते हुए इनमें से कुछ डिजिटल हो गए हैं या सीधे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ साझेदारी कर ली है।

भले ही ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों ने लाखों गिग श्रमिकों के लिए रोजगार पैदा किया है, लेकिन उनके रोजगार से संबंधित कानून पीछे रह गए हैं। आज भी भारत में 23 मिलियन गिग वर्कर्स उचित कानूनी सुरक्षा के बिना काम कर रहे हैं। जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, कई ई-कॉमर्स कंपनियां लागत में कटौती कर रही हैं, जिन्होंने लाभदायक बने रहने के लिए सीधे तौर पर गिग श्रमिकों को लक्षित किया है।

स्थानीय व्यापारियों की नाराजगी सत्तासीन सरकार के लिए थोड़ी समस्याग्रस्त साबित हुई है, क्योंकि दुकानदारों और छोटे व्यवसायों के नेटवर्क के पास स्थानीय प्रभाव और मजबूत यूनियनों के माध्यम से बड़ी मात्रा में शक्ति है, और वे एक महत्वपूर्ण चुनावी समूह हैं। ई-कॉमर्स के इतना पैर पसारने और विकास के बावजूद, भारत अभी भी एक महत्वपूर्ण डिजिटल विभाजन से बाधित है। देश का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आज भी इंटरनेट पहुंच से वंचित है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह काफी अधिक है। आॅनलाइन शॉपिंग की आकांक्षाएं समाज के सबसे गरीब लोगों की पहुंच से दूर हैं, जिनकी संख्या लाखों में है।


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