एक गांव में पति-पत्नी सुखी जीवन जी रहे थे। पति दिनभर राजा के महल में मेहनत करके एक स्वर्ण मुद्रा कमा लेता था। एक दिन महल से घर लौटते समय में उस व्यक्ति को एक यक्ष मिला। यक्ष ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं तुम्हें सोने के सिक्कों से भरे सात घड़े दे रहा हूं। तुम्हें ये घड़े अपने घर में मिल जाएंगे।
व्यक्ति बहुत खुश हुआ। घर पहुंचकर व्यक्ति ने अंदर कमरे में जाकर देखा तो वहां सात घड़े रखे हुए थे। उनमें से 6 घड़े तो सोने के सिक्कों से पूरे भरे थे, लेकिन एक घड़ा थोड़ा खाली था। जिसे देखकर पति को गुस्सा आ गया और बोला कि यक्ष ने धोखा दिया है।
पति गुस्से में यक्ष से मिलने पहुंचा। यक्ष प्रकट हुआ और उसने व्यक्ति से कहा कि सातवां घड़ा तुम अपनी कमाई से भर लेना। व्यक्ति ने सोचा कि थोड़ा सा घड़ा भरने में कुछ ही दिन लगेंगे, मेरे पास बाकी 6 घड़े तो पूरे भरे हैं।
घर आकर उसने पत्नी से कहा कि सातवां घड़ा हम खुद भर देंगे। अगले दिन से पति-पत्नी ने बचत करनी शुरू कर दी और खाली खड़े में सोने के सिक्के डालना शुरू कर दिए। बहुत दिनों के बाद भी सातवां घड़ा भरा ही नहीं। घर में पैसों की कमी आने लगी। व्यक्ति की पत्नी ने उसे समझाया, लेकिन वह नहीं माना।
घर की शांति भंग हो गई और लड़ाई-झगड़े होने लगे। सुख के दिन दुख में बदल गए। जब राजा को मालूम हुआ कि सेवक के घर में धन की कमी हो गई है तो एक दिन राजा ने सेवक से पूछा कि क्या तुम्हें किसी यक्ष ने सात घड़े दिए हैं? सेवक ने कहा कि जी महाराज। सेवक ने पूरी बात राजा को बताई।
राजा ने सेवक से कहा कि तुम अभी जाकर सातों घड़े यक्ष को वापस कर दो, क्योंकि सातवां घड़ा लोभ का है। ये कभी भी भरेगा नहीं। लोभ की भूख कभी शांत नहीं होती है। सेवक को राजा की बात समझ आ गई। इसके बाद पति-पत्नी दोनों सुखी हो गए। लालच को जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए, वरना जीवन में समस्याएं बढ़ने लगती हैं।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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