Sunday, May 11, 2025
- Advertisement -

शर्मनाक: करोड़ों खर्च के बाद भी गंदे शहरों में शुमार

  • सपने स्मार्ट सिटी के हकीकत कोसों दूर
  • नजदीकी गाजियाबाद टॉप 20 स्वच्छ शहरों में

जनवाणी संवाददाता ।

मेरठ: स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 के रिजल्ट में एक बार फिर से मेरठ धड़ाम हो गया है। देश के ‘टॉप टेन’ गंदे शहरों में मेरठ सातवें पायदान पर है। शहर के लिए यह शर्मसार कर देने वाली खबर है।

10 लाख तक की आबादी वाले 45 शहरों में नीचे से मेरठ 41वें स्थान पर है। यह हालत तो तब है, जब कई वर्षों से शहर की सफाई को लेकर प्रत्येक माह बड़ी धनराशि खर्च हो रही है, मगर फिर भी शहर से गंदगी साफ नहीं हो रही है। सच तो यही है, जो आपके सामने हैं।

इस बार बेहतर रैंक की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन बार फिर से नगर निगम धड़ाम हो गया है। हालांकि नगर निगम की तरफ से यहीं दावे किये जाते रहे हैं कि गावड़ी में कूडा निस्तारण प्लांट चालू हो गया। घर-घर कूड़ा उठाया जाने की व्यवस्था पहले से बेहतर की गई है।

मगर व्यवस्था बेहतर होती तो देश के टॉप टेन गंदे शहरों में मेरठ शुमार नहीं हुआ होता। तमाम दावे हवा-हवाई साबित हुए। पिछली बार 2019 में मेरठ का 286वां स्थान था, जिसका स्तर सुधरने की बजाय नीचे चला गया। यह भी गैरव करने वाली बात है।

अधिकारी इतने लापरवाह बने हुए हैं कि सफाई कर्मियों की ड्यूटी भी चेक नहीं कर पाते हैं, जिसके परिणाम सामने हैं। यदि शहर की स्वच्छता को लेकर गंभीरता दिखाई होती तो क्रांतिधरा का नाम स्वच्छ शहरों में टॉप पर रहा होता, जो वर्तमान में गंदे शहरों की सूची में शामिल हो गया है।

करोड़ों खर्च, फिर भी स्वच्छता में फिसड्डी

बड़ा सवाल ये है कि स्वच्छता सर्वेक्षण के मामले में नगर निगम सफाई के नाम पर करोड़ों खर्च कर रहा हैं, मगर फिर भी फिसड्डी। नगर निगम के खजाने पर प्रति माह करीब सफाई के नाम पर तीन हजार सफाई कर्मियों की वेतन निकल रही है, जो तीन करोड़ से ज्यादा बैठती है।

फिर भी सफाई के लिहाज से क्रांतिधरा पिछड़ा हुआ शहर है। आखिर इतना खर्च करने के बाद भी सफाई में सुधार क्यों नहीं हुआ? कहां पर हो रही है चूक? इसके लिए किसकी जवाबदेही बनती है।

यदि शहर स्वच्छता की श्रेणी में टॉप पर नहीं आ पा रहा है तो इसके लिए क्या नगर निगम मंथन करेगा या फिर पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी काम कम, लड़ाई-झगड़ों में ही समय व्यतीत कर देगा।

निगम के दावों की खुली कलई

100 शहरों में शामिल होने के नगर निगम के दावों की कलई खुल गई। नगर निगम अधिकारियों की सर्वेक्षण रिपोर्ट ने बोलती बंद कर दी है। ऐसा लगता है, जैसे नगर निगम अफसरों को सांप सूंघ गया है।

सफाई को लेकर  भी निगम आफिस पहुंचकर फटकार लगा चुकी थी, मगर फिर भी निगम अधिकारियों ने नहीं सुधरने की जैसे कसम खा ली थी।

दो से तीन दिन सफाई अभियान में लगे कर्मचारियों की चेकिंग का अभियान चला, लेकिन एकही दिन में एक वार्ड में 45 कर्मचारी नदारद मिले थे। ऐसे सफाई हो रही थी। फिर इसको लेकर सफाई कर्मियों ने हंगामा काटा तो फिर से लापरवाह सफाई कर्मियों को एंट्री दे दी गर्ई।

समय से नहीं करा पाए ओडीएफ

स्वच्छ भारत मिशन के तहत हर घर और सार्वजनिक स्थानों पर शौचालय बनने थे। निगम ने शौचालय तो बनाए, लेकिन समय का ख्याल नहीं रखा। निगम समय से ओडीएफ भी घोषित नहीं किया।

स्वच्छ सर्वे में नहीं निभाई जाती जिम्मेदारी

सबसे महत्वपूर्ण रोल सफाई के लिए जो निभाया जाना चाहिए था, वो नहीं निभाया गया। दरअसल, डोर-टू-डोर कचरा उठाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। इसके लिए जिम्मेदारी तो तय है, मगर निभायेगा कौन? डोर-टू-डोर कलेक्शन किया तो जा रहा है, लेकिन उसमें भी नगर निगम के सफाई कर्मी फिसड्डी है।

इसमें निश्चित समय पर हर घर पर कचरा गाड़ी लेने पहुंचनी चाहिए। गाड़ी से लेकर तमाम संसाधन भी नगर निगम के पास है, फिर भी सफाई में नगर निगम फेल है।

इसकी आनलाइन मॉनिटरिंग होनी चाहिए, मगर यहां तो आफलाइन भी चेकिंग नहीं हो रही है। ऐसी स्थिति में सफाई के सवाल पर नगर निगम धड़ाम नहीं होगा तो फिर क्या होगा? अब शहर के जिम्मेदार लोगों के हाथ में है शहर को स्मार्ट सिटी बनाना।

सुधार कराने का करेंगे प्रयत्न: मेयर

मेयर सुनीता वर्मा ने कहा कि सफाई के मामले में सुधार करने का प्रयत्न किया जाएगा। इसको लेकर नगर निगम सफाई कर्मियों की बैठक ली जाएगी तथा चूक कहां पर हुई, इसको लेकर समीक्षा होगी।

कहा कि स्वच्छ सर्वे की रिपोर्ट पर मंथन की आवश्यकता है, नगरायुक्त समेत तमाम अफसरों से इस बाबत बात की जाएगी।

दीवारें पुतवाने से नहीं, जमीन पर काम करने से आती है रैंकिंग

  • स्वच्छता सर्वेक्षण में बजाए बढ़ने के घटकर दूसरे से तीसरे पायदान पर कैंट बोर्ड

07 cant

स्वच्छता सर्वेक्षण में एक पायदान फिसलकर कैंट बोर्ड मेरठ इस साल तीसरे पायदान पर आ गया है। पिछले साल मेरठ को दूसरी रैंक मिली थी। जिसका जश्न मनाया। रैंक की यदि बात की जाए तो दीवारों पर स्वच्छता के नारों से नहीं बल्कि जमीन पर जो काम किया जाता है उसके बूते ही रैक हासिल की जाती है।

उम्मीद की जा रही थी कि पिछले साल की द्वितीय रैंक में सुधार होगा। कैंट के लोग पहली रैंक की उम्मीद किए बैठे थे, लेकिन न जाने ऐसा क्या हुआ, पहली तो छोड़ों दूसरे स्थान से फिसलकर तीसरे स्थान पर आ गिरे।

रैंक हासिल करने के लिए दावों के साथ काम भी जरूरी है, लेकिन जहां तक काम की बात है तो कैंट में जहां तहां बनाए गए खत्ते सफाई के दावों की पोल खोल रहे हैं।

जो खत्ते आबादी के समीप या फिर बीच में मौजूद हैं। वहां से आसपास रहने वालों को बीमारियां मुफ्त मिल रही हैं। काठ का पुल सरीखे खत्ता की यदि बात की जाए तो पास से गुजरना भी कई बार दुश्वार हो जाता है।

पशुओं का चारागाह

कैंट बोर्ड के खत्तों की यदि बात की जाए तो ये आवारा पशुओं का चारागाह बन कर रह गए हैं। काठ का पुल, महताब सिनेमा, कैंट बोर्ड के बगल वाला खत्ता, लालकुर्ती वार्ड दो का खत्ता, बाउंड्री रोड खत्ता सभी आवारा पशुओं का चारागाह बने हुए हैं। दिन भर यहां पशुओं के झूंड भोजन की तलाश में कूड़े-कचरे में मुंंह मारते रहते हैं।

सबसे बुरी हालत तो सदर टंकी मोहल्ला तथा थाना सदर बाजार के समीप स्थित खत्ते की है। आसपास रहने वालों का इन खत्तों से जीना मुहाल हो गया है। इसके अलावा सदर सब्जी मंडी गंज बाजार से चंद कदम की दूरी पर बनाया गया खत्ता भी यहां रहने वालों के लिए जी का जंजाल बना हुआ है।

जिम्मेदार अफसर या सदस्य

स्वच्छता सर्वेक्षण में दूसरे पायदान से फिसलकर तीसरे पायदान पर आने के लिए जब जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए। सवाल उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं।

खत्तों की जो हालत है उस पर चर्चा करना मुनासिब नहीं होगा। जमीनी हकीकत सभी जानते हैं, लेकिन जो रैंक पिछले साल हासिल की थी उसके छिन जाने के लिए जिम्मेदार कौन हैं।

उम्मीद है कि बोर्ड बैठक में जितनी शिद्दत के साथ टोल व टावर या फिर लेबर ठेकेदारों की चिंता में अफसर व सदस्य दुबले हुए जाते हैं उतनी ही चिंता रैंक हाथ से निकल जाने पर की जाएगी।

ओडीएफ खोल रहा पोल

मेरठ कैंट को ओडीएफ (ओपन डेफिकेशन फ्री) होने का तमगा हासिल है। यह कैसे हासिल हुआ इसके लिए कैंट बोर्ड के दो सदस्यों के आगे अफसरों को कैसे-कैसे आसन करने पड़े उस पर चर्चा फिर कभी, लेकिन जहां तक ओडीएफ की बात है तो अफसरों ने नई दिल्ली में बैठे अफसरों को भले ही समझा दिया हो|

लेकिन सुबह करीब चार बजे पौ फटने से मिस्टर टॉक के पीछे रजबन नाला, बीर बाला पथ, तोपखाना, महताब आदि इलाकोें में निकलने वाला लोटा गैंग देखने के बाद ओडीएफ के दावों को लेकर कहने सुनने को कुछ खास नहीं रहे जाता।

spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Abhinav Shukla: भारत-पाक तनाव पर चुप अभिनेताओं पर भड़के अभिनव शुक्ला, बोले-‘अब भी चुप हो?’

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img