परीक्षा का नाम लेते ही विद्यार्थियों के मन में भय और चिंता का भाव सहज रूप से उत्पन्न हो जाता है। यह एक स्वाभाविक और मनोवैज्ञानिक घटना और इसके बारे में कुछ भी विचित्र नहीं है। परीक्षा के तनाव के बारे में विचित्र बातें यही है कि हम खुद में इसके कारणों की तलाश नहीं कर पाते हैं और इसके कारण समय के साथ समस्या बदतर होती जाती है। परीक्षा के तनाव को नियंत्रित नहीं करने की स्थिति में स्टूडेंट्स में अवसाद की घटनाएं भी अब कॉमन हो गई हैं। अवसाद की घटनाएं अपने वीभत्स रूप में अन्य साइकोसोमैटिक डिसॉर्डर्स और आत्महत्या की वारदातों को जन्म देती हैं जो अत्यंत चिंताजनक है। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीबीआर) के आंकड़ों पर यकीनकरें तोपीछे सात वर्षों की अवधि में 12582 स्टूडेंट्स ने परीक्षा में तनाव के कारण आत्महत्या कर लिए। कोचिंग शहर कोटा में स्टूडेंट्स की बढ़ती सूइसाइड की घटनाएं परीक्षा के तनाव की एक और स्याह तस्वीर को पेश करती है।
यहां पर एक प्रश्न यह उठता है कि आखिर एक स्टूडेंट परीक्षा के तनाव से ग्रसित कैसे हो जाता है? इसके साथ ही एक अहम प्रश्न यह भी उठ खड़ा होता है कि आखिर इस तनाव से मुक्ति का रास्ता क्या है। वैसे इस सत्य से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि परीक्षा के तनाव को समूल नष्ट नहीं किया जा सकता है, क्योंकि स्टूडेंट्स लाइफ की यह एक इन्हेरन्ट घटना है। हां इतना तय है कि इसकी मात्रा और तीव्रता को नियंत्रित किया जा सकता है और इससे उत्पन्न घबराहट और भय को भी शमित किया जा सकता है। सच पूछिए तो परीक्षा का तनाव सबसे अधिक मन का होता है और यही कारण है कि इग्जैम स्ट्रेस के शमन के लिए मन को मजबूत करने की जरूरत है, इस फोबिया से उत्पन्न डर और घबराहट को नियंत्रित करने की जरूरत है।
परीक्षा को लेकर अनिवार्य है थोड़ी-सी चिंता
परीक्षा के तनाव की एक साइकॉलजी है। इसका बेसिक रूल यही है कि थोड़ी- सी मात्रा में चिंता एक बड़े मोटिवेशन का कार्य करती है जो हमारी कामयाबी को आसान बनाती है। क्योंकि परीक्षा के बारे में चिंता यह दर्शाती हैकि स्टूडेंट्स अपने कॅरियर और जीवन निर्माण के बारे में केयर करता है। यदि परीक्षा में अच्छे मार्क्स और ग्रेड से पास करने की चिंता नहीं हो तो फिर हम उस दिशा में शिद्दत से कोशिश नहीं कर पाते हैं। हम आलस्य के शिकार हो जाते हैं और फिर हमें कठिन मेहनत करने के लिए कोई उद्देश्य नहीं मिल पाता है। स्वाभाविक है कि किसी प्रेरणा या उद्देश्य के अभाव में हम अच्छे परफॉरमेंस की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। इसीलिए मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि थोड़ी मात्रा में परीक्षा तनाव अच्छे परीक्षा परिणाम प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है। यही कारण है कि एक निश्चित और नियंत्रित मात्रा में परीक्षा का तनाव किसी चिंता का सबब नहीं होता है।
खुद से यह प्रश्न पूछें कि आखिर आपको परेशान क्या कर रहा है
जब परीक्षा तनाव के बारे में बातें करते हैं तो इसके बारे में सबसे विचित्र बात यह है कि स्टूडेंट्स को यह पता ही नहीं होता हैकि आखिर वे परीक्षा के बारे में चिंतित क्यों हैं। यह अलग बात है कि परीक्षा में अच्छे अंक और हाई ग्रेड पाने का प्रेशर हर स्टूडेंट को होता है किन्तु यह केवल आधी समस्या है। आधी समस्या के बारे में जानकारी यहाँ बची रह जाती है। वो यह है कि आखिर परीक्षा में अच्छा परिणाम प्राप्त करने की राह में समस्याएं क्या हैं। पढ़े हुए पाठ याद नहीं रह पाते हैं या फिर पढ़ने में ही मन नहीं लगता है, खुद को पढ़ाई में कॉन्सन्ट्रैट नहीं करने की समस्या आती है या फिर कोई खास सब्जेक्ट काफी डिफिकल्ट लगता है- समस्याएं कुछ भी हो सकती हैं।
इन समस्याओं को पहचानना परीक्षा के तनाव को नियंत्रित करने की दिशा में पहला अहम स्टेप है। इस स्टेप को साधे बिना इग्जैमिनैशन के स्ट्रेस को दूर करना आसान नहीं होता है। लिहाजा जब इग्जैम स्टेस से परेशान हों तो खुद से यह प्रश्न पूछें कि आखिर आपके लिए स्ट्रेस का क्या कारण है, आखिर आपको किस बात की चिंता खाए जा रही है। जब कारण पता लग जाए तो फिर परीक्षा के तनाव के समाधान को खोज पाना आसान हो जाता है।
सतत मेहनत है जरूरी
इस सत्य से इनकार करना आसान नहीं होगा कि परीक्षा में अच्छे परिणाम के लिए कठिन और सतत मेहनत जरुरी होती है। इसके विपरीत जब हम नियमित रूप से सेल्फ स्टडी नहीं करते हैं या योजनाबद्ध तरीके से परीक्षा के लिए तैयारी नहीं कर पाते हैं तो परीक्षा का समय नजदीक आने पर घबराहट होती है और हम चिंता के शिकार हो जाते हैं। यही चिंता बढ़ते-बढ़ते अवसाद का रूप ले लेती है। यह स्थिति काफी भयावह है। आशय यह है कि परीक्षा के तनाव का मुख्य कारण लक्ष्य सिद्धि की दिशा में पहले से परिश्रम और प्रयास नहीं करना है। लिहाजा जब प्लान बनाकर और नियमित रूप से फोकस्ड होकर अध्ययन किया जाता है तो लक्ष्य प्राप्ति की राहें आसान होती जाती हैं। इस तरह से इग्जैम स्ट्रेस को शमित करना आसान हो जाता है।
किसी और से नहीं करें खुद की तुलना
जीवन में तनाव का एक कारण खुद की औरों से तुलना भी करना होता है। इस प्रकार की तुलना से असंतोष का जन्म होता है जो हमारे लिए हताशा और चिंता का कारण होता है। ऐसी परिस्थिति से खुद को महफूज रखना जरूरी है। लेकिन यह कार्यउतना आसान नहीं है। इसके लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। दूसरे स्टूडेंट को बहुत स्टडी करते हुए और परीक्षा में बहुत अच्छा अंक प्राप्त करते हुए देखकर खुद को अन्डरएस्टीमेट करने की मानसिक प्रवृत्ति खतरनाक है। हमेशा यह मानकर चलें कि इस दुनिया में सभी व्यक्ति की प्रतिभा और हुनर एक समान नहीं होती है और हर व्यक्ति अपने में अद्भुत होता है। हाथी की तुलना यदि बंदर के तेजी से पेड़ पर चढ़ने के कौशल से करें और उसके उपरांत हाथी को बंदर से कम प्रतिभाशाली मानें तो यह विवेकपूर्ण सोच नहीं है। क्योंकि भारी बोझ ढोने में एक बंदर हाथी का कभी भी सामना नहीं कर सकता है। यही व्यावहारिक सिद्धांत हम सभी पर भी लागू होती है। लिहाजा खुद की प्रतिभा और कौशल को पहचानें और फिर उसे निखारने में संपूर्ण लगन के साथ मिहनत करें। इससे तनाव से सुरक्षा मिलती है और जीवन सफलता से परिपूर्ण होता है।
जीवन से बड़े नहीं होते हैं मार्क्स और ग्रैड
परीक्षा में अच्छे मार्क्स पाने की चाह हर स्टूडेंट की होती है जो अत्यंत ही स्वाभाविक है। माता झ्र पिता भी अपने जीवन में अपने संतानों से यही आशा करते है। किन्तु कभी – कभी बहुत कठिन मेहनत और सच्चे प्रयास के बावजूद अच्छे मार्क्स पाने का सपना पूरा नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में उदास और निराश होना अत्यंत स्वाभाविक है। किन्तु इस स्थिति पर गहराई से सोचने की दरकार है।
इतिहास के पृष्ठ पलट कर देखें तो ऐसे कई महापुरुषों के उदाहरण मिल जाएंगे जिन्होंने अपने स्टूडेंट लाइफ में कभी भी बहुत अच्छे अंक प्राप्त नहीं किए। किन्तु वे तब भी अपने डोमेन में सफलता के उस शीर्ष पर पहुंचे जो आसान नहीं था। सच पूछिए तो मार्क्स और ग्रेड का इक्वैशन बलून के रंग सरीखा ही होता है जो यह बताता है किकोई बलून रंगों के कारण आकाश में नहीं उड़ता है। उस बलून के अंदर जो गैस भरी होती है वही उसे ऊपर आकाश में ले कर जाती है।इंसान की कहानी इस बलून से जरा भी परे नहीं है। हम अपनी जीवन में कामयबियों के किस मुकाम पर पहुंचते हैं यह कदापि भी मार्क्स और ग्रेड से निर्धारित नहीं होता है। हमारे अंदर कौन- सी प्रतिभा छुपी हुई है और हम उसको निखारने के लिए कितना संघर्ष करते हैं यह हमारी उपलब्धियों को निर्धारित करती है।
लिहाजा जब अच्छे अंक और ग्रेड मिलने से वंचित रह जाएं या फिर ऐसी उम्मीद लग रही हो कि आप आनेवाली परीक्षाओं में अच्छे अंक पाने में असफल रहेंगे तो निराश होने की जरूरत नहीं है। उसी समय खुद में झाँकें, खुद से यह प्रश्न पूछें कि आप इस दुनिया में किस कार्य को सबसे अच्छा कर पाते हैं और फिर उसी को सँवारने में खुद को समर्पित कर दें। विश्व विख्यात पार्श्व गायिका स्वर कोकिला लता मंगेशकर और क्रिकेट सम्राट सचिन तेंदुलकर को अपने जीवन में ऐतिहासिक कामयाबियां पाने के लिए कभी भी अच्छे मार्क्स और ऊंचे ग्रेड की चाह नहीं रही होगी और फिर भी वे उपलब्धियों में औरों से मीलों-मीलों दूर आगे निकल गए। जीवन में खुद को जान लेना सफलता की राह में सबसे बड़ा कदम है और यही जीवन निर्माण का सर्वमान्य दर्शन है।
घबराएं नहीं, माता-पिता, शिक्षक और दोस्तों से बातें करें
निराशा और हताशा के क्षणों में हम घबरा जाते हैं और प्राय: हम अपनों से बात करना ही बंद कर देते हैं। यह स्थिति अत्यंत भयावह है। संकट की ऐसी स्थिति में पेरेंट्स आपकी मदद कर सकते हैं और उनसे बात करने में झिझकने की जरूरत नहीं है। संभव हो तो इस संबंध में आप अपने किसी फेवरिट टीचर से बात कर सकते हैं और अपनी समस्याओं को शेयर कर सकते हैं। कभी झ्र कभी अपनी समस्याओं के बारे में आप अपने किसी विश्वस्त दोस्त से भी खुल कर बात कर सकते हैं। संवाद से समाधान का रास्ता निकलता है और हताशा और तनाव नियंत्रित होता है। समस्याओं को अपने मन में ही गुनते रहने से ये और भी गंभीर हो जाती हैं।
आशय यह है कि परीक्षा का तनाव मुख्य रूप से परीक्षा में तय किए गए लक्ष्यों की सिद्धि के लिए बिना प्लानिंग और प्रीपेरेशन के कार्य करने के कारण उत्पन्न होती है। यदि शुरू से ही बिना वक्त गंवाएं लक्ष्य प्राप्ति के लिए सच्ची लगन से कठिन मेहनत करें तो फिर मन व्यग्र नहीं होता है, दिल घबराता नहीं है और सब कुछ नियंत्रण में रहता है। परीक्षा के तनाव में हमारे धैर्य और साहस की परीक्षा होती है और जब हम बिना घबराए हुए और डरे हुए अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते जाते हैं तो हम धीरे ही सही किन्तु सफलता की तरफ आगे बढ़ते जाते हैं।
श्रीप्रकाश शर्मा