Saturday, July 6, 2024
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कैंट बोर्ड बिल पर लगी निगाहें, क्या फिर अस्तित्व में लौटेगा बोर्ड?

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  • एक बार फिर केंद्र सरकार कैंटोनमेंट बिल लेकर आयी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: संसद के मानसून सत्र में एक बार फिर केंद्र सरकार कैंटोनमेंट बिल 2022 लेकर आयी है। संसद में प्रस्तावित बिलों में इस बिल को 10 वे क्रमांक पर रखा गया है, लेकिन मानसून सत्र के आरंभ से ही संसद के दोनों सदन कोई संसदीय कार्य नहीं कर पाए हैं और संसद की कार्रवाई विपक्ष के हंगामे के चलते स्थगित होती आ रही है। पिछले मानसून सत्र में भी सरकार छावनियों की सिविल आबादी के हितों को ध्यान में रखकर कैंटोनमेंट बिल 2021 लेकर आयी थी, लेकिन वो भी तब संसद में विपक्ष के हंगामे के चलते एक्ट का रूप नहीं ले पाया था।

विदित है कि भारत की 62 छावनियों में रहने वाली सिविल आबादी छावनी अधिनियम 2006 के लागू होने के बाद भी ज्यादा सहूलियत अनुभव नहीं कर पा रही थी। क्योंकि कैंट अधिनियम 2006 भी अंग्रेजों के बनाये 1924 के कैंट एक्ट जैसा ही था, जिस कारण कैंट में भवन रिपेयर से लेकर भवन की बिक्री आदि में भी कठोर नियमावली के चलते दिक्कतें आ रही हैं।

सरकारी नियम से अनुमति न मिलने के कारण कैंट क्षेत्र में भवन निर्माण अवैध रूप से होने शुरू हो गए और भवनों की बिक्री भी वसीयत जैसे जुगाड़ों के जरिए होने लगी। परिणाम ये रहा के कैंट क्षेत्र में बने दो व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स बॉम्बे मॉल व 210-बी का आरआर मॉल कोर्ट के आदेश से तोड़ने पड़े, जिस कारण बहुत से लोग बर्बाद हो गए। कैंट की जटिलता निर्माण की परमिशन तो नहीं देती, लेकिन अवैध निर्माण करने पर नोटिस देकर मामला कोर्ट में जाने देती है।

इसके अलावा कैंट में व्यापार करने के अपने अलग नियम हैं। जिससे व्यापारी परेशान है और सबसे बड़ी दिक्कत कैंट बोर्ड के पास स्वयं का कोई अलग से बजट का न होना है, जिस कारण छावनी परिषदों को आर्मी के बजट में से ही पैसा मिलता है, जिसे देने में आर्मी अक्सर आनाकानी करती है,

क्योंकि उसके लिए पहले सेना का महत्व है। अंग्रेजों के समय से चली आ रही व्यवस्था अब सिविल आबादी के लिए दिक्कत बनती जा रही है, जिस कारण रक्षा मंत्रालय द्वारा जनहित में कैंट एक्ट में बदलाव के लिए पहल करते हुए नया कैंट बिल 2022 संसद में प्रस्तावित किया है।

नगर निगम को भी सौंपने की है चर्चा

कैंट बोर्ड विशेषज्ञों की माने तो कैंट के सिविल क्षेत्र को प्रदेश सरकारों से वार्ता करके वहां के नगर निगमों या नगर पालिकाओं को देने की भी तैयारो जोरों से चल रही है। उत्तराखंड और महाराष्ट्र में इसपर तेजी से कार्य भी हो रहा है। जानकार बता रहे हैं के प्रस्तावित बिल में ही कैंट के सिविल क्षेत्र को नगर निगम या नगर पालिकाओं को देने की व्यवस्था के लिए नियम रखे गए हों ।

क्योंकि दोनों जगह भूमि की स्थिति अलग-अलग है। कैंट में जहां भूमि रक्षा मंत्रालय की है जिसे जनता को लीज पर या ओल्ड ग्रांट पर दिया गया है । इस वजह से यहां भूमि का मालिकाना हक नहीं मिलता व्यक्ति केवल भूमि पर बने भवन का ही मालिकाना हक रखता है । नगर निगम में देने के लिए भूमि के रूप में परिवर्तन करना आवश्यक रहेगा । एक वर्ष से बोर्ड भंग है, जिसके चलते एक वर्ष से चुनाव नहींं हुए हैं।

एक्ट में परिवर्तन के चलते पिछले एक वर्ष से सभी 62 छावनियों के बोर्ड भंग चल रहे है। चुनाव न होने से जनता का कोई चुना हुआ प्रतिनिधि बोर्ड में नहीं हैं और सभी प्रशासनिक निर्णय बोर्ड अध्यक्ष व सी ई ओ ओर मनोनीत सदस्य द्वारा ही किये जा रहे हैं । मेरठ जैसी छावनी में तो पिछले कुछ माह से जनहित में कोई बोर्ड बैठक ही नहीं हो सकी है । कुछ खास विषयों को लेकर स्पेशल बोर्ड बैठक करके काम चलाया जा रहा है । जबकि म्यूटेशन की फाइलें व जनहित के अन्य विषय लटके पड़े हैं।

नए कैंट बिल से वास्तव में कैंट क्षेत्र की जनता को बहुत सहूलियत मिलेगी। मेरी ऐसे अन्य सांसदों से भी चर्चा चल रही है, जिनके संसदीय क्षेत्र में छावनी आती है।

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कोशिश रहेगी के छावनी बिल 2022 इसी सत्र में पास होकर एक्ट बन सके। हालांकि विपक्ष के हंगामे के चलते संसद का कार्य बाधित चल रहा हैं।
-राजेन्द्र अग्रवाल, सांसद

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