- जनपद के लिए निर्धारित लक्ष्य के विपरीत 17.67 प्रतिशत कृषि भूमि में ही लगाए जा सके प्लांट
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: पानी की बचत और फसलों की अच्छी पैदावार के नाम पर विकसित की गई नई ड्रिप सिंचाई विधि को अपनाने में किसान कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। इसी का परिणाम है कि मेरठ जनपद के लिए निर्धारित 1980 हेक्टेयर भूमि के सापेक्ष केवल 350 हेक्टेयर यानी 17.67 प्रतिशत भूमि में ही ड्रिप सिंचाई विधि लागू हो पाई है। जनपद में जल स्रोत निरंतर नीचे चला जा रहा है। आने वाले समय में पानी की संभावित किल्लत को देखते हुए वैज्ञानिक कम से कम पानी का प्रयोग करने के नए-नए विधियां तलाश कर रहे हैं।
इन्हीं में कृषि कार्य के लिए प्रयुक्त होने वाले जल को बचाने की दिशा में भी निरंतर प्रयास जारी है। इसी क्रम में इजरायल की ईजाद की हुई ड्रिप या टपक सिंचाई विधि को लागू करने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकारों के माध्यम से भारी भरकम सब्सिडी का प्रावधान भी किया गया है। जिला उद्यान विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जनपद के लिए 1980 हेक्टेयर भूमि को चालू वित्तीय वर्ष में ड्रिप विधि से सिंचित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है इसके लिए विभिन्न कंपनियों को यह दायित्व सौंपा गया है।
जिसके अंतर्गत उन्हें किसानों से संपर्क करके अपनी फसलों को और ड्रिप विधि से सिंचित करने के लिए रजामंद करना है। और प्रति हेक्टेयर की दर से किसानों से 10 से 20 प्रतिशत अंशदान भी वसूल करना होता है। दरअसल, एक हेक्टेयर भूमि में ड्रिप सिंचाई प्रोजेक्ट लगाने के लिए 1.4 लाख रुपये का खर्च आता है। अपने खेतों में यह प्लांट लगवाने वाले छोटे किसानों को 10 प्रतिशत अंशदान के रूप में 14 हजार और बड़े किसानों को 20 प्रतिशत यानी 28 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर देना होता है।
ड्रिप विधि से सिंचाई की व्यवस्था लागू होने के उपरांत केंद्र और राज्य सरकार के स्तर से संबंधित कंपनी को सब्सिडी की राशि उपलब्ध करा दी जाती है। मेरठ जनपद में काम करने वाली कंपनी स्वास्ति पॉलिटेक्निक प्राइवेट लिमिटेड के प्रतिनिधि मनोज कुमार का कहना है कि ड्रिप सिंचाई प्लांट लगाने में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
अव्वल तो किसान परंपरागत सिंचाई विधि को ही सही मानकर चलते हैं। अगर उन्हें ड्रिप सिंचाई विधि के लाभ के बारे में बता कर प्लांट लगवाने के लिए तैयार किया भी जाता है, तो अधिकांश किसान अंशदान देने के लिए सहमत नहीं हो पाते हैं। यही कारण है कि मेरठ जनपद में कल लक्ष्य के सापेक्ष 17.67 प्रतिशत ही भूमि पर ड्रिप सिंचाई प्लांट लगाया जा सकता है।
ऐसे काम करती है ड्रिप सिंचाई विधि
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि टपका या ड्रिप सिंचाई विधि को अपनाने से सतही व बौछारी विधियों की तुलना में अधिक उपज प्राप्त होती है। क्योंकि जल व पोषक तत्वों का पौधों द्वारा सम्पूर्ण मात्रा में प्रयोग होता है। कम श्रम के साथ प्रयोग की जाने वाली इस विधि में जल की एक-एक बूंद पौधों के जड़ क्षेत्र में पहुंचती है। इस विधि से सिंचाई करने पर दक्षता अधिक होती है। भूमि की कटाव से हानि की कोई सम्भावना नहीं होती है।
ड्रिप विधि में जल के साथ उर्वरक, कीटनाशी अथवा खरपतवानाशी का सरलतापूर्वक प्रयोग सम्भव होता है, जिससे उपज में वृद्धि होती है। इस विधि के प्रयोग करने से पौधों की जड़ों को उत्तम जल, वायु व भूमि का अनुकूल वातावरण प्राप्त होता है। इस विधि से सम्पूर्ण खेत में सिंचाई जल का समान वितरण सम्भव होता है तथा जड़ क्षेत्र में क्षेत्रधारिता के बराबर नमी रखने में आसानी होती है।
ट्रेंच विधि से 25419 हेक्टेयर भूमि का लक्ष्य
गन्ना विभाग भी अपने स्तर से पानी की कम खपत में अधिक से अधिक लाभ हासिल करने की दिशा में ट्रेंच सिंचाई विधि पर बल दे रहा है। इसके लिए चालू वित्तीय वर्ष में 25419 हेक्टेयर भूमि को सह फसली खेती के लिए तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि अभी यह आंकड़े उपलब्ध नहीं है कि लक्ष्य के सापेक्ष कितने प्रतिशत भूमि पर ट्रेंच सिंचाई विधि से सह फसली खेती के प्रयोग को अमल में लाया गया है।
गन्ना विकास परिषद के माध्यम से मेरठ जनपद में इसके लिए अलग-अलग लक्ष्य दिए गए हैं। जिसमें मवाना और दौराला को छह-छह हजार, सकौती टांडा को तीन हजार, मोहिउद्दीनपुर को 3019, मलियाना और नगलामल को 3700-3700 हेक्टेयर भूमि में ट्रेंच विधि से सिंचाई के प्लांट लगाने को कहा गया है।
जनपद में ड्रिप सिंचाई के लिए 1980 हेक्टेयर भूमि का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हालांकि इसके सापेक्ष अभी तक 350 हेक्टेयर भूमि को ही ड्रिप सिंचाई विधि से सिंचित किया जा सका है। संबंधित कंपनियों के प्रतिनिधि किसानों को ड्रिप सिंचाई विधि के लाभों से अवगत कराते हैं और उन्हें अपने खेतों में इस नई तकनीक को अपनाया कर अधिक से अधिक लाभ लेने के लिए प्रेरित करने का प्रयास कर रहे हैं। -अरुण कुमार, जिला उद्यान अधिकारी