तिथि अनुसार कर्मकांडी ब्राह्मण से ही कराना चाहिए तर्पण
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: श्राद्ध यानी पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध बुधवार यानि आज दो सितम्बर पूर्णिमा के साथ प्रारंभ हो रहे है। इस बार पंद्रह की जगह पूरे 16 श्राद्ध होंगे। पिछले साल पंद्रह ही श्राद्ध हुए थे।
16 दिन के लिए हमारे पितृ घर में होंगे और तर्पण के माध्यम से तृप्त होंगे। यह अवसर अपने कुल, अपनी परंपरा, पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों का स्मरण करने और उनके पद चिह्नों पर चलने का संकल्प लेने का है।
कब होता है पितृ पक्ष
भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर श्राद्ध पक्ष आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। पूर्णिमा का श्राद्ध उनका होता है, जिनकी मृत्यु वर्ष की किसी पूर्णिमा को हुई हो। वैसे, ज्ञात, अज्ञात सभी का श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है।
यूं होते हैं सोलह दिन के श्राद्ध
ज्योतिषाचार्य राहुल अग्रवाल का कहना है कि सूर्य अपनी प्रथम राशि से भ्रमण कर कन्या राशि में एक माह के लिए भ्रमण करते हैं। तभी यह सोलह दिन का पितृपक्ष मनाया जाता है। इन सोलह दिनों के लिए पितृ आत्मा को सूर्य देव पृथ्वी पर अपने परिजनों के पास भेजते हैं। पितृ अपनी तिथि को अपने वंशजों के घर जाते हैं। पक्ष पंद्रह दिन का ही होता है,लेकिन जिनका निधन पूर्णिमा को हुआ है, उनका भी तर्पण होना चाहिए। इसलिए पूर्णिमा को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है और श्राद्ध 16 दिन के होते हैं।
तीन पीढ़ियों तक का ही श्राद्ध
श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही होता है। धर्मशास्त्रों के मुताबिक सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितृ अपने स्वजनों के पास आ जाते हैं। देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को वसु के समान,रुद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढ़ियों तक ही सीमित रहती है।
कौन कर सकता है तर्पण
पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है। जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में हैं तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं। यह भी कहा गया है कि किसी पंडित द्वारा भी श्राद्ध कराया जा सकता है।
कौआ, कुत्ता और गाय
इनको यम का प्रतीक माना गया है। गाय को वैतरिणी पार करने वाली कहा गया है। कौआ भविष्यवक्ता और कुत्ते को अनिष्ट का संकेतक कहा गया है। इसलिए, श्राद्ध में इनको भी भोजन दिया जाता है। ज्योतिषों की माने तो हमको पता नहीं होता कि मृत्यु के बाद हमारे पितृ किस योनि में गए, प्रतीकात्मक रुप से गाय, कुत्ते और कौआ को भोजन कराया जाता है।
पितृ अमावस्या
जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं रहती या किन्ही कारण से हम श्राद्ध नहीं कर पाते,ऐसे ज्ञात-अज्ञात सभी लोगों का श्राद्ध पितृ अमावस्या को किया जा सकता है। इस दिन श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। इसके बाद ही पितृ हमसे विदा लेते हैं।
सीता जी ने भी किया था श्राद्ध
ज्योतिषार्यो अनुसार महिलाओं का श्राद्ध करना निषेध नहीं है। भगवान राम गया जी में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने गए। श्राद्ध करने में देरी हो गई। तभी राजा दशरथ ने दोनों हाथ फैलाकर कहा कि मेरा तर्पण कब होगा। सीता जी उस वक्त वहां थी। सीता जी ने कहा कि वह आपका श्राद्ध महिला होने के नाते कैसे कर सकती हूं। राजा दशरथ ने कहा कि महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं। मिट्टी उठाओ और मेरा पिंडदान करो। इससे साबित होता है कि महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं।
सही बाते