Tuesday, July 8, 2025
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मजबूरी है, लेकिन जानलेवा

  • दिल्ली रोड और बागपत बाइपास पर समेत कई जगहों पर डिवाइडर पर सोते देखे जा सकते हैं मजदूर
  • शहर में बने रैन बसेरे अधिकतर रहते हैं खाली

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: क्रांतिधरा पर रोजगार एवं मजदूरी की तलाश में दूरदराज क्षेत्र से आए कुछ मजदूर रात्रि के समय डिवाइडर पर सोते देखे जा सकते हैं। दिनभर मेहनत-मजदूरी के बाद जब वह रात में फुटपाथ पर सोते हैं तो मार्ग से होकर गुजरने वाले राहगीर बस यही कहते देखे जा सकते हैं कि इसे इन मजदूरों की मजबूरी कहें या फिर लापरवाही की हद।

शहर में जगह-जगह फुटपाथ व टूटे-फूटे पडेÞ डिवाइडर पर काफी संख्या में मजदूर सोते देखे जा सकते हैं। जिसमें सबसे ज्यादा दिल्ली रोड फुटबाल चोक एवं बागपत बाइपास पर बने डिवाइडर पर मजदूरों को जान जोखिम में डालकर सोते देखा जा सकता है।

जब कोई शहरी क्षेत्र में रोजगार एवं कामकाज की तलाश में आता है तो उसके सपने एवं अरमान होते हैं कि उसे अच्छा रोजगार मिलेगा ओर खाने-पीने के साथ रात में आराम के लिए समुचित व्यवस्था होगी, लेकिन यह सपने उस समय टूट जाते हैं। जब मनमाफिक रोजगार नहीं मिलना, साथ ही भोजन एवं रात्रि विश्राम के लिए प्रयाप्त व्यवस्था नहीं मिलती। जिसके बाद जो भी मेहनत मजदूरी का काम मिलता है।

मजदूर काम नहीं मिलने पर मजबूर बन जाता है, तब उसे जैसा कार्य मिलता है, वह उसे करने लगता है। दिनभर मेहनत मजदूरी तो अपना पेट भरने के लिए कर लेता है, लेकिन रात में आराम के लिए वह रूम किराये के बढ़े रेट के चलते उपलब्ध नहीं कर पाता। जिसके बाद वह दिनभर पसीना बहाकर हाड़तोड़ मेहनत करके कुछ रुपये तो कमा लेता है। वह किराया बचाने के चक्कर में फुटपाथ पर ही सो जाता है।

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बुधवार रात में बागपत रोड पर कुछ मजदूरों को डिवाइडर पर सोते देखा। जिसमें फटे-पुराने कपड़ों में किसी तरह बदन ढका था। अगल-बगल से सरसराती हुई गाड़ियां निकलती थीं दूर से आती गाड़ियों को देखकर लगता था कि अब डिवाइडर पर ही चढ़ जायेगी। दिल की धड़कन बढ़ गयी थी। फिर भी सोने के लिए बस वही एक जगह बची थी। न तो अपना घर था और न ही सरकार की ओर से उपलब्ध करायी गयी कोई जगह, जहां रात में सो सके।

जिसमें किसी भी समय बड़ा सड़क हादसा होने से इंकार नहीं किया जा सकता। फुटबाल चौराहे से दिल्ली रोड ही नहीं कई ऐसी सड़कें हैं, सैकड़ों मजदूरों की रात इन्हीं पर कटती है। रोजाना सैकड़ों लोग डिवाइडर, सड़क किनारे, रिक्शाओं पर और फुटपाथ पर सोते हैं। इनके साथ कभी भी कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन किसी भी अधिकारी या पुलिस महकमे के अफसरों को इनकी सुरक्षा को लेकर फिक्र नहीं है और यहां सोने वाले लोगों के पास कोई चारा नहीं है।

मजदूर की सोच होती है कि वह दो पैसे बचाकर घर भेज दे। मजदूरों को खासकर बरसात के मौसम में परेशानी उठानी होती है कि वह रात्रि में सोते हुए यदि बारिश आए तो वह वहां से हटकर बारिश से बचाव का विकल्प तलाशते हैं। हालाकि शहर में कई जगह रैन बसेरे बने हैं,

लेकिन जिन जगह यह देर रात तक काम करते हैं और सुबह सवेरे फिर से काम पर जाना होता है। जिसके चलते रैन बसेरे तक जाना यह मजदूर गंवारा नहीं समझते, भले ही इनके साथ लापरवाही से डिवाडर पर सोने के चलते कोई बड़ा हादसा हो जाये। उसकी परवाह दिखाई नहीं देती।

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