Thursday, May 22, 2025
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वृद्धावस्था में जरूरी हैं फ्रैक्चर से बचाव के उपाय

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सीताराम गुप्ता |

वृद्धावस्था में प्राय: शरीर में लोच कम हो जाती है और हड्डियां भी अपेक्षाकृत कमजोर और भंगुर हो जाती हैं अत: थोड़ा-सा भी पैर फिसल जाने पर गिर पड़ना और हड्डियों का टूट जाना स्वाभाविक है। गिरने पर बच्चों और युवाओं में जहां हाथ में फ्रेक्चर होने की घटनाएं आम होती हैं वहीं बुजुर्गों में कूल्हे की हड्डी टूूटना अथवा हिप बोन फ्रेक्चर सामान्य-सी बात है जो अत्यंत पीड़ादायक होता है। यदि हम कुछ सावधानियां रखें तो इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।

यदि हम अपने आस-पास का अवलोकन करें तो पाएंगे कि ज्यादातर बुजुर्ग बाथरूम में ही दुर्घटना का शिकार होते हैं। पैर फिसलने का कारण प्राय: चिकनाई होती है। बाथरूम अथवा किचन का फर्श प्राय: गीला हो जाता है और यदि उस पर चिकनाई की कुछ बूंदें भी होंगी तो वहां बहुत फिसलन हो जाएगी।

कुछ लोग नहाते समय सिर के बालों में अथवा बदन पर तेल लगाते हैं। तेल लगाते समय नन्हीं-नन्हीं तेल की बूंदें आसपास के फर्श पर भी फैल जाती हैं जो कभी भी एक बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती हैं। ऐसे चिकने फर्श पर बच्चे और बूढ़े प्राय: अपनी हड्डियां तुड़वा बैठते हैं अत: चिकने फर्श को साफ कर देना चाहिए।

तेल की बूंदों के अतिरिक्त साबुन के छोटे-छोटे टुकड़े भी कई बार फिसलने का कारण बनते हैं। साबुन का एक अत्यंत छोटा-सा टुकड़ा भी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है अत: साबुन के छोटे-छोटे टुकड़ों को भी फर्श से बिल्कुल साफ कर देना चाहिए।

कई बार नहाने के बाद गीले साबुन को फर्श पर ही छोड़ देते हैं जिससे साबुन की टिक्की उठाने के बाद भी कुछ साबुन फर्श पर लगा रह जाता है जो दुर्घटना का कारण बन जाता है। इसलिए साबुन को फर्श पर रखने की बजाय साबुनदानी में ही रखना ठीक है और साबुनदानी को भी सही स्थान पर रखना चाहिए क्योंकि साबुनदानी से भी गीले साबुन की बूँदें टपक कर फर्श को फिसलन भरा बना देती हैं। जब भी नहाएँ या कपड़े धोएँ, साबुन को ठीक स्थान पर रखें तथा बाहर आने से पहले फर्श को साफ करके बाहर आएं।

किचन में कई बार बर्फ़ के टुकड़े या आइसक्यूब बिखर जाते हैं जिनसे किचन का फर्श गीला ही नहीं, फिसलनयुक्त भी हो जाता है अत: ऐसे टुकड़ों को फौरन हटाकर फर्श साफ कर देना चाहिए।

बरसात के दिनों में छत पर अथवा खुली बालकनी में लगातार पानी बरसने से काई जम जाती है जो अत्यंत फिसलनभरी होती है अत: ऐसे स्थानों पर जाते समय पूरी सावधानी रखनी चाहिए। जिन स्थानों पर प्राय: पानी टपकता रहता है अथवा अन्य कारणों से गीला रहता है वहाँ भी काई जमने से फिसलन पैदा हो जाती है अत: ऐसे स्थानों पर पानी के रिसाव को रोकने का उपाय करना चाहिए। यदि पानी के नल टपक रहे हों तो उनके वाशर आदि बदलवा देने चाहिएं।

फलों के छिलके, विशेष रूप से केले के छिलके भी फिसलने का बहुत बड़ा कारण बनते हैं अत: इनसे बचना चाहिए। छिलके सडक पर अथवा गली में बिल्कुल न फेंकें तथा घर में भी फौरन डस्टबिन में डालें। केले के छिलके तो कई बार फर्श पर रखने के बाद उठा लेने पर भी फर्श को फिसलन भरा बना देते हैं अत: केले खाने के बाद छिलके फर्श पर डालने की बजाए सीधे किसी प्लेट में रखें तथा बाद में डस्टबिन में डाल दें।

कई बार हमारे जूते भी ऐसे होते हैं कि उनसे फिसलने की संभावना बढ़ जाती है अत: ऐसे जूतों का चुनाव करना चाहिए जिनसे फिसल कर गिरने की संभावना न हो। सफर के दौरान अधिक ढीले-ढाले कपड़ों से भी गिरने और चोट लगने की संभावना रहती है इसलिए सफर के दौरान पहनने के लिए उचित प्रकार के कपड़ों का चुनाव करना चाहिए।

जहां आवागमन ज्यादा होता है, वहां बिल्डिंगों की सीढ़ियां भी घिस-घिस कर चिकनी हो जाती हैं। ऐसे जीनों में साइडों में रॉड्स लगानी चाहिए तथा अत्यंत सावधानीपूर्वक चढ़ना उतरना चाहिए। घरों या बिल्डिंगों के मुख्य दरवाजों पर बने रैम्प्स की सतह भी अधिक चिकनी नहीं होनी चाहिए। विकलांगों के लिए बने रैम्प्स भी अधिक ढलानयुक्त और ज्यादा चिकने नहीं होने चाहिए।

बसों अथवा रेलगाड़ियों में चढ़ते-उतरते वक़्त भी सावधानी जरूरी है क्योंकि इनके पायदान घिस-घिसकर चिकने हो जाते हैं जिन पर पैर फिसलने का डर होता है। बरसात के दिनों में तो पक्की सड़कें भी चिकनी हो जाती हैं अत: दुपहिया वाहन फिसलकर गिरने का डर बना रहता है। अत: ऐसे मौसम में अत्यंत सावधानीपूर्वक कम स्पीड पर ही स्कूटर या मोटरबाइक चलानी चाहिए।

जिस व्यक्ति के शरीर में लोच होगी, वह फिसलकर गिरते वक़्त संभल सकता है और चोट लगने से बच सकता है अत: शरीर में लोच बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य के नियमों का पालन करना चाहिए। नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। अधिकाधिक मात्र में सादा और प्राकृतिक भोजन लेना चाहिए तथा पर्याप्त मात्र में फलों और सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए।

इसके अतिरिक्त हम सब का भी यह दायित्व है कि बच्चों और बुजुर्गों को चोट और पीड़ा से बचाने के लिए उन्हें उचित परिवेश उपलब्ध कराएं। विशेष रूप से चिकनाई की बूंदें और साबुन के टुकड़े बाथरूम के फर्श पर बिल्कुल नहीं होने चाहिएं। बुजुर्गों को फ्रेक्चर से बचाना वैसे भी बहुत जरूरी है क्योंकि चोट लगने पर उन्हें ज्यादा कष्ट होता है और हीलिंग भी देर से होती है। कभी-कभी तो चोट ताउम्र ठीक नहीं होती अत: सावधानी अत्यंत अनिवार्य है। ऐसे में सावधानी ही उचित एवं अत्यंत कारगर उपचार प्रतीत होता है।


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