जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: सचिन पायलट पिछले दो दिन से दिल्ली में हैं, लेकिन खामोश हैं। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं से उनकी चर्चा हो रही है। उन्होंने जयपुर में अपने करीबियों को भी शांत रहने और संवेदनशीलता बरतने की हिदायत दे रखी है। पायलट की निगाह कांग्रेस अध्यक्ष से गहलोत के मिलकर लौटने के बाद 10 जनपथ की तरफ टिकी है। उनके एक अति करीबी का कहना है कि हमारे नेता संयम वाले हैं। सब्र का फल मीठा होता है। इसलिए भरोसा रखकर इंतजार करना चाहिए। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी साफ कर दिया है कि अगले दो दिनों में राजस्थान के मुख्यमंत्री को लेकर कोई निर्णय हो जाएगा।
दूसरी तस्वीर 10 जनपथ की है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मंशा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में उतारने की थी। उन्होंने 22 सितंबर को इसे लेकर गहलोत से बात की थी। 23 सितंबर को गहलोत राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उनसे मिलकर लौटे थे। अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने, नामांकन दाखिल करने का संकेत दिया था। लेकिन गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष से मिलने के बाद अशोक गहलोत ने खुद साफ मना किया। उन्होंने मीडिया से कहा कि अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।
अशोक गहलोत का यह निर्णय सुनाना, उनके (गहलोत) कांग्रेस अध्यक्ष से हुई बातचीत की तरफ संकेत कर रहा है। कहीं न कहीं एक इशारा यह भी है कि गहलोत की साख को झटका लगा है। उन्होंने एक संदेश और दिया कि वह एक लाइन का प्रस्ताव नहीं पारित करा सके। गहलोत के इस एक लाइन के प्रस्ताव से आशय राजस्थान के मुख्यमंत्री के बारे में कोई फैसला करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अधिकृत करना था। लेकिन गहलोत समर्थक विधायकों और मंत्रियों के अक्रामक रुख के सामने कांग्रेस पार्टी अपने उद्देश्य को नहीं पा सकी।
गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष से मिलने के बाद गहलोत ने एक और महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री के बारे में कोई फैसला करने का अधिकार सोनिया गांधी को दे दिया। अब सूचना है कि एक बार फिर पार्टी के पर्यवेक्षक जयपुर जाएंगे। विधायक दल की बैठक होगी और इसमें प्रस्ताव पारित होगा। इस प्रस्ताव में मुख्यमंत्री के बारे निर्णय करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष को अधिकृत किया जाएगा।
अशोक गहलोत 71 साल के राजनेता हैं। तीन बार के मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री पार्टी के कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। बहुत बारीकी से राजनीति करते हैं। गहलोत के बारे में आम है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के तौर पर उनका आदर करती हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से भी राजस्थान के मुख्यमंत्री के रिश्ते बहुत अच्छे हैं। 2018 में गुजरात विधानसभा चुनाव में गहलोत ने अपनी राजनीतिक शैली का लोहा भी मनवाया था।
हालांकि अशोक गहलोत ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लडऩे में दिलचस्पी नहीं दिखाई। उन्होंने इससे अधिक महत्व राजस्थान के मुख्यमंत्री पद को दिया। उनके इस प्रयास ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी काफी चौंकाया। 24 अकबर रोड के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जयपुर में काफी कुछ उम्मीद से परे हुआ। हालांकि वह कहते हैं कि अशोक गहलोत पार्टी के एक सम्मानित नेता हैं। पार्टी में उनका रुतबा हमेशा बना रहेगा। सूत्र का कहना है कि कांग्रेस एक लोकतांत्रिक पार्टी है और यहां कोई भी निर्णय पार्टी के हित में होता है।
कांग्रेस पार्टी के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि राजस्थान में मुख्यमंत्री पद और पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव सम्मानजनक तरीके से सम्पन्न हो जाता, तो कांग्रेस के लोकतंत्र को मजबूती मिल जाती। सूत्र का कहना है कि देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को जबरदस्त आघात पहुंच रहा है। पार्टियां अपने नए अध्यक्ष का फैसला अपने हिसाब से कर रही हैं। ऐसे समय में कांग्रेस पार्टी ने बाकायदा लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करते हुए चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया है। ऐसे में पार्टी के भीतर पैदा हुईं राजस्थान जैसी स्थितियां लोकतांत्रिक मूल्यों को काफी प्रभावित करती हैं।