जनवाणी ब्यूरो |
बागपत: भारतीय जनता पार्टी बागपत के वरिष्ठ नेता एवं ग्रामीण विकास पंचायत राज उत्तर प्रदेश के सदस्य डॉ. नीरज कौशिक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का लाभकारी मूल्य एफआरपी रूपए 10 की बढ़ोतरी करने पर धन्यवाद एवं आभार व्यक्त किया।
डॉ. नीरज कौशिक ने कहा की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का 80 फ़ीसदी अपना घरेलू खर्च चलाने के लिए दूध की बिक्री पर निर्भर है। परंतु कोरोना के कारण दूध की कीमत घटने और आय प्रभावित होने से 6 से 12 महीने बाद मिल से भुगतान पाने वाले गन्ना किसानों का कष्ट पहले से ज्यादा बढ़ गया है।
गन्ना किसानों के बकाया भुगतान को हमेशा ही राजनितिक दल मुद्दा बनाते रहे हैं। गन्ने को भारत की मूल फसल माना जाता है। भारत में चीनी उद्योग तब बढ़ना शुरू हुआ जब नील का व्यवसाय मंदा पड़ने लगा क्योंकि जर्मनी में रंग बनाने की नई तकनीक विकसित हो गई थी। साल 1920 में भारत में इंडियन शुगर समिति की स्थापना हुई।
उससे पहले ही उत्तर प्रदेश के देवरिया के प्रतापपुर में 1903 में चीनी मिल शुरू हो गयी थी। द शुगरकेन एक्ट 1934 द्वरा प्रदेश सरकार को गन्ने का न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने का अधिकार मिल गया था। उत्तर प्रदेश में 1935 में गन्ना विकास विभाग बनाया गया। आज उत्तर प्रदेश पूरे भारत में सबसे ज्यादा चीनी पैदा करता है।
प्रदेश में 2013 में गन्ना नीति भी लागू कर दी गई है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में निजी क्षेत्र में 94, सहकारी क्षेत्र में 24 और शुगर कॉरपोरेशन के अधीन एक चीनी मिल में गन्ने की पेराई हो रही है।
गर्व से हम भले कह लें कि उत्तर प्रदेश पूरे भारत में सबसे ज्यादा चीनी का उत्पादन करता है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है। तीनो पक्ष यानी गन्ना किसान, चीनी मिल मालिक और राजनितिक दल इसमें अपनी अपनी बात कह रहे हैं।
किसानों पर अपने किसान क्रेडिट कार्ड के कर्ज को ब्याज और जुर्माने के साथ लौटाने का दबाव है, बच्चों के स्कूल और कॉलेज की फीस जमा करने के साथ उन्हें अपना घर भी चलाना है।
केंद्र सरकार द्वारा आगामी वर्ष के लिए गन्ने के उचित लाभकारी मूल्य एफआरपी में रूपए 10 की वृद्धि से भी किसान नाखुश जरूर है। लेकिन गन्ना किसानों के इस बढ़ोतरी से आने वाले दिन बेहतर होने वाले हैं। यह सर्वज्ञात तथ्य है कि गन्ना सीजन में चीनी मिलें किसानों से गन्ना तो ले लेती है परंतु किसानों को भुगतान करने में वर्षों लगा देती है।
सरकार एवं सर्वोच्च न्यायालय ने मिलों को गन्ना किसानों के भुगतान के पैसे ब्याज समेत चुकाने को कहा है तब से चीनी मिलें ब्याज से बचने के लिए गन्ना किसानों का भुगतान समय पर करने लगी है। अगर मिल मालिक समय पर भुगतान नहीं करेंगे तो उन्हें 15 फ़ीसदी ब्याज देना होगा, किसानों को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
गन्ना किसानों को समझना होगा कि खराब समय बीत गया है। एफआरपी में रूपए 10 की वृद्धि होने से भी गन्ना किसानों को उदास होने की जरूरत नहीं है क्योंकि हम सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले के अनुसार एसएपी के हकदार हैं।
प्रधानमंत्री मोदी जी के वादे के मुताबिक उत्पादन लागत के 50 फ़ीसदी ज़्यादा के फार्मूले के अनुसार रूपए 450 प्रति कुंतल होगा वहीं गन्ना किसानों को भुगतान समय से होगा।
वैश्विक महामारी के दौरान नौकरी गंवा चुकी युवा पीढ़ी के लिए एक अवसर तैयार करेगा और वह अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र में आएंगे, इससे किसानों की क्रय क्षमता भी बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा भी मिलेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी किसानों को उत्पादक के साथ उद्यमी बनाना चाहते हैं तभी कृषि में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। किसानों को सिर्फ खाद्यान्न तक सीमित नहीं रहना है, किसान व खेती उद्योग के रूप में आगे बढ़ेगी तो बड़े स्तर पर गांव में रोजगार व स्वरोजगार के अवसर पैदा होंगे।