नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। वो साल था सन 1827। जब एक अदम्य साहस से लबरेज, सीने में तूफान और फौलादी जिगर रखने वाले बलवान ने जन्म लिया। वो एक ऐसा विद्रोही क्रांतिवीर था जिसके नाम मात्र से फिरंगी थर-थर कांपते थे। वो भारत मां का ऐसा सपूत जिसको फांसी पर लटकाने के लिए भाग खड़े हुए थे जल्लाद।
वो एक ऐसा क्रांतिकारी था जिसने अंग्रेजी शासकों की चूलें हिला दीं। मां भारती का वो एक ऐसा वीर सपूत था जिसने पहली बार बगावत का बिगुल फूंका। उसने फिरंगियों के खिलाफ एक ऐसी चिंगारी जलाई जिसमें अंग्रेजों की पूरी हुकूमत जलकर राख में तब्दील हो गई।
जी हां, हम बात कर रहे हैं साल 1827 में यूपी के बलिया से ताल्लुक रखने वाले एक ऐसे क्रांतिकारी ने जन्म लिया था, जिसका नाम था मंगल पाण्डेय। जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बैरकपुर में विद्रोह कर क्रांति शुरू की थी। जिन्हें अंग्रेजों ने डरकर 10 दिन पहले ही फांसी दे दी थी।
मंगल पाण्डेय का बचपन आम बच्चों की तरह बीता। वो करीब 18 साल के थे, जब वह ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे। नौकरी के करीब एक साल बाद ही उनकी कंपनी में नई इनफील्ड राइफल लाई गई।
कथित तौर पर इस राइफल की कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली होती थी। इस कारतूस को चलाने के लिए मुंह से काटकर राइफल में लोड करना होता था, जो भारतीय सैनिकों को मंजूर नहीं था। आखिरकार इसी के विरोध में मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को विद्रोह कर दिया।
बंगाल के बैरकपुर छावनी में मंगल पाण्डेय ने कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया। यही नहीं ‘मारो फिरंगी को’ नारे के साथ उन्होंने अंग्रेजों पर हमला तक कर दिया था। परिणाम स्वरूप उनकी गिरफ्तारी हुई और मुकदमा चलाया गया। उन्हें इस विद्रोह के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी।
18 अप्रैल, 1857 यही वो तारीख थी, जब उन्हें फांसी दी जानी थी। मगर अंग्रेजों को डर था कि मंगल पाण्डेय ने विद्रोह की जो चिंगारी जलाई है, वह देशभर में क्रांति ला सकती है। इसलिए तय तारीख से 10 दिन पहले ही उन्हें 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई।
अंग्रेजों के इस फैसले का खूब विरोध हुआ था। यहां तक कि जल्लाद मंगल पाण्डेय को फांसी तक देने के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि, अंग्रेजों के दवाब के कारण उन्हें यह काम करना पड़ा था। मंगल पाण्डेय की फांसी के बाद अंग्रेजो को लगा था कि वो सब संभाल लेंगे, मगर क्रांति की ज्वाला जल चुकी थी।
मंगल पाण्डेय की फांसी के बाद देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध शुरू हो गया था। आम लोगों में भी अंग्रेजों के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा। इस तरह से 1857 की क्रांति के रूप में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम ने जोर पकड़ा और आगे चलकर भारत को आजादी मिली।
मंगल पाण्डेय अब हमारे बीच में नहीं हैं, मगर उनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज है। उनके साहस की कहानी हमेशा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
इस अमर सपूत के सम्मान में भारत सरकार ने 1984 में एक खास डॉक टिकट जारी किया था। मंगल पाण्डेय के जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बन चुकी है। 2005 में ‘मंगल पांडेय-द राइजिंग’ नाम की यह फिल्म रिलीज हुई थी।
What’s your Reaction?
+1
+1
1
+1
+1
+1
+1
+1