Saturday, May 17, 2025
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सादगी और संयम की मिसाल थीं हीराबेन

Samvad 52


11 35वर्ष 2022 जाते-जाते भारत को एक बड़ा झटका दे गया। शुक्रवार, 30 दिसंबर की सुबह एक अत्यंत दुखद खबर आई। खबर यह थी कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माताजी हीराबेन नहीं रहीं। वह 100 वर्ष की थीं। पिछले कुछ दिनों से वह बीमार चल रही थीं। दो दिन पहले उन्हें अहमदाबाद स्थित यूएन मेहता हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती कराया गया था। पीएम मोदी ने खुद अस्पताल जाकर मां से से मुलाकात की थी। वहस्पतिवार दोपहर को अस्पताल की तरफ से जारी मेडिकल बुलेटिन में बताया गया था कि हीराबेन की हालत में सुधार है। इससे लोगों को खुशी हुई लेकिन यह खुशी ज्यादा देर तक ठहर नहीं सकी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा, शानदार शताब्दी का ईश्वर चरणों में विराम। मां में मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एख तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है। मैं जब उनसे 100वें जन्मजिन पर मिला था तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है कि काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से। चूंकि खुद इस दुखद समाचार को प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी ने देश और दुनिया के साथ साझा किया था, इसलिए इसके झूठ या गलत साबित होने की कोई गुंजाइश नहीं थी। इस खबर के फैलते ही पूरा देश शोक में डूब गया।

वर्ष 2014 में देश में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था, इसलिए नरेन्द्र मोदी और उनके परिवार के सदस्यों पर एक स्टोरी करने के लिए मैं पहली बार वडनगर गया। वहां पर हमारी मुलाकात नरेंद्र भाई मोदी के सबसे बड़े भाई सोमभाई मोदी से हुई। उन्होंने हमें अपने परिवार के बारे में विस्तार से बताने के साथ ही अपनी मां हीराबेन के संघर्षों के बारे में बताया कि किस तरह हमारी माताजी ने हम सभी भाई-बहनों का पालन-पोषण किया है। उनकी बातें सुनने के बाद मैंने हीराबेन से मुलाकात करने का फैसला किया। अगले दिन सुबह 10 बजे पंकज मोदी के अहमदाबाद स्थित आवास पर हीराबेन से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

घर के एक कमरे में वह बिस्तर पर बैठी हुई थीं। सोमभाई मोदी के साथ मैं एक सोफे पर बैठ गया। सोभाई मोदी ने उन्हें गुजराती में मेरे बारे में बताया। थोड़ी देर मां-बेटे के बीच वार्तालाप हुआ। मुझे गुजराती नहीं आती थी लेकिन उनके बीच हुए वार्तालाप में अयोध्या का जिक्र आया था, इसलिए मैंने सोमभाई मोदी से पूछा कि माताजी अयोध्या को लेकर क्या कह रही थीं। उन्होंने कहा कि जाने दीजिए. हम कोई कंट्रोवर्सी नहीं चाहते हैं।

मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि आप बताइए, मैं उस बारे में नहीं लिखूंगा। तब सोमभाई मोदी ने कहा कि माताजी कह रही थीं कि नरेंद्र के प्रधानमंत्री बनने के बाद अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर बनेगा। मैंने कहा कि माताजी को इतना विश्वास है कि नरेंद्र भाई देश के प्रधानमंत्री बनेंगे तो सोमभाई मोदी ने कहा कि वह (माताजी) तो बहुत पहले नरेन्द्रभाई से कह चुकी हैं कि तुम एक दिन प्रधानमंत्री बनोगे। जब मैं वहां से चलने लगा तो पता नहीं मेरे मन के अंदर अचानक क्या भाव आया और मैंने झुककर उनके पैर छुए तो उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे खूब सारा आशीर्वाद दिया।

अपने जीवन सफर को पूरा करके हीराबेन आज गोलोक प्रस्थान कर गर्इं। हीराबेन का जीवन बहुत संघर्षमय रहा है। वडनगर की एक संकरी गली में र्इंट और मिट्टी से बने 40 फीट लंबे और 12 फीट चौड़े तीन कमरों के मकान में वह पति दामोदरदास मोदी और अपने पांच बच्चों- सोम (सोमभाई मोदी), अमृत (अमृतभाई मोदी), नरेन्द्र (नरेन्द्रभाई मोदी), प्रह्लाद (प्रह्लादभाई मोदी), पंकज (पंकजभाई मोदी) और बेटी बसंतीबेन के साथ रहती थीं।

इस मकान में दिन में भी घुप अंधेरा रहता था। इसलिए घर में दिन-रात मिट्टी के तेल से जलने वाली डिबरी जलती थी। उस डिबरी से रोशनी के मुकाबले धुआं और कालिख ज्यादा निकलती थी। मोदी परिवार का पुश्तैनी व्यवसाय तेल पेरना और उसकी बिक्री करना था। हीराबेन अपने पति के साथ मिलकर दिनभर कोल्हू से तेल पेरने का काम करती थीं, लेकिन इससे होने वाली आमदनी बहुत सीमित थी।

जब बच्चे बड़े हुए तो घर की जरुरतें बढ़ने लगीं। तेल पेरकर उसकी बिक्री करने से इतनी आमदनी नहीं होती थी कि उससे परिवार को ठीक तरह से पाला जा सके। इसीलिए अतिरिक्त कमाई के लिए उन्होंने चाय की दुकान खोली। सोमभाई मोदी के अनुसार, हम लोग जब छोटे थे तो हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इसके बावजूद माताजी ने हम सभी भाई-बहनों को शिक्षित बनाया। कई बार ऐसा होता था कि हम लोगों को खाना खिलाने के बाद रसोई में कुछ नहीं बचता था। हमारी मां ने अपना पेट काटकर हम लोगों को बड़ा किया है।

सुबह 3.30 बजे डॉक्टरों ने हीराबेन के इस दुनिया में नहीं रहने की पुष्टि की। प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी और उनका परिवार जानता था कि मां के निधन की खबर जैसे ही फैलेगी वैसे ही लोग अहमदाबाद की चल पड़ेंगे। इसीलिए सुबह 9.30 बजे अंतिम संस्कार का फैसला किया गया।

पीएम नरेंद्र मोदी और उनके भाई पंकज मोदी जब मां के पार्थिव शरीर को कंधे पर लेकर श्मशान के लिए रवाना हुए तो साथ में चल रहे परिवार के सबसे बड़े बेटे सोमभाई मोदी फफक-फफक कर रोने लगे। श्मशान गृह में मां हीराबेन को मुखाग्नि देने के बाद पीएम नरेन्द्र मोदी भावुक हो गए लेकिन उन्होंने स्वयं ही खुद को संभाला। वे जानते थे कि दुख की इस घड़ी में अगर वह कमजोर हुए तो परिवार के दूसरे लोग भी कमजोर पड़ जाएंगे।
(लेखक नरेंद्र मोदी: द ग्लोबल लीडर पुस्तक के लेखक हैं)


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