खुशदीप सहगल |
करीब 51 साल पहले राजेंद्र कुमार और रेखा की एक फिल्म आई थी-‘गांव हमारा, शहर तुम्हारा’। गांव से शहर की ओर पलायन पर बनी इस फिल्म में मुहम्मद रफी का गाया टाइटल सॉन्ग बहुत हिट हुआ था- ‘अपना गांव संभालो, मैं तो शहर की ओर चला’। कहते हैं न काल का पहिया घूमता है। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर और जापान की राजधानी टोक्यो में ऐसा ही कुछ हो रहा है। जापान सरकार ने वहां शहर से गांव की ओर पलायन की उलटी गंगा बहाने के लिए अब कमर कसी है। टोक्यो की आबादी करीब पौने चार करोड़ की है। जापान सरकार नागरिकों को टोक्यो छोड़ने के लिए एक मिलियन येन यानी करीब सवा छह लाख रुपए भी दे रही है। दरअसल टोक्यो में सुविधाओं की तुलना में आबादी का अनुपात बढ़ जाने से वहां बुनियादी ढांचा दबाव में है। इसलिए सरकार चाहती है कि लोग टोक्यो छोड़कर आसपास के कम जन-घनत्व वाले इलाकों में जाकर अपने बसेरे बनाएं। दरअसल ये नौबत पूंजीवाद को बढ़ावा मिलने की वजह से आई। अवसरों की तलाश में युवा शहरों की ओर कूच करने लगे और गांवों में सिर्फ़ बुजुर्ग ही अधिकतर दिखाई देने लगे। दरअसल जापान सरकार ने 2019 से ही कम विकसित इलाकों को विकसित करने के लिए इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया था। इस तरह की प्लानिंग में टोक्यो में रहने वाले लोग दूसरी जगह जाकर भी वर्क फ्रॉम होम मोड में काम कर सकते हैं। नई जगह बिजनेस शुरू करने के लिए अधिक सरकारी वित्तीय मदद हासिल कर सकते हैं। 2।93 करोड़ की आबादी के साथ दिल्ली भी टोक्यो से ज्यादा पीछे नहीं है। क्या भारत सरकार भी दिल्ली पर दबाव घटाने के लिए ऐसा कोई कदम उठाएगी। क्या 1971 का गाना रिवर्स हो सकेगा- ‘अपना शहर संभालो, मैं तो गांव की ओर चला’।
बॉलीवुड के अच्छे दिन क्यों अब बीते दिनों की बात?
सिंगल स्क्रीन थिएटर्स अब नोस्टेलजिया बन कर रह गए हैं। तीन-चार दशक पुरानी बात करें तो छोटे शहरों में भी सिंगल स्क्रीन थिएटर्स की भरमार होती थी। कभी एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन, ही मैन धर्मेंद्र, रोमांस किंग राजेश खन्ना की फिल्में देखने के लिए दर्शकों से हर वक्त गुलजार रहने वाले ये सिंगल स्क्रीन थिएटर्स या तो अब शॉपिंग कॉम्पलेक्स की शक्ल ले चुके हैं या भूतहा इमारतों में तब्दील होकर अपने हालात पर रो रहे हैं। उदारीकरण के साथ लोगों की जेब मोटी हुई तो देश में मल्टीप्लेक्स सिनेमाहॉल्स का चलन बढ़ा। टिकट बेतहाशा महंगे हुए। पॉपकॉर्न, सॉफ्ट ड्रिंक्स, पानी, बर्गर, समोसा जैसा खाने पीने का सामान यहां बाजार भाव से दस-दस गुना महंगा मिलने लगा। आज चार सदस्यों वाले परिवार का मल्टीप्लेक्स में जाकर फिल्म देखना दो हजार रुपए से कम नहीं बैठता। मल्टीप्लेक्स या सिनेमा हॉल मालिकों ने दर्शकों पर अपने साथ घर से खाना या पीने का पानी लाने पर भी रोक लगा दी। ये तो भला हो कुछ साल पहले कोर्ट के आदेश का जिसमें पीने का स्वच्छ पानी दर्शकों को मुफ़्त उपलब्ध कराने के लिए कहा गया। मल्टीप्लेक्स या सिनेमा हॉल्स में खाने-पीने का महंगा सामान मिलने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का 3 जनवरी 2023 का फैसला गौर करने लायक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में बाहर से खाने की चीजें लाने पर रोक लगाना सही है। यह सिनेमा हॉल मालिकों के व्यापार के अधिकार के दायरे में आता है और इसे उनसे छीना नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी को भी हॉल परिसर में मिलने वाली चीजें खाने के लिए मजबूर नहीं किया जाता, जिसे वहां न खाना हो, न खाए। दरअसल जम्मू-कश्मीर के सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स मालिकों ने 2018 में आए हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने तब यह आदेश दिया था कि सिनेमा हॉल में आने वाले लोग बाहर से खाने की चीजें ला सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया। जिस तरह बॉलीवुड फिल्में लगातार पिट रही हैं, ओटीटी की घर-घर में पैठ बढ़ी है, हिंदी सिनेमा के हालात बद से बदतर होते नजर आते हैं। जरूरत सबके मिल बैठकर कुछ नये रास्ते निकालने की है। पिछले साल 16 सितंबर को मल्टीप्लेक्स मालिक एसोसिएशन ने राष्ट्रीय सिनेमा दिवस पर 75 रुपए के टिकट पर फिल्म देखने का मौका दिया तो दर्शक सिनेमा हॉल्स पर टूट पड़े।
स्लॉग ओवर
न्यू इयर इव पार्टी पर मक्खन अकेला एक टेबल पर बैठा था। वहां और लोगों को पार्टी एन्जॉय करते देख मक्खन किस्मत को कोस रहा था कि उसकी कोई पार्टनर क्यों नहीं?
तभी मक्खन को एक बेहद खूबसूरत लड़की गजब स्माइल के साथ अपनी टेबल की ओर आती दिखी।
मक्खन को लगा कि आज तो ऊपर वाले ने सुन ली लगती है।
लड़की ने मक्खन के पास आकर थोड़ा झुकते हुए धीरे से पूछा-‘आर यू सिंगल?’
मन ही मन खुश मक्खन तपाक से बोला, ‘ओ यस यस…आई एम सिंगल’
ये सुनने के बाद लड़की मक्खन की टेबल के साथ पड़ी खाली चेयर उठा कर चल दी।
(लेखक आज तक के पूर्व न्यूज एडिटर और देशनामा यूट्यूब चैनल के संचालक हैं)