Sunday, June 1, 2025
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कितनी आवश्यक है बच्चों की ट्यूशन

Balvani


एक समय था जब केवल पढ़ाई में कमजोर छात्रों को ही ट्यूशन लगवाई जाती थी और ट्यूशन देने वाले अध्यापकों और ट्यूशन लेने वाले छात्रों को हेय दृष्टि से देखा जाता था किंतु आज समय बिलकुल बदल चुका है। ट्यूशनों और ट्यूशनों ने एक बहुत बड़े व्यवसाय का रूप ले लिया है जहां इस धंधे में लगे लोग हजारों नहीं बल्कि लाखों कमा रहे हैं।

आज योग्यतम बच्चों के लिए भी ट्यूशन पढ़ना अनिवार्य हो गया है क्योंकि यह प्रतियोगिता का युग है। मां-बाप बच्चों की सफलता निश्चित करने हेतु कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते परंतु कुछ शिक्षा प्रणाली भी इस तरह से सख्त हो गई है कि अधिकतर मां बाप को मजबूरी समझ कर भी बच्चों की ट्यूशन रखनी पड़ती है।

स्कूल में अध्यापकों का नजरिया भी ऐसा हो गया है कि एक बार पढ़ाने पर सभी बच्चे उसे समझ लें। पुन: कुछ समझाने में उन्हें कष्ट होता है। हमारे देश की शिक्षा प्रणाली भी ऐसी है कि न तो समय पर पाठ्य पुस्तकों का पुनरीक्षण होता है, न ही समयानुसार उनमें कोई परिवर्तन किए जाते हैं। पब्लिक स्कूलों में अनिवार्य पाठ्य पुस्तकों के अलावा अन्य कई पुस्तकें जोड़ दी जाती हैं। स्कूलों के अनुसार इससे बच्चों में एक्स्ट्रा रीडिंग का शौक पैदा होता है। इस प्रकार बच्चों के कंधों पर पुस्तकों का बोझ बढ़ता ही जा रहा है।

इन सब बातों को देखते हुए ट्यूशन का बोझ तभी आवश्यक है जब बच्चा किसी विषय को अच्छी तरह से समझ न पा रहा हो। बाकी विषय उसके अच्छे हों तो उसके सर्वांगीण विकास हेतु उस बच्चे को ट्यूशन पढ़ाना आवश्यक है या जो मां बाप पढ़े लिखे तो हैं, व्यस्तता के कारण बच्चों को उचित समय नहीं दे सकते और बच्चे शिक्षा में पिछड़ न जायें, उन बच्चों के लिए भी मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। कितनी भी व्यस्त जिंदगी हो, माता पिता को बच्चों की शिक्षा के लिए उनके सम्पर्क में रहना आवश्यक है। स्कूली अध्यापकों को भी कठिन विषयों पर अधिक समय देकर आसान तरीकों से समझाना चाहिए।

आवश्यकता होने पर ट्यूशन का सहारा लेने से कतरायें नहीं पर बच्चों को ट्यूशन का इतना आदी न बनाएं कि अगर ट्यूशन टीचर 1 महीने की छुट्टी पर चली जाए तो एक महीने में बच्चे की पढ़ाई का स्तर ही गिर जाए। बच्चे को आत्मनिर्भर रहना सिखाएं और उन्हें समझाएं कि वे अध्यापक से अपनी मुश्किलों को ही हल करवाएं। यह नहीं कि जो काम बच्चा खुद कर सकता है, उसके लिए भी वह अध्यापक पर निर्भर रहें। अधिकतर ऐसा ही देखने को मिलता है कि ट्यूशन का एक घंटा तो टीचर बच्चे को स्कूल का होमवर्क करवाने में ही व्यतीत कर देते हैं और बच्चे की समस्याएं वैसे की वैसे पड़ी रहती है। माता-पिता बच्चे को समझाएं कि वह हर समस्या का स्वयं हल करने का प्रयत्न करे और हल न होने पर ही टीचर या माता-पिता की मदद लें।

ट्यूशन के हो सकते हैं नुकसान

आप भी अगर उन माता पिता में से हैं, जिन्हें लगता है कि बिना ट्यूशन बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं हैं, तो आप गलत भी हो सकते हैं। सिर्फ ट्यूशन जाकर ही बच्चा पढ़ाई करेगा आपकी इस सोच से बच्चे को तीन बड़े नुकसान हो सकते हैं। साइकोलॉजिस्ट और करियर काउंसलर बच्चों को ट्यूशन भेजने के तीन बड़े नुकसान बताते हैं। काउंसलर पूनम सेठ मेहरा के मुताबिक ट्यूशन जाने के बच्चे को तीन बड़े नुकसान हो सकते हैं।

  • -पहला नुकसान ये कि बच्चे का सेल्फ कॉन्फिडेंस कम होगा। बच्चे के मन में ये ख्याल आ सकते हैं कि वो खुद पढ़ या समझ नहीं सकता इसलिए उसे ट्यूशन भेजा जा रहा है।

  • -दूसरा नुकसान ये होता है कि बच्चा गैर जिम्मेदार हो जाता है। उसे लगता है कि स्कूल का काम ट्यूशन में कर लेंगे। ट्यूशन का काम स्कूल में कर लेंगे। स्कूल और ट्यूशन में नहीं कर पाए तो घर पर काम कर लेंगे।

  • -तीसरा नुकसान ये है कि बच्चे में टालमटोली की आदत आ जाएगी। बच्चा ऐसा सोचने लगेगा कि आज का काम कल पे डाल दे। वो काम आज कर लेगा या कल कर लेगा।

  • -काउंसलर पूनम सेठ मेहरा के मुताबिक बच्चा जैसे ही स्कूल से घर आए उसे खिला पिलाकर थोड़ा रेस्ट करवाएं। इससे उसका माइंड रेज्युविनेट होगा।

  • -इतनी देर आराम करने के बाद बच्चे को वो पढ़ने के लिए कहें जो उसने स्कूल में दिनभर पढ़ा है। बस हर सब्जेक्ट में कोशिश ये करें कि वो एक पैराग्राफ ज्यादा पढ़ा लें।

  • -इसके बाद बच्चे का पूरा होमवर्क करवा लें। लगातार कुछ दिनों तक बच्चे को ऐसे ही प्रेक्टिस करवाएं। इसके बाद बच्चों की पढ़ाई पर आपको खुद ही असर दिखने लग जाएगा।


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