तरन्नुम अतहर |
अगर आप किसी बच्चे के मां बाप से मिलें और उनसे उनके बच्चे के बारे में पूछें तो यकीनन उनकी हर समस्या उनके बच्चे के बारे में होगी। यहां तक कि कुछ मांएं तो अपने बच्चों को स्कूल भेज कर चैन की सांस लेती हैं। उन्हें लगता है कि बच्चों के साथ उनके सारे काम अधूरे रह जाते हैं और बच्चों की आपसी लड़ाई के चलते वे अपना कोई भी काम नहीं कर पाती।
कानपुर की मिसेज वर्मा के अनुसार, ‘ये दोनों मिलकर तो पूरा घर आसमान पर उठा लेते हैं’। कई बार तो भाई बहन की यह लड़ाई इतनी बढ़ जाती है कि कई मांओं को उन्हें कंट्रोल करने के लिए पिटाई तक करनी पड़ती है। आइए जाने बच्चों की ऐसी ही कुछ समस्याएं और उनके समाधान को:-
गुस्से का दौरा पड़ने पर
समाधान: कभी भी अगर आपको बच्चा गुस्से में दिखे तो उस पर हमदर्दी दिखाने के बजाए उसे थोड़ी देर वैसे ही छोड़ दें। बच्चे को अपने ऊपर हावी न होने दें। बच्चे को मनाने के लिए उसकी बेवजह मांगों को न पूरा करें। बच्चे को एकांत में कुछ देर छोड़ दें और फिर थोड़ी देर के बाद उसके गुस्से के शांत होने पर उससे बात करें। अगर बच्चा कोई अच्छा कार्य करता है तो आपके प्यार को दर्शाता हुआ उस कार्य का कोई छोटा सा तोहफा उसे मिलना चाहिए और हर गलत कार्य के लिए उसे फौरन सजा पर छोटी सी, मिलनी चाहिए जिससे उसे अच्छे बुरे काम की पहचान हो।
भाई-बहन की आपसी लड़ाई
समाधान : जरूरी नहीं कि एक ही मां-बाप की संतान होने का यह मतलब है कि दोनों बच्चों के विचार भी एक हों और वे दोनों प्यार से रहें। भाई-बहन होने पर भी बच्चों के स्वभाव में भिन्नता होती ही है। पहले पहल तो मां बाप को बच्चों को समस्याओं को स्वयं ही सुलझाने देना चाहिए लेकिन अगर लड़ाई में आपको भाग लेना ही पड़ रहा हो तो अपना निर्णय कभी भी उन पर नहीं थोपना चाहिए। बच्चों को मिल बांट कर रहने और खाने का तरीका बताइए। उन्हें बताइए कि आज अगर वे अकेले हैं तो कल को कोई और भी उनके साथ हो सकता है।
बड़े होते बच्चे एक समस्या बन जाते हैं। उन्हें अपने बच्चों से यही शिकायत रहती है कि वे उनकी बात नहीं मानते जबकि बच्चों का कहना होता है कि उनके मां-बाप उनके प्रत्येक काम में दखल देते हैं। दोनों के ही अपने-अपने रवैये के कारण तनाव उत्पन्न होता है। ऐसा अक्सर इसलिए होता है कि बढ़ती उम्र के बच्चों में अपना एक नजरिया विकसित होता है। वे चीजों को बहुत बारीकी से देखते हैं। वे लोगों के प्रति अपनी राय व्यक्त करते हैं। माता-पिता अब भी उन्हें एक छोटा बच्चा समझते हैं व उन पर अपने विचार थोपते हैं।
माता-पिता का यह रवैया उनमें बगावत पैदा करता है लेकिन यदि मां-बाप अपने व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन ला अपने बच्चे के बढ़ते व्यक्तित्व को समझें तो इस तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के मित्र बनें। कुछ मामलों में अपने बच्चों की राय भी लें।
- बच्चों से कोई भी बात मनवाने के लिए उन्हें मजबूर न करें। अपनी बात को तर्कसंगत ढंग से बच्चों को समझाने का प्रयत्न करें।
- बच्चों के प्रति तानाशाही रवैया न अपनाएं क्योंकि इससे बच्चों में आपके प्रति विद्रोह उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
- अक्सर माता-पिता की यह आदत होती है कि वे अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से करते हैं। आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि बच्चे अपनी तुलना पसंद नहीं करते चाहे यह तुलना उनके भाई-बहन से ही की गई हो। इस तुलना से आपके और बच्चे के बीच दूरी बढ़ सकती है।
- अपने बच्चों को पूरी छूट दें लेकिन उन पर निगाह भी अवश्य रखें। आपका बच्चा किस रास्ते पर जा रहा है इस विषय में आपको पूरी जानकारी होनी चाहिए।
- बच्चों को व्यर्थ की डांट-फटकार न लगायें क्योंकि इससे बच्चों में हीन भावना भी पनप सकती है।
- अपने बच्चों को अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ दें लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि उन्हें सही और गलत की पूरी जानकारी दें। बच्चों को समझाना भी आपका ही काम है।
- बच्चों से आदर पाना कोई मुश्किल काम नहीं है। यदि आप अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करें तो वे आपको इज्जत देने के साथ-साथ आपकी बात भी मानेंगे।
किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें बच्चों को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है। ऐसे समय में वे ज्यादा स्वतंत्रता चाहते हैं इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे उन्हें स्वतंत्रता दें लेकिन उन पर पूरा ध्यान रख कर। अपने बच्चों को अपने से दूर न जाने दें।