नरेंद्र देवांगन |
भोजन जीवन का आधार है। शुद्ध, सात्विक, पौष्टिक और संतुलित भोजन से शरीर स्वस्थ ही नहीं, निरोग भी रहता है। भोजन रोग भी पैदा करता है और रोगों की चिकित्सा भी करता है, इसलिए बीमारी में परहेज और पथ्य दवाओं से अधिक प्रभावकारी होता है। खास बात यह है कि ज्यादातर लोग भोजन में स्वाद की तलाश करते हैं और उसे सिर्फ जीने की जरूरत मानकर चलते हैं। वे भोजन को स्वस्थ, सुखद और दीर्घ जीवन से जोड़कर नहीं देखते। सच यह है कि हमारा गलत खानपान ही हमारे अनेक रोगों का कारण है। यदि नियम और समय से सात्विक और संतुलित खानपान रखा जाए तो बहुत-सी बीमारियों से तो बचा जा ही सकता है, साथ ही यह लंबी उम्र का भी राज है।
भोजन हमें जीवित तो रखता ही है, साथ ही स्वस्थ और निरोग भी बनाता है किंतु फिर भी आम धारणा यह है कि लोगों में खानपान का कई तरह से बुरा प्रभाव पड़ता है, जबकि असल बात यह है कि किसी भी तरह का कोई गलत प्रभाव खाने से नहीं, उसके तरीके और नियम विरूद्ध खाने से पड़ता है। लोग मोटे होते हैं तो खानपान में बदलाव करते हैं और दुबले होते हैं तो पौष्टिक आहार की तलाश में रहते हैं। वास्तव में व्यक्ति जिस तरह का काम करता है, उस तरह का उसका भोजन होना चाहिए।
इसी तरह व्यक्ति जिस तरह का भोजन करता है, उस तरह का उसका काम भी होना चाहिए। इन दोनों बातों का संतुलन नहीं होने पर ही खानपान का उल्टा असर होता है। जिस व्यक्ति के पास पौष्टिक भोजन की पर्याप्त सुविधा है पर वह दिन भर बैठा-बैठा काम करता है, ज्यादातर आराम करता है, उसके शरीर के सेल पौष्टिक भोजन से बढ़ जाते हैं और शारीरिक श्रम न करने से वह मोटा हो जाता है।
इसी तरह शारीरिक श्रम करने वाले लोग, मजदूर ज्यादातर दुबले-पतले होते हैं, क्योंकि वे जितना श्रम करते हैं, उस स्तर का भोजन उन्हें नहीं मिलता।
आमतौर पर लोगों को भोजन के समय जो कुछ और जैसा भी मिलता है खा लेते हैं लेकिन असल में देखा जाए तो कुल रोगियों में सबसे अधिक रोगी ऐसे ही मिलेंगे जिनके रोग का मूल कारण खानपान की गलतियां हैं। लोग शायद ही कभी इस सच्चाई तक पहुंचते होंगे कि हम भोजन क्यों करते हैं, इससे हमें क्या लाभ होता है? किस तरह का भोजन करना चाहिए, किस तरह का नहीं? इसके बाद इस बात पर सोचना तो और भी मुश्किल है कि भोजन कब और कैसे किया जाना चाहिए? भोजन के बारे में हमेशा ध्यान दें कि भोजन कैसा हो, कब खाएं और कैसे खाएं?
कैसा हो भोजन
शरीर को शक्ति पौष्टिक और पाचक आहार से मिलती है। भोजन से मिली शक्ति ही जीवन-शक्ति पैदा करती है, इसलिए आहार ऐसा होना चाहिए, जो पौष्टिक, सुपाच्य हो और दिन भर में खर्च हुई हमारी शक्ति की भरपाई कर सके। सामान्य सिद्धांत है कि भोजन जितनी शीघ्रता और सरलता से पचता है, उससे उतनी ही जीवन शक्ति पैदा होती है। जिन खाद्य पदार्थों का प्राकृतिक रूप हम पका कर, सेंककर, घी-नमक मसाले और खटाई आदि डालकर बदलते हैं वे ठीक से पचते तो हैं ही नहीं, साथ ही उतनी जीवन शक्ति भी नहीं देते। पकाए हुए पदार्थ जिन पर घी मसाले कम होते हैं, वे ही जल्दी पच सकते हैं।
भोजन हमेशा ताजा करना चाहिए। ठंडा भोजन देर में हजम होता है। यदि भोजन में गरिष्ठ पदार्थ अधिक हों तो उनके साथ फल अवश्य खाना चाहिए। इससे भोजन संतुलित हो जाता है। यदि खाद्य पदार्थ ठोस हों तो उनके साथ दूध या लस्सी जैसे तरल पदार्थ लें, साथ ही हमेशा एक जैसा भोजन नहीं करें। अदल-बदलकर भोजन करने से भोजन रूचिकर लगता है और अच्छी तरह हजम होता है।
कब खाएं
भोजन उस समय खाना चाहिए जब तेज भूख लगे। जो लोग निश्चित समय पर भोजन करते हैं, उन्हें भूख भी उसी समय लगती है। जब जोर से भूख लगती है, तब जो कुछ खाया जाए, स्वादिष्ट लगता है एवं जल्दी हजम हो जाता है।
रात को 8 बजे तक भोजन कर लेना चाहिए। वर्षा ऋतु में सूर्यास्त होते ही भोजन करना चाहिए। भोजन में सुबह का नाश्ता पौष्टिक होना चाहिए। दोपहर को पूरा भोजन व रात को हल्का भोजन लेना चाहिए पर रात्रि का भोजन दिन से हल्का होना चाहिए। शाम को फल या हल्की चीजें ली जा सकती हैं।
कैसे खाएं
भोजन हमेशा शांत-चित्त होकर करें। यदि भोजन करते समय दिमाग में कई विचार या चिंतन रहेगा तो भोजन करने में रूचि नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति में पेट में पहुंचे भोजन का पर्याप्त लाभ नहीं मिलता। भोजन करते समय पहले मीठे पदार्थ खाने चाहिए। इससे आमाशय में भरी हुई वायु नष्ट हो जाती है। यदि मीठा पेय हो तो और अच्छा है। इसके बाद नमकीन और खट्टे पदार्थ खाने चाहिए।
कितना खाएं
अधिकांश लोग सोचते हैं कि अधिक खाने से शरीर अधिक बलवान होता है। यह उनकी गलतफहमी है। भोजन उतना ही पर्याप्त होता है जितने से पेट भर जाए। खाना खाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पेट ठूंस कर न भरा जाए।
भोजन की मात्र निर्धारित कर पाना कठिन है, क्योंकि जो लोग शारीरिक श्रम करते हैं और जिनके भोजन में घी, दूध, फल और मेवों की कमी होती है, उनका शरीर इन चीजोंं की कमी प्रोटीन एवं स्टार्च से पूरी करता है, इसलिए उनके भोजन की मात्र अधिक होती है। वहीं जो दिमाग का काम करते हैं और जिनके भोजन में दूध घी, फल तथा मेवा, मक्खन की पर्याप्त मात्र होती है, उनके भोजन की मात्र कम होती है।