- फिजा में घोल रही जहर, शरीर में बीमारी परोस रही काले नमक की फैक्ट्री
- क्षेत्र में कई स्थानों पर जहरीला धुआं उगल रही फैक्ट्री
जनवाणी संवाददाता |
रोहटा: प्रदूषण की मार से कराह रहे एनसीआर में बिन मानक और प्रदूषण विभाग की एनओसी के चल रही काला नमक बनाने की फैक्ट्री फिजा में जहर घोल कर जले पर नमक छिड़क रही हैं। जिले भर में विभिन्न जगहों पर तमाम नियम कायदों को ताक पर अवैध रूप से संचालित हो रही काला नमक बनाने की फैक्ट्री फिजा में जहर घोलने का काम बदस्तूर कर रही हैं।
प्रदूषण विभाग के अधिकारियों की शह और फैक्टरी मालिकों की सेटिंग के बूते पर नमक का काला कारोबार जमकर किया जा रहा है। शहर से लेकर देहात तक में दर्जनों स्थानों पर अवैध रूप से संचालित फैक्ट्री मालिक घटिया किस्म का नमक बनाकर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं। प्रदूषण विभाग की बिना एनओसी व खाद्य विभाग के बिना लाइसेंस तमाम नियम कायदों को ताक पर आबादी क्षेत्र में संचालित हो रही अवैध नमक की फैक्ट्री लोगों को बीमारी परोस रही हैं
निकलने वाले जहरीले धुएं और उड़ते नमक से लोग खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।फैक्ट्री मालिक सेटिंग के बूते पर नमक के काले कारोबार की फैक्ट्री धड़ल्ले से संचालित करके मोटा मुनाफा कमा रहे हैं खुले में संचालित हो रही नमक की फैक्ट्रियां एनसीआर में प्रदूषण में इजाफा करके फिजा में बेरोकटोक धड़ल्ले से खुला जहर घोल रही है।
प्रदूषण बन रहा बड़ा खतरा
काला नमक बनाने में शीरा, बादाम और अखरोट के छिलकों का प्रयोग किया जाता है। वहीं, कोयले के चूरे के साथ शीरा और प्लास्टिक आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाली हानिकारक गैसों के कारण सांस संबंधी बीमारियों का खतरा रहता है। इसकी चपेट में आकर गांव के लोग सांस और टीबी की बीमारी की लगातार चपेट में आ रहे हैं।
यहां संचालित हैं नमक के काले कारोबार की फैक्ट्री
हर्रा, खिवाई, हसनपुर-रजापुर, सिंधावली, मुरलीपुर, सलाहपुर, मवाना रोड स्थित इंचौली व मेरठ शहर में लिसाड़ी गेट में अवैध रुप से काला नमक बनाने की फैक्ट्री संचालित हैं, लेकिन कमाल की बात यह है कि मात्र खिवाई के जंगल में स्थित खिवाई ट्रेडर्स पर प्रदूषण विभाग की एनओसी है, जबकि बाकी सब गोलमाल हैं।
ऐसे बनता है काला नमक
मिट्टी के लगभग 50 किलो की क्षमता के घड़ों में बारीक डली के रूप में सफेद नमक (जिसे सांभर बोलते हैं) सफेद नमक के साथ अन्य शीरा आदि पदार्थ मिलाया जाता है। खुले में चल रही भट्टियों में 10 से 12 घंटे के लिए इस नमक को रखा जाता है और फिर खुले में ही ठंडा किया जाता है।
इससे यह नमक काला पड़ जाता है। सफेद नमक से काले नमक को यदि मानकों के अनुसार नहीं बनाया जाए तो काले नमक से भी ज्यादा हानिकारक होता है। जब ये दोनों नमक आपस में मिल जाते हैं तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह नमक कैसा होगा।
ये होने चाहिए मानक
जिला खाद्य अभिहित अधिकारी दीपक सिंह के अनुसार काला नमक बनाने के दौरान प्रदूषण रहित वातावरण और साफ-सफाई का बेहद ध्यान रखना चाहिए। आयोडीन की निश्चित मात्रा होनी चाहिए। इसमें मिलाए जाने वाले तत्व निर्दोष और ईको-फ्रैंडली होने चाहिए। यह कई प्रोसेस से गुजरता है। गाइड लाइन के तहत ही खाद्य पदार्थ का निर्माण होना चाहिए।
खाद्य सुरक्षा विभाग के मानक अनुसार नमक में निश्चित मात्रा में आयोडीन की मात्रा होनी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध रूप से बनाए जा रहे इस नमक में आयोडीन ही नहीं होता। जिला खाद्य अभिहित अधिकारी दीपक सिंह अधिकारी के अनुसार आयोडीन की कमी से गोयटर या घैंघा आदि रोगों का खतरा बढ़ जाता है। वहीं, यह गर्भवती महिलाओं के लिए भी खतरनाक होता है।
क्या कहते हैं अधिकारी
इस संबंध में जिला खाद्य अभिहित अधिकारी दीपक सिंह से बात की गई तो उनका कहना था कि इस संबंध में इन अवैध रूप से संचालित काले नमक की फैक्ट्रियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है और नहीं फूड विभाग द्वारा कोई लाइसेंस जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि वे शीघ्र ही इस मामले को दिखाकर सख्त कार्रवाई कराएंगे।