Friday, December 27, 2024
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मणिपुर में इंसानियत हुई शर्मसार

Samvad


sunil Kumarकल सूरज तो पूरब से ही निकला था, लेकिन 75 दिन बाद। चुप्पी के अमृतकाल के पूरे हो जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर शब्द का इस्तेमाल किया। 3 मई से वहां जारी हिंसा, मौतें, दुष्कर्म, आगजनी, लोगों की बेदखली, उनके विस्थापन का सिलसिला चल रहा था, लेकिन नरेंद्र मोदी ने एक बार भी इस पर एक शब्द भी नहीं कहा था। अब जब मणिपुर में आदिवासी महिलाओं को गैरआदिवासी भीड़ द्वारा सडकों पर बिना कपड़ों के घुमाने, उनके साथ गैंगरेप करने जैसे वीडियो सामने आए हैं, तब दुनिया भर से हिंदुस्तान के लिए धिक्कार आ रही है, देश के लोग भी हिल गए हैं, आदिवासी तबके अधिक विचलित हैं, लेकिन थोड़े-बहुत विचलित तो सभी लोग हैं, तब जाकर संसद सत्र के ठीक पहले प्रधानमंत्री ने कहा-मणिपुर की घटना से मेरा हृदय पीड़ा और क्रोध से भरा है, किसी भी सभ्य समाज के लिए ये शर्मसार करने वाली है।

उन्होंने कहा बेइज्जती पूरे देश की हो रही है, 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है। उन्होंने मुख्यमंत्रियों से अपील की कि वे अपने-अपने राज्यों में कानून-व्यवस्था मजबूत करें।

अब जब संसद का सत्र शुरू हो रहा है, और वहां पर मणिपुर पर जवाब दिए बिना बचने का कोई रास्ता नहीं है, तब प्रधानमंत्री ने सत्र के ठीक पहले मणिपुर पर एक दार्शनिक अंदाज की बात कही है, जो इस बात को कहीं से भी मंजूर नहीं कर रही है कि उस राज्य में उन्हीं का मुख्यमंत्री है, और देश के गृहमंत्री अमित शाह हिंसा शुरू होने के 25 दिन बाद वहां जाकर भी आए थे।

उनकी महीनों लंबी चुप्पी के बाद अब जाकर जो बयान आया है, वह भी देश के सभी मुख्यमंत्रियों के नाम से एक नसीहत अधिक है। मणिपुर में क्या हुआ, क्यों हुआ, क्या होना चाहिए, कौन जिम्मेदार है, इन सब मुद्दों को मोदी का बयान एक लंबे बांस से भी नहीं छू रहा है।

अभी भी उनके बयान में देश की बेइज्जती और 140 करोड़ देशवासियों की शर्मिंदगी का जिक्र है, मणिपुर में जिन महिलाओं के साथ यह ज्यादती हुई है, उनके लिए हमदर्दी का जिक्र कम है। एक हैरानी की बात यह भी है कि उन्होंने जब सभी मुख्यमंत्रियों से कानून मजबूती से लागू करने की अपील की है, तो उन्होंने राजस्थान, छत्तीसगढ़, मणिपुर, या देश के किसी भी हिस्से की घटना हो, राजनीति से उठकर कानून-व्यवस्था को महत्वपूर्ण बताया है।

हैरानी की बात यह है कि उनके मध्यप्रदेश प्रवास के तुरंत बाद जिस तरह वहां एक आदिवासी के चेहरे पर सार्वजनिक रूप से एक भाजपा नेता ने पेशाब की और जिस वीडियो ने पूरे देश को दहला दिया, उस मध्य प्रदेश का प्रधानमंत्री ने कोई जिक्र नहीं किया। छत्तीसगढ़ का जिक्र किस संदर्भ में उन्होंने किया है, वह याद नहीं पड़ता, क्योंकि यहां ऐसी कोई घटना हाल-फिलहाल में तो हुई नहीं है।

ऐसे में मणिपुर के जिक्र के साथ-साथ कांग्रेस के दो राज्यों का उनका जिक्र कुछ हैरान करता है और यह मुंह से अनायास निकल गए, या मध्यप्रदेश को सायास छोड़ दिए गए मामले नहीं लगते हैं। मणिपुर को लेकर संसद में हंगामा तय था, क्योंकि किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए किसी राज्य में इससे अधिक और इससे बुरा और क्या हो सकता है जो कि आज मणिपुर में रहा है?

ऐसे में भाजपा के मुख्यमंत्री वाले मणिपुर में विपक्ष के राहुल गांधी जाकर आए थे और उन्होंने अपनी मौजूदगी से मणिपुरी लोगों के साथ एकजुटता दिखाई थी। उसके बाद से संसद का सत्र आज ही शुरू हुआ है और इसमें चूंकि यह बवाल खड़ा होना ही था, सिर्फ उसी वजह से प्रधानमंत्री को मणिपुर पर मौन तोड़ना पड़ा।

लेकिन यह तो इतिहास में अच्छी तरह दर्ज हो गया है कि आधा दर्जन देशों में जाकर वे लौट आए, लेकिन उन्होंने मणिपुर का ‘म’ भी मुंह से नहीं निकाला था। प्रधानमंत्री चाहे किसी भी पार्टी या गठबंधन के हों, उन्हें देश की इतनी बड़ी त्रासदी को लेकर कुछ तो बोलना चाहिए था। उनकी दोहरी जिम्मेदारी इसलिए भी होती थी कि मणिपुर डबल इंजन की सरकार वाला प्रदेश था।

देश और प्रदेश दोनों जगह भाजपा के पीएम-सीएम और एचएम हैं। लेकिन शायद यह राज्य सिर्फ देश के नक्शे पर हाशिए पर नहीं है, यह देश की प्राथमिकताओं में भी हाशिए पर है। राजधानी दिल्ली से ढाई हजार किलोमीटर दूर बसे मणिपुर की अनगिनत मौतें भी न दिल्ली की सरकार को हिला पार्इं, न सुप्रीम कोर्ट को हिला पार्इं, न देश के मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग के माथे पर शिकन पड़ी, जहां पर मोदी सरकार के मनोनीत लोग बैठे हुए हैं।

यह इस देश के लोकतंत्र के सत्ता वाले पक्ष की चेतना के स्तर का सुबूत है, जो मणिपुर के पिछले 75 दिनों के दर्ज इतिहास की शक्ल में हमेशा ही काले अक्षरों से लिखा रहेगा। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने हक को पंछी के पंखों की तरह समेटकर रखा, और सरकारों के काम में दखल न देना तय किया, उन सरकारों के काम में, जो अपना काम नहीं कर रही थीं।

यह देश की संवैधानिक विफलता का मामला है कि आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एक बार भी प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार को बुलाकर मणिपुर पर कोई जवाब-तलब नहीं किया। मणिपुर के आदिवासी सामूहिक दुष्कर्म झेलते रहे, सड़कों पर उनका नंगा जुलूस निकाला जाता रहा, लेकिन एक आदिवासी महिला होने के नाते जिसे राष्ट्रपति बनाया गया है, वह राजकीय समारोहों में लगी रहीं।

यह सिलसिला संविधान की बहुत सी संस्थाओं की गैरजिम्मेदारी और नाकामी का सिलसिला है। दूसरी तरफ जो राहुल गांधी भाजपा की हिकारत और उसकी हंसी के शिकार रहते हैं। उन्होंने तमाम सुरक्षा खतरों को उठाते हुए भी मणिपुर जाकर वहां हिंसा करते दोनों तबकों से अलग-अलग बात-मुलाकात की और जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की।

हिंदुस्तानी लोकतंत्र के तीनों तथाकथित स्तंभों के बारे में एक बार फिर सोचने और लिखने की जरूरत है। सरकार, राष्ट्रपति, और अदालत ने न सिर्फ मणिपुर को, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और इंसानियत दोनों को शर्मसार किया है, न सिर्फ हिंदुस्तान में, बल्कि पूरी दुनिया में शर्मसार किया है।

अब संसद आज से शुरू हुई है, जहां विपक्ष का कोई बाहुबल नहीं है और जहां उसकी आवाज को कुचलना अधिक मुश्किल नहीं है, वहां पहली बार मणिपुर के जख्मों की बात उठ रही है और ऐसा लग रहा है कि लोकतंत्र के इन तथाकथित स्तंभों में से किसी एक स्तंभ में तो कुछ जिम्मेदारी दिख रही है। हिंदुस्तान के इतिहास में 75 से अधिक दिनों की यह चुप्पी हमेशा ही चीख-चीखकर अपने अस्तित्व को याद दिलाती यरहेगी।


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