Friday, January 10, 2025
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आयातित उर्वरक पर टिकी भारतीय कृषि

KHETIBADI


‘आत्मनिर्भर भारत’ का चाहे जितना नगाड़ा बजा दें, पर हकीकत में कृषि प्रधान देश भारत की खेती आयातित याने विदेशी उर्वरक पर निर्भर है। यह तथ्य स्वयं केंद्र सरकार ने लोकसभा के बीते सत्र में स्वीकारा है। सरकार द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के आइने में उर्वरक परिदृश्य स्पष्ट हो जाता है।

भारत सालाना 3.7 करोड़ टन से 3.8 करोड़ टन तक उर्वरक उत्पादन करता है, परन्तु भारत की खेती को फर्टिलाइजर की जरूरत, उसके उत्पादन से कहीं अधिक है। देश में वर्ष 2021-22 में 6.40 करोड़ टन उर्वरक की आवश्यकता थी, जिसमें यूरिया, डीएपी, एमओपी सभी शामिल हैं।

देश में रसायनिक उर्वरकों की खपत में यूरिया की बड़ी हिस्सेदारी है। फॉस्फेटिक फर्टिलाइजर महंगे होने के कारण किसान खेती की लागत में कमी करते हुए यूरिया का उपयोग ज्यादा करते हैं। कृषि आदानों की बढ़ती कीमतें और फसल के अलाभकारी मूल्यों के कारण खर्चों में कटौती करते हुए कृषक उर्वरकों का संतुलित उपयोग नहीं करते हैं।

गत 5 वर्षों में देश में यूरिया की आवश्यकता 298 लाख टन (वर्ष 2017-18) से बढकर 2021-22 में 356.53 लाख टन हो गई। परन्तु यूरिया का स्वदेशी उत्पादन 2017-18 के 240.23 लाख टन से बढकर 2021-22 में मात्र 250.72 लाख टन ही हो पाया। सरकार ने वर्ष 2021-22 में शेष आवश्यकता की पूर्ति के लिए 6041 मिलियन यूएस डॉलर का 91.36 लाख टन यूरिया आयात किया।

ड्रैगन देश चीन को हम चाहे जितनी गाली दें, परन्तु भारत की यूरिया-डीएपी की सप्लाई सबसे ज्यादा वहीं से आती है। वर्ष 2021-22 में चीन से 25.91 लाख टन यूरिया और 18.15 लाख टन डीएपी आयात किया गया था। अन्य प्रमुख देशों में ओमान, कतर, अलजीरिया एवं अन्य खाड़ी के देश हैं।

यह निर्विवाद है कि वर्ष दर वर्ष भारत में खाद्यान्न उत्पादन का रिकॉर्ड बनाने में विपुल उत्पादन देने वाली किस्मों और उर्वरक उपयोग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। परन्तु यह भी हकीकत है कि वर्तमान में रसायनिक उर्वरकों के अपेक्षानुसार परिणाम नहीं मिल रहे हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने की अपील से देश का कृषि मंत्रालय और भाजपा शासित राज्य प्राकृतिक खेती को जोर-शोर से फैलाने में जुट गए हैं। जबकि रसायनिक उर्वरक प्रयोग का मर्ज त्यों-त्यों बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।

भारत में हुई हरित क्रांति में विपुल उत्पादन देने वाली किस्मों और उर्वरक उपयोग की महत्वपूर्ण भूमिका रही। रसायनिक उर्वरक के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने वाली टेक्नालॉजी के खिलाफ पर्यावरणविद् आवाज निरंतर उठाते हैं। खाद-बीज की बढ़ती लागत और फसल के ठिठके दामों से हैरान किसान भी उर्वरक का समुचित उपयोग नहीं करते हैं। इन सब विरोधाभासों के मध्य भारत की खेती उर्वरकों के आयात पर निर्भर है।


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