बाल गंगाधर तिलक भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी थे पर साथ ही साथ वे अद्वितीय कीर्तनकार, तत्वचिंतक, गणितज्ञ, धर्म प्रवर्तक और दार्शनिक भी थे। हिंदुस्तान में राजकीय असंतोष मचाने वाले इस करारी और निग्रही महापुरुष को अंग्रेज सरकार ने मंडाले के कारागृह में छह साल के लिए भेज दिया। यहीं से उनके तत्व चिंतन का प्रारंभ हुआ। दुख और यातना सहते-सहते शरीर को व्याधियों ने घेर लिया था। ऐसे में ही उन्हें अपने पत्नी के मृत्यु की खबर मिली। उन्होंने अपने घर एक खत लिखा-आपका तार मिला। मन को धक्का तो जरूर लगा है। हमेशा आए हुए संकटों का सामना मैंने धैर्य के साथ किया है। लेकिन इस खबर से मैं थोड़ा उदास जरूर हो गया हूं। हम हिंदू लोग मानते हैं कि पति से पहले पत्नी को मृत्यु आती है तो वह भाग्यवान है, उसके साथ भी ऐसे ही हुआ है। उसकी मृत्यु के समय मैं वहां उसके करीब नहीं था इसका मुझे बहुत अफसोस है। होनी को कौन टाल सकता है? परंतु मैं अपने दुख भरे विचार सुनाकर आप सबको और दुखी करना नहीं चाहता। मेरी गैरमौजूदगी में बच्चों को ज्यादा दुख होना स्वाभाविक है। उन्हें मेरा संदेशा पहुंचा दीजिए कि जो होना था वह हो चुका है। इस दुख से अपनी और किसी तरह की हानि न होने दें, पढ़ने में ध्यान दें, विद्या ग्रहण करने में कोई कसर ना छोड़ें। मेरे माता पिता के देहांत के समय मैं उनसे भी कम उम्र का था। संकटों की वजह से ही स्वावलंबन सीखने में सहायता मिलती है। दुख करने में समय का दुरुपयोग होता है। जो हुआ है उस परिस्थिति का धीरज का सामना करें। अत्यंत कष्ट के समय पर भी पत्नी के निधन का समाचार एक कठिन परीक्षा के समान था। किंतु बाल गंगाधर तिलक ने अपना धीरज न खोते हुए परिवार वालों को धैर्य बँधाया व इस परीक्षा को सफलता से पार किया।