Friday, July 5, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादधर्म का असर

धर्म का असर

- Advertisement -

Amritvani

शिष्य गुरु के पास आकर बोला, गुरुजी हमेशा लोग प्रश्न करते है कि धर्म का असर क्यों नहीं होता। मेरे मन में भी यह प्रश्न चक्कर लगा रहा है। गुरु बोले- वत्स! जाओ, एक घड़ा शराब ले आओ। शिष्य शराब का नाम सुनते ही आवाक रह गया। गुरु और शराब! वह सोचता ही रह गया। गुरु ने कहा सोचते क्या हो? जाओ एक घड़ा शराब ले आओ। वह गया और एक छलाछल भरा शराब का घड़ा ले आया। गुरु के समक्ष रख बोला, ‘आज्ञा का पालन कर लिया।’ गुरु बोले, ‘यह सारी शराब पी लो।’ शिष्य अचंभित, गुरु ने कहा शिष्य! एक बात का ध्यान रखना, पीना पर शीघ्र कुल्ला कर थूक देना, गले के नीचे मत उतारना। शिष्य ने वही किया, शराब मुंह में भरकर तत्काल थूक देता, देखते देखते घड़ा खाली हो गया। आकर कहा, ‘गुरुदेव घड़ा खाली हो गया।’ ‘तुझे नशा आया या नहीं?’ पूछा गुरु ने। गुरुदेव! नशा तो बिल्कुल नहीं आया।

अरे शराब का पूरा घड़ा खाली कर गए और नशा नहीं चढ़ा? ‘गुरुदेव नशा तो तब आता जब शराब गले से नीचे उतरती, गले के नीचे तो एक बूंद भी नहीं गई फिर नशा कैसे चढ़ता।’ बस फिर धर्म को भी उपर उपर से जान लेते हो, गले के नीचे तो उतरता ही नहीं, व्यवहार में आता नहीं तो प्रभाव कैसे पडेगा? पतन सहज ही हो जाता है, उत्थान बड़ा दुष्कर।, दोषयुक्त कार्य सहजता से हो जाता है, किन्तु सत्कर्म के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता होती है। पुरुषार्थ की अपेक्षा होती है। ‘जिस प्रकार वस्त्र सहजता से फट तो सकता है पर वह सहजता से सिल नहीं जाता। बस उसी प्रकार हमारे दैनदिनी आवश्यकताओं में दूषित कर्म का संयोग स्वत: संभव है, अधोपतन सहज ही हो जाता है, लेकिन चरित्र उत्थान व गुण निर्माण के लिए दृढ़ पुरुषार्थ की आवश्यकता रहती है, जो होनी ही चाहिए।

janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments