Friday, July 11, 2025
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भ्रष्टाचार पर कड़े प्रहार की पहल

Nazariya 18

Rituparn Dev 1धन्यवाद या फिर रिश्वत कोई शक नहीं कि भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि उससे मुक्ति की आशा आम आदमी को एक सपने जैसे लगती है। लेकिन बीच-बीच में कोई घटना (यही कहना बेहतर होगा) उम्मीद की लौ बुझने नहीं देती है। लगने लगता है कि कभी न कभी तो इससे निजात मिलेगा? ऐसा ही कुछ भरोसा पंजाब के सेहत मंत्री डॉ. विजय सिंगला की बरखास्तगी और गिरफ्तारी के बाद सींखचों के पीछे पहुंचा देने से बुझी-बुझी सी आस के बीच देश में बरकरार जरूर है। क्या कह सकते हैं कि यह बर्खास्तगी एक ट्रेलर है और पूरी फिल्म अभी बांकी है?

 

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सवाल फिर वही कि आखिर कब तक सिस्टम के रूप में भले ही बेमन से भ्रष्टाचार को स्वीकारा जाता रहेगा? बातें तो खूब होती हैं परंतु धरातल पर सच्चाई अलग दिखती है। ऐसे में अगर कहीं कोई उदाहरण सामने आ जाए तो जबरदस्त राहत देती नई लकीर बनती है।
स्वाभाविक है किसी सरकार की तरफ से कोई कठोर कदम उठाया जाता है तो सबका ध्यान बरबस खिंच जाता है और इस पर बिना लाग लपेट प्रतिक्रियाएं भी स्वाभाविक हैं। भगवन्त मान न केवल देश के दूसरे मुख्यमंत्री बन गए, बल्कि पहले मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी उसी पार्टी से हैं। अब पंजाब की सरहद से बाहर यह मसला पूरे देश और दुनिया में जबरदस्त सुर्खियों में है और लोग आश्चर्य, अविश्वास के साथ बहुत बड़े नैतिक कदम के रूप में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की कमर पर प्रहार भी मान रहे हैं।
फिलहाल तो पंजाब में जैसे हर कहीं सनाका खिंच गया है, लोगों को विश्वास तक नहीं हो रहा है और तो और सत्ताधारी दल के लोग, नुमाइंदें और नौकरशाह बुरी तरह डरे हुए हैं। विरोधियों की गत समझी जा सकती है। बस देखना यही है कि तमाम राजनीतिक नफा-नुकसान के हिसाब-किताब से इतर उठाया गया यह दुस्साहसी कदम 2022 का अकेला उदाहरण बनकर रह जाता है या आगे भी भ्रष्टाचार में गले तक डूबे तक सिस्टम पर जारी रहेगा?
आम आदमी पार्टी शायद ऐसे उदाहरणों को लेकर चर्चाओं में बनी रहती है। हो सकता है उसका शगल हो लेकिन नैतिकता व ईमानदारी के नाम पर उठाया गया यह कदम लोगों को तो खूब भा रहा है। हां, पंजाब की नई-नई सरकार के नए सेहत मंत्री को महज 62 दिनों में ही एक झटके में सबूतों के बिना पर बरखास्त कर गिरफ्तार करवा देना कोई आसान काम नहीं था। बड़ी इच्छा शक्ति और जबरदस्त कशमकश के बाद काफी सोच, समझकर लिया गया फैसला होगा।
लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि देश में शासन-प्रशासन में सुधार और राहत को लेकर आम आदमी की अभी उम्मीदों की लौ बुझी नहीं है। दरअसल भ्रष्टाचार का दीमक स्वतंत्रता के बाद से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में घुन जैसे घुस गया जिसको लाख उपचार के बाद भी नहीं खत्म किया जा सका। देखते ही देखते भ्रष्टाचारी आॅक्टोपस बिना मरे टूट-टूट कर ऐसा फैलता रहा कि स्वतंत्रता के दशक भर भीतर ही संसद में बहस होने लगी। भ्रष्टाचार एक चेन के रूप में गहरे तक घुसपैठ बना चुका है। कहीं न कहीं तमाम विभागों में एक टाईअप जैसे काम करता है।
नेता और नौकरशाह इतने बेखौफ हो गए हैं कि उन्हें न लाज है न भय। अर्थव्यवस्था और हरेक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव डालने वाला रिवाज जो बन गया है। राजनीति, नौकरशाही में के अनगिनत उदाहरण हैं लेकिन न्यायपालिका, मीडिया, सेना, पुलिस भी अछूती नहीं है। विडंबना, मजबूरी या जो भी कुछ कहें, पूरी तरह गैर कानूनी होने के बाद भी रोजाना के चलन में बेखौफ जारी है। शायद ही कोई ऐसा हो जो इससे न गुजरा हो?
भारतीय इतिहास में दूसरी बार एक मुख्यमंत्री ने सीधे अपने मंत्री पर कार्रवाई की। इससे पहले साल 2015 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी अपने एक मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोपों में हटा चुके हैं उन्होंने खाद्य आपूर्ति मंत्री आसिम अहमद खान को बरखास्त कर सीबीआई जांच तक करवा दी। उन पर 6 लाख रुपयों की घूस का आरोप था।
अपनी जीरो टॉलरेन्स पार्टी का हवाला देकर सितंबर 2016 में भी केजरीवाल ने महिला एवं बाल विकास मंत्री संदीप कुमार को एक कथित आपत्तिजनक सीडी उजागर होने के बाद बरखास्त किया था। भ्रष्टाचार विरोधी प्रहरी यानी एंटी करप्शन वॉचडॉग की रिपोर्ट-2021 में भारत दुनिया में 180 भ्रष्टों की सूची में जरूर 86 से खिसक 85 पर आ गया और 40 अंकों के साथ 85वां स्थान मिला।
कहने की जरूरत नहीं कि माजरा क्या है। काश पूरे देश में भ्रष्टाचार की कमर तोड़ने की बातें सिर्फ भाषणों और किताबों में नैतिकता के रूप में बताई और दिखाई न जाकर धरातल पर उतरतीं! इन्हीं डॉ. विजय सिंगला ने 23 मार्च को कहा था कि वे भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे और करप्शन पर जीरो टॉलरेंस का दावा भी ठोंका। लेकिन ठीक 62 दिन बाद 24  मई को भ्रष्टाचार के मामले में धर लिए गए।
तमाम आंकड़ों और सबूतों के बावजूद हर सांस में भ्रष्टाचार की बदबू को स्वीकारने की मजबूरी रिवाज सा बन गई है। ऊंचे पदों पर बैठे लोगों से लेकर दरवाजे पर बैठा चपरासी तक कहीं न कहीं इस कड़ी का हिस्सा होता है। हैरानी की बात है कि तमाम तकनीकी संसाधनों, मुखबिरों, ठोस सबूतों और दावों-प्रतिदावों के बीच भी भ्रष्टाचार तेजी से फल-फूल रहा है?
काश दिन, रात, सोते, जागते भ्रष्टाचार को कोसने वाले नेता, नौकरशाह ही इससे मुक्त हो पाते और सोचते कि यह देश तथा भारत माता के माथे पर कलंक और गद्दारी है? बेशक आम आदमी पार्टी ने बड़ा साहसिक कदम उठाया है और इसके सियासी मायने चाहे जो लगाए जाएं बस इंतजार है तो इतना कि यह सिलसिला रुके नहीं और दूसरों के उदाहरण भी सामने आएं।


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