- नगर स्वास्थ्य अधिकारी की फर्जी रिपोर्ट मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं
- पूर्व पार्षद ने कहा कि शिकायत की थी, आखिर जांच क्यों ठंडे बस्ते में डाली, जानकारी नहीं
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम में न जाने कितने भ्रष्टाचार के मामलें की जांच ठंडे बस्ते में पड़ी है। इसी में पांच वर्ष पूर्व नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में बड़े चूना घोटाले का खुलासा हुआ था। मामले की जांच शुरू हुई तो स्टोर लिपिक से लेकर कई अधिकारियों की गर्दन भी फंस गई। मामले में एफआईआर दर्ज हुई ओर एक स्टोर लिपिक को निलंबित तक कर दिया गया। घोटाला तो छोड़िये क्राइम ब्रांच द्वारा मामले की जांच शुरू की गई
तो जिस नगर स्वास्थ्य अधिकारी की जांच पर मामले के दोषी अधिकारियों को बचाया गया वह जांच रिपोर्ट ही फर्जी निकली। नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने उस जांच रिपोर्ट को भेजे जाने की जानकारी से ही इंकार कर दिया। अब इस मामले की जांच ठंडे बस्ते में पड़ गई है। चर्चा जोर पकड़ रही है कि मामले में अब फिर से सेटिंग होने के बाद इस मामले की जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
नगर निगम में एक बार पांच वर्ष पूर्व हुआ सबसे बड़ा घोटाला चूना घोटाला काफी सुर्खियों में रहा। यह मामला हाल ही में जब ओर सुर्खियों में आया जब जिन अधिकारियों को क्राइम ब्रांच की टीम के द्वारा जिस नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. गजेंद्र सिंह की रिपोर्ट पर बचाया गया और भ्रष्टाचार के बडेÞ मामले में कमिश्नर की जांच रिपोर्ट से अलग हटकर रिपोर्ट भेजी गई।
जांच में वह रिपोर्ट ही फर्जी निकली। जिसमें नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि उनके द्वारा किसी भी अधिकारी को क्लीन चिट देने या कोई इस तरह की रिपोर्ट उनके द्वारा भेजी ही नहीं गई। यह मामला सुर्खियों में आया और मामले में स्टोर लिपिक राजेश, सुरेंद्र समेत तीन स्टोर लिपिकों से भी जवाब तलब किया गया। जिसमें अख्तर नाम के स्टोर लिपिक को निलंबित कर दिया गया था।
सबसे बड़े चूना घोटाले में तत्कालीन सात नगरायुक्त एवं स्टोर लिपिक एवं नगर स्वास्थ्य अधिकारी की गर्दन फंस गई थी। मामले में स्टोर लिपिक अख्तर अली के साथ अन्य अधिकारियों के खिलाफ थाना देहली गेट पर 34/2018 में मुकदमा भी पंजीकृत हुआ। मामले की जांच के दौरान अख्तर अली निलंबित कर दिया गया,
लेकिन अब कुछ दिनों से मामला फिर से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। मामले में बड़ी सेटिंग होने की चर्चा है कि किस तरह से अधिकारियों को बचाया जा सके। तभी तो इतने बड़े भ्रष्टाचार एवं नगर स्वास्थ्य अधिकारी की फर्जी रिपोर्ट क्राइम ब्रांच को भेजे जाने का मामले में कोई ठोस कार्रवाई पांच साल बाद भी नहीं हो सकी है।