स्थिर और शांत मन
काम में पूर्णता की खोज, सर्वश्रेष्ठता की ओर ले जाती है। जो हमे फल की इच्छा से आजाद कर , सफलता को हमारी झोली में डाल देती है। फल का त्यागी ही असली तपस्वी और योगी हो सकता है। क्योंकि उसके कार्य का फल व्यक्तिगत न होकर समाज और दुनिया के लिए होता है। कर्म हमारे अधीन और फल हम से परे कारकों पर निर्भर है। एक त्यागी दूसरों में अच्छे गुणों की खोज कर उन्हें फल रहित और अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।
क्या बुद्धि और मन की अवस्थाओं के बीच कोई गूढ़ संबंध है? क्या सफलता और मन के बीच कोई संबंध है? मन , बुद्धि और सफलता एक त्रिभुज के तीन फलक हैं , जो आपस में गहनता से जुड़े हुए हैं और तीनों ही एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। मन से बुद्धि और बुद्धि से सफलता , सफलता से मन और मन से बुद्धि के क्रम में तीनों घटक चलते हैं। शुभ विचारों से ओत प्रोत, शांत मन तीक्ष्ण बुद्धि का संचालक है और तीक्ष्ण बुद्धि सफलता का एक आधार है। सफलता , मन को और सकून और प्रसन्नता देती है जिससे बुद्धि और तीक्ष्ण हो , और सफलता की सीढ़ियां चढ़ने में मददगार साबित होती है।
अस्थिर और चंचल मन एकाग्रता में बाधा है
महाभारत कालीन , भगवद गीता में , शांत मन को सफलता का प्रमुख कारक माना गया है। व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले कार्य की कुशलता और निपुणता उसके तीक्ष्ण बुद्धि का परिणाम होता है और तीक्ष्ण बुद्धि शांत मन की देन है। हमने स्वयं भी यह जीवन में अनुभव किया है कि यदि मन चंचल, अशांत और अस्थिर हो तो हम चाहे कितने भी बुद्धिमान क्यों न हो, मस्तिष्क एकाग्रता से कार्य करने में असमर्थ रहता है और अस्थिर मन से किए गए कार्य में सफलता नहीं मिल पाती। सांसारिक इच्छाएं , मन को अस्थिर और उलझनों में फसाएं रखती है जिसका परिणाम होता है कर्म से पहले फल की इच्छा।
प्रफुल्लित मन ही देगा सफलता का मूल मंत्र
हजारों वर्ष पूर्व लिखी गई भगवद गीता हमारी वर्तमान महत्त्वाकांक्षी युवा पीढ़ी के लिए एक ऐसे आदर्श को उनके सामने रखती है कि किस प्रकार शांत और प्रफुल्लित मन के साथ सफलता की सीढ़ियां सरलता से चढ़ी जा सकती हैं। आज का युवा कार्य आरंभ करने से पहले उसके फल पर ध्यान केंद्रित करता है यह दृष्टिकोण उसे भौतिक संसार के अधीन कर देता है और सफलता को असीमित करने के स्थान पर सीमित दायरों में बांध देता है।
जो है उसके लिए आभारी होना सीखें
मन में वंचित होने का अहसास प्रेरणा का नाश करता है , प्रेरणा का अभाव निराशा लाता है और निराशा असफलता का कारण बनती है। अत: जो नहीं है उसके लिए वंचित महसूस न करके , जो हमारे पास है या जो ईश्वर ने दिया है उसके लिए हृदय की गहराइयों से आभारी होना , आप में दूसरों को देने के गुण को विकसित कर , एक सात्विक कर्म फल की ओर अग्रसर करने के लिए प्रेरित करता है जो मन को आशावादी बनाती है और सफलता को आपके कदमों में ले आती है।
शौक और प्रेम से किया कार्य स्वार्थ रहित होता है
अपनी क्षमताओं , कौशल और शौक को पहचान , उस क्षेत्र में एक उच्च आदर्श लक्ष्य तय करें। उस आदर्श लक्ष्य के लिए सेवा और त्याग की भावना से प्रयास करें। जब कार्य किसी स्वार्थ के वशीभूत होकर किया जाता है तो कार्य औसत दर्जे की सफलता की ओर ले जाता है। अहम की भावना सफलता की राह में एक बड़ा अवरोधक है। दुनिया के अधिकांश सफल लोगों ने अपने अपने कार्य को लाभ और हानि के तराजू में रखे बिना, अपने शौक के प्रेम में बहकर अपने कार्य को पूर्ण समर्पण के साथ पूरा करते हैं। क्रिकेट में पी टी उषा, सुनील गावस्कर , संचित तेंदुलकर , कपिल देव , फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह आदि आदि इसके जीते जागते उदाहरण हमारे सामने है।
कार्य में पूर्णता ही सर्वश्रेष्ठता लाती है
राजेंद्र कुमार शर्मा