Friday, May 2, 2025
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जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने गिनाईं श्रीहनुमान चालीसा की त्रुटियां, कहा- इसमें करें सुधार 

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनन्दन और स्वागत है। श्रीरामचरितमानस के अद्भुत प्रवक्ता और धर्मशास्त्र के प्रकांड विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने श्रीहनुमान चालीसा की चौपाइयों के शब्दों में कुछ गलतियां बताई हैं। उनका कहना है कि “टाइप करने में जो भी गलती हुई हैं उन्हें ठीक किया जाना चाहिए। श्रीरामचरितमानस में भी मैंने कई बदलाव किए हैं। रामचरितमानस जल्द ही राष्ट्रीय ग्रंथ बनेगा।”

रामभद्राचार्य ने हनुमान चालीसा की यह गलतियां सुधारी…

6वीं चौपाई में लिखा रहता है- शंकर सुवन केसरीनंदन, तेज प्रताप महाजगवंदन

ये सही है- शंकर स्वयं केसरीनंदन, तेज प्रताप महाजगवंदन रामभद्राचार्य के मुताबिक, शंकर सुवन के स्थान पर शंकर स्वयं होना चाहिए। शंकर स्वयं केसरीनंदन यानी भगवान शंकर ही केसरीनंदन हैं। हनुमान, रुद्र यानी भगवान शंकर के 11वें अवतार माने जाते हैं।

27वीं चौपाई में ये लिखा रहता है- सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा

ये सही है- सब पर राम राय सिरसाजा, तिनके काज सकल तुम साजा रामभद्राचार्य कहते हैं कि सब पर राम तपस्वी राजा की जगह सब पर राम राय सिरताजा होना चाहिए। तपस्वी थोड़ी राजा बन सकता है।

32वीं चौपाई में ये लिखा रहता है- राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा

ये सही है- राम रसायन तुम्हरे पासा, सादर हो रघुपति के दासा 38वीं चौपाई

ये लिखा रहता है- जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहिं बंदि महा सुख होई

ये सही है- यह सत बार पाठ कर जोई, छूटहिं बंदि महा सुख होई

हनुमान जी शंकर जी के पुत्र नहीं बल्कि स्वयं उनका रूप हैं

तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने बताया, श्रीहनुमान चालीसा में हम पढ़ते हैं, शंकर सुबन केसरी नंदन। इसमें त्रुटि है, इसकी जगह शंकर स्वयं केसरी नंदन होना चाहिए। कारण, हनुमान जी शंकर जी के पुत्र नहीं, बल्कि स्वयं उनका ही रूप हैं।

रामभद्राचार्य ने कहा, श्रीरामचरित मानस तमाम समस्याओं का एक समाधान है। हमारा प्रयास है कि श्रीरामचरितमानस को राष्ट्रीय ग्रंथ का दर्जा दिया जाए। जल्द ही सभी सांसद मिलकर इसके लिए एक विशेष प्रस्ताव पारित कराएंगे।

उनका कहना था कि अखंड भारत की संकल्पना जल्द सिद्ध होगी। पाक अधिकृत कश्मीर भी जल्द ही दोबारा भारत में शामिल हो जाएगा। देश के युवा प्रतिभावान और सशक्त हैं, जो देश को फिर से विश्वगुरु बनाएंगे।

चित्रकूट धाम में श्रीराम कथा

राम से ही सबके काम है। राम हैं तो आराम है। समाज के सारे काम हैं। राजनीति के राज हैं। राम से बिना कैसा राज। राम जैसे राज के लिए जरूरी है विवेक। विवेक के लिए जरूरी है संत संगत। तभी बनेगा सुसंगत समाज, सधेगी राजनीति। युवा शक्ति अखंड, सशक्त, समृद्ध और बुद्धिमान भारत बनाएगी। युवाओं में सब है, बस चाहिए तो केवल सुसंगत विवेक। चित्रकूट धाम में श्रीराम कथा के दूसरे दिन तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने समाज से लेकर राजनीति तक को अपने विचारों से छुआ।

समाज, राजनीति, युवा नीति को उन्होंने बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई चौपाई के सार से समझाने की कोशिश की। कहा, राम निरंतर युवा है। उनमें विवेक गहराइयों तक है। मगर, उन्हें यह विवेक संतों की संगत में प्राप्त हुआ। इसे देश की युवा शक्ति से जोड़ते हुए कहा, देश का युवा सशक्त व शक्तिशाली है। यदि उनके जीवन में विवेक आ जाए, तो भारत अखंड व विश्वगुरु बन जाएगा।

22 भाषाओं के जानकार हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य

जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्र है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। रामभद्राचार्य एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद, बहुभाषाविद, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु हैं।

वे रामानंद सम्प्रदाय के वर्तमान 4 जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर साल 1988 से आसीन हैं। रामभद्राचार्य चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसीपीठ धार्मिक और सामाजिक सेवा स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक हैं और आजीवन कुलाधिपति हैं।

रामभद्राचार्य की आंखों में रोशनी नहीं है। बताया जाता है कि उनकी आंखों में कोई गलत दवा डाल दी गई थी। वे 22 भाषाएं जैसे संस्कृत, हिंदी, अवधी, मैथिली समेत कई भाषाओं में कवि और रचनाकार हैं। उन्होंने 80 से ज्यादा पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें 4 महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिंदी में) हैं।

उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ जानकारों में गिना जाता है। वे ना तो पढ़ सकते हैं, ना लिख सकते हैं और ना ही ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं। वे केवल सुनकर सीखते हैं और बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं। 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।

कैसे लिखी गई हनुमान चालीसा?

रामचरितमानस के रचियता महाकवि तुलसीदास ने ही हनुमान चालीसा लिखी। उन्होंने किन हालात में इसे लिखा, इसे लेकर कई किंवदंतियां हैं। कहते हैं कि एक बार मुगल सम्राट अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को शाही दरबार बुलाया। तब तुलसीदास की मुलाकात अब्दुल रहीम खान-ए-खाना और टोडरमल से हुई। उन्होंने काफी देर तक उनसे बातचीत की। वे अकबर की तारीफ में कुछ ग्रंथ लिखवाना चाहते थे। तुलसीदास ने मना कर दिया। तब अकबर ने उन्हें कैद कर लिया।

तुलसीदास की रिहाई भी अजीब तरीके से हुई। ये किंवदंती फतेहपुर सीकरी में भी प्रचलित है। कुछ पंडित भी इससे मिलती-जुलती एक और कहानी सुनाते हैं। एक बार बादशाह अकबर ने तुलसीदास को दरबार में बुलाया। उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ। तब तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान श्रीराम सिर्फ भक्तों को ही दर्शन देते हैं।

यह सुनते ही अकबर ने तुलसीदास को जेल में डलवा दिया। किंवदंती के अनुसार, जेल में ही तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी। उसी दौरान फतेहपुर सीकरी के कारागार के आसपास ढेर सारे बंदर आ गए। उन्होंने बड़ा नुकसान किया। तब मंत्रियों की सलाह मानकर बादशाह अकबर ने तुलसीदास को कारागार से मुक्त कर दिया। हिंदी के कुछ अन्य विद्वानों का कहना है कि हनुमान चालीसा किसी और तुलसीदास की कृति है।

हनुमान चालीसा को दुनिया में सबसे ज्यादा बार पढ़ी जाने वाली पुस्तिका माना जाता है। इसमें हनुमान के गुणों और कामों का अवधी में बखान है। चालीसा में 40 चौपाइयों में ये वर्णन है, इसलिए इसे चालीसा कहा गया। इसमें 40 छंद भी हैं।

कहा जाता है कि जब पहली बार तुलसीदास ने इसे पढ़ा किया तो हनुमान जी ने खुद इसे सुना। कथा के अनुसार, जब तुलसीदास ने रामचरितमानस बोलना खत्म किया, तब तक सभी व्यक्ति वहां से जा चुके थे, लेकिन एक बुजुर्ग वहीं बैठा रहा। वो आदमी और कोई नहीं बल्कि खुद भगवान हनुमान थे।

हनुमान चालीसा के बारे में यह भी जानें

हनुमान चालीसा की शुरुआत दो दोहे से होती जिनका पहला शब्द है ‘श्रीगुरु’, इसमें श्री का संदर्भ सीता माता है, जिन्हें हनुमान जी अपना गुरु मानते थे।

हनुमान चालीसा की पहले 10 चौपाई हनुमान की शक्ति और ज्ञान का बखान करते हैं। 11 से 20 तक की चौपाई में भगवान राम के बारे में कहा गया, जिसमें 11 से 15 तक चौपाई लक्ष्मण पर आधारित है। आखिर की चौपाई में तुलसीदास ने हनुमान जी की कृपा के बारे में कहा है।

अंग्रेजी के अलावा भारत की सभी भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। ये गीता प्रेस द्वारा सबसे ज्यादा छापी जाने वाली पुस्तिका है।

सुधार के साथ पढ़ें यह हनुमान चालीसा

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केसरीनंदन। (सही- शंकर स्वयं केसरीनंदन )
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना ।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। (सही सब पर राम राय सिरसाजा)
तिन के काज सकल तुम-साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।। (सही सादर हो रघुपति के दासा)
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। (सही सब पर राम राय सिरसाजा) तिन के काज सकल तुम – साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।। (सही सादर हो रघुपति के दासा)

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। (सही- यह सत बार पाठ कर जोई)
छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।

दोहा पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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