- ये सवाल सियासी हलकों में इन दिनों बेहद चर्चा में
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: अलीगढ़ की संयुक्त परिवर्तन रैली के बाद राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष जयंत चौधरी आखिर कहां गायब हो गए हैं? ये सवाल सियासी हलकों में इन दिनों बेहद चर्चा में है। वो जयंत चौधरी, जिन्होंने किसान ‘महापंचायत’ कर वेस्ट यूपी का राजनीतिक माहौल गरमा दिया था। भाजपा के खिलाफ किसानों को एकजुट करने में उन्हें कामयाबी भी मिली थी।
भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में उनकी अहम् भूमिका भी रही…वो अब, जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर जा रहा है तो पिछले दस दिनों से कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं…आखिर क्यों? यह बड़ा सवाल है। मेरठ के दबथुवा में सपा-रालोद ने संयुक्त बड़ी जनसभा की, जिसके जरिये बड़ा संदेश भी प्रदेश की जनता में गया। इसके बाद अलीगढ़ के इग्लिास में भी सपा-रालोद की बड़ी जनसभा की गई, लेकिन इसके बाद जयंत चौधरी कहां गायब हो गए हैं? उनका कोई अता-पता नहीं चल रहा हैं।
वेस्ट यूपी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरा फोकस कर दिया हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मेरठ के सलावा में बड़ी जनसभा हुई। खेल विश्वविद्यालय की सौगात के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीति के इस पिच पर जबरदस्त बेटिंग की, जिससे विपक्ष में खलबली मची हैं। देवबंद में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जनसभा कर गए। इससे पहले केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की सहारनपुर में जनसभा हो चुकी हैं।
इस तरह से भाजपा ने वेस्ट यूपी पर पूरा फोकस कर दिया हैं। ऐसे समय में रालोद के राष्टÑीय अध्यक्ष जयंत चौधरी कहां गायब हो गए हैं? यह चर्चा आम है। पिछले वर्ष सात दिसंबर को समाजवादी पार्टी के साथ रालोद के गठबंधन का दबथुवा (मेरठ) में ऐलान हुआ। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी पहली बार मंच पर एक साथ आए। गठबंधन को लेकर चल रहे सारे कयासों को जमींदोज कर दिया। अखिलेश-जयंत ने एक दूसरे का हाथ थामा और मिलकर भाजपा को हराने का शंखनाद किया।
यूपी के दो लड़कों के इस साथ पर जो भीड़ जुटी थी, वो न सिर्फ संख्या में ज्यादा थी, बल्कि जोश भी खूब दिखा। इस भीड़ और गठबंधन से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को कड़ी टक्कर के संकेत तो साफ दिखाई पड़ने लगे। इस रैली के बाद से सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चाएं हुए। कहा गया कि रालोद को 38 सीटें समझौते में मिली हैं, लेकिन इसकी औपचारिक घोषणा नहीं हुई। हालांकि अभी अखिलेश ने सीटों की संख्या पर अपने पत्ते नहीं खोले। वैसे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश हमेशा से सपा के लिए कमजोर गढ़ रहा है।
यहां सामाजिक समीकरण ऐसे हैं कि सपा को कभी भी बहुत सफलता नहीं मिली। जाटलैंड में जाटों की पार्टी रालोद को कहा जाता है, इसके बाद ही सपा-रालोद के एक साथ आने से वेस्ट की राजनीति में बड़ा बदलावा देखा जाने लगा। पूर्व राज्यसभा सदस्य हरेन्द्र मलिक और उनके पुत्र पंकज मलिक सपा की साइकिल पर सवार हो चुके हैं।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने एक तरह से हरेन्द्र मलिक और पंकज मलिक को पार्टी में लाकर अपरहैंड भी तैयार किया। सीटों को लेकर अभी सपा-रालोद में मतभेद हैं। यही वजह है कि 23 दिसंबर के बाद सपा-रालोद की कोई संयुक्त रैली भी नहीं की। गठबंधन घोषित हैं, लेकिन सीटों को लेकर अभी कुछ भी फाइनल नहीं हैं।