Monday, May 12, 2025
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कहानी कला को नई ऊंचाई देते हैं नैयर मसूद!

सुधांशु गुप्त
सुधांशु गुप्त

हिंदी कहानी को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है। हिंदी का पाठक कभी भाषा, कभी शिल्प और कभी जादुई परिवेश से प्रभावित होता है। नामवर सिंह जैसे आलोचक भाषा के वैभव को अहमियत देते हैं। कुछ के लिए कहानियां रोमांचक घटनाओं (खासकर प्रेम संचालित) के ही ईर्द गिर्द घूमती हैं। हिंदी का पाठक आमतौर पर यह नहीं समझ पाता कि भाषा, शिल्प के बिना भी जादू पैदा किया जा सकता है। नैयर मसूद की कहानियों को पढ़कर यह बात आसानी से समझी जा सकती है। मसूद साहेब की कहानियों में मृत्यु भी हौले से आती है बिना किसी शोर शराबे के। पाठकों को उस पात्र की मौत का सदमा थोड़ी देर से महसूस होता है। मसूद साहेब अपनी कहानियों में जादू को केंद्रीय उपकरण की तरह नहीं बरतते, बल्कि किसी मुश्किल-सी जगह पर उसके संस्पर्श से अफसानानिगारी की कला को नई ऊंचाइयां देते हैं। हाल ही में उनका कहानी संग्रह-गंजीफा और अन्य कहानियां पढ़ा। यह संग्रह रजा फाउंडेशन ने रजा पुस्तक माला सीरीज के तहत, राजकमल प्रकाशन ने छापा है। उर्दू से हिंदी में इन कहानियों का अनुवाद किया है-महेश वर्मा, नील रंजन वर्मा, नजर अब्बास व मौलाना मशकूर हसन कादरी ने। नैयर मसूद उर्दू और फारसी के विद्वान हैं। वह पहले और एकमात्र शख्स हैं, जिन्होंने काफ्का का उर्दू में अनुवाद किया। ‘ताउस चमन की मैना’ कहानी संग्रह पर नैयर साहब को 2001 उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज गया। ताउस चमन की मैना कहानियों की हिंदी में ही नहीं अन्य भाषाओं में भी चर्चा हुई। हिंदी में उनका यह पहला संग्रह है। लेकिन हिंदी पाठक और लेखक भी संग्रह की इन सात कहानियों से यह सीख सकते हैं कि बिना उपमाओं, रूपकों और कठिन अल्फाजों के किस तरह जादुई दुनिया क्रिएट की जा सकती है। संग्रह की पहली कहानी है गंजीफा। गंजीफा ताश के एक खेल का नाम है। इस कहानी की शुरुआत में लिखा यह वाक्य पढ़ने और सुनने लायक है-दिन को आफताब जिसके पास हो वो बाजी शुरू करता है और आफताब की तुलना में माहताब एक कम कीमत, बल्कि बेकीमत पत्ता होता है। रात के वक़्त आफताब के हकूक माहताब को मिल जाते हैं और आफताब की हैसियत एक मामूली मीर की रह जाती है। इसके बाद गंजीफा कहानी शुरू होती है। यह कभी संपन्न रहे घर की एक बेवा की कहानी है। वह पारंपरिक कढ़ाई करके घर का खर्च चलाती है। बेटा कुछ करना तो चाहता है लेकिन क्या करे यह उसकी समझ नहीं आता। कहानी सहज गति से आगे बढ़ती है। कहानी में कोई ड्रामाई तत्व नहीं है। लेकिन अपनी तफसील में यह कहानी जिÞन्दगी से दूर जाती दिखाई पड़ती है। पुरानी चीजें और नयेपन के असमंजस को यह कहानी बड़े उदास और पार्श्व संगीत के साथ सुनाती है। आपको लगता है कि कहानी में कुछ हो नहीं रहा लेकिन एक ऐसे तिलिस्म में पाठक खुद को गिरफ्तार पाता है कि उससे बाहर नहीं आ पाता।

काफ्का की कहानियों की तरह ही नैयर मसूद साहब की कहानियां पढ़ते हुए भी ऐसा लगता है कि आप समय, यथार्थ और सपनों के बीच झूल रहे हैं। यही उनका कहानी कहने का अंदाज है। और यही उनकी ताकत भी है। उनकी एक कहानी है ‘बादेनुमां’। मुझे यह क्लासिक कहानी लगती है। बादेनुमां घर की छत पर लगा एक उपकरण है, जो हवा का रुख बताता है। परिन्दे और मछली की मिली-जुली शक्ल जैसे इस उपकरण के जरिये नैयर मसूद निरंतर अवमूल्यन की ओर बढ़ते, समाज और टूटते मूल्यों को बेहद सहज ढंग से चित्रित करते हैं। कहानी में कही कोई लाउडनेस नहीं है। लेकिन पाठक को कहानी इस तरह अपनी ‘ग्रिप’ में लेती है, कि छोड़ना मुश्किल हो जाता है। जादुई स्पर्श क्या होता है, यह इस कहानी को पढ़कर समझा जा सकता है। चमत्कार पैदा करने वाली संग्रह की एक और कहानी है ‘मिसकीनों का एहाता’। कहानी का नायक अपने पिता से लड़कर घर से चला जाता है। वह एक एहाते में डिब्बे बनाने का काम करने लगता है। वह काम करता रहता है और 16 बरस बीत जाते हैं। एक दिन उसे याद आता है कि इस संसार से बाहर भी उसकी एक दुनिया है। वह बड़ी सहजता से अपनी दुनिया में लौटता है। यहां उसके पिता और मां का इंतकाल हो चुका है। फिर वह इसी दुनिया में रहने लगता है। यह कहानी मशीनी होते इंसान की तरफ इशारा करती है। किस तरह हम एक काम को करते-करते ही जीवन गुजार देते हैं। काल यहां लगता है नैयर मसूद साहब के इशारे पर चलता है।

‘अल्लाम और बेटा’ भूल जाने और याद रह जाने के तिलिस्म को एक बड़े कालखंड में ऐसे बुनती है कि अंत में पाठक खुद को एक अजनबियत की चुप्पी के बीच पाता है। नैयर मसूद साहब ने कहानियों के विषयों को ऐसी जगह से उठाया है, जो जीवन के भीतर ही हैं। हम सबके पास ही पुस्तकालयों में जाने का अनुभव निश्चित रूप से होगा। नैयर साहब यहां से कहानी बुनते हैं। ‘किताबदार’ ऐसी ही चकित करने वाली कहानी है। किताबदार यानी पुस्तकालय में किताबों की देखरेख करने वाला। इस पुस्कालय के जरिये नैयर साहब एक दुनिया क्रिएट करते हैं। यह दुनिया बाहर की दुनिया से मिलती जुलती भी लगती है और अलग भी। यह दुनिया बदलती हुई दुनिया भी है, जहां मूल्य, संस्कृति करवट ले रहे हैं। सपनों और यथार्थ के बीच आवागमन यहां भी चलता रहता है। पाठक को अंत में भी यही लगता है कि वह एक जादुई दुनिया को देख रहा था। पता नहीं कहानी में जो हुआ वह सपना था या सच था।

स्वप्न, रहस्यमयता और जादुई दुनिया नैयर साहब की कहानियां में लगातार खुलती है।   ‘अजारियन’ भी ऐसी ही कहानी है। यह कहानी एक बच्चे की बीमारी से शुरू होती है। वह बीमार हालत में ही बाहर खेलते बच्चों की आवाजें सुन रहा है और सोच रहा है कि ये कौन सा खेल खेल रहे हैं। उसकी बीमारी बढ़ती जाती है और इसी बीच उसकी बहन की शादी हो जाती है। एक दिन वह पाता है कि समय का एक बड़ा हिस्सा बीत चुका है। अपने चचा को डाक्टर के पास ले जाते समय वह एक महिला को देखता है और कहता है कि उसे वह महिला अपनी बहन जैसी दिखाई पड़ रही थी। चचा कहते हैं कि अब तुम भी ख्वाब देखने लगे। पूरी कहानी किसी ख्वाब की तरह चलती है। एक अन्य कहानी है ‘बड़ा कूड़ाघर’ कहानी में जितनी मान्यूट डिटेलिंग है कि आप चौंक सकते हैं। कूड़ाघर का वर्णन ऐसा है कि आपको अपनी आंखों के सामने ही कूड़ाघर दीखने लगता है। यहां तक कि कूड़ाघर से उठने वाली बदबू भी आम सूंघ सकते हैं। फैंटेसी और यथार्थ के बीच नैयर साहब गजब का संतुलन साधते हैं। ये कहानियां यकीनन कहानी कला को नई ऊंचाइयां देती हैं।


फीचर डेस्क Dainik Janwani

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