- चौधरी अख्तर हसन के बाद पुत्र-पुत्रवधू ने फहराया जीत का परचम, चौधरी मुनव्वर हसन के बाद उनकी पत्नी तबस्सुम हसन दो बार जीतीं, सिर्फ हसन परिवार से तीन व्यक्ति कैराना से जीतकर संसद पहुंचे
राजपाल पारवा |
शामली: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में कैराना के हसन घराने का अपना विशेष महत्व है। इस घराने से पिता-पुत्र और पुत्रवधू अब तक एक ही कैराना लोकसभा सीट से संसद में जनता का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। तो, पौत्र नाहिद हसन कैराना विधानसभा से लगातार तीसरी बार विधायक हैं। चौ. अख्तर हसन के पुत्र मरहूम मुनव्वर हसन के नाम देश के चारों सदनों के प्रतिनिधित्व का अनोखा रिकार्ड है। कैराना लोकसभा तथा विधानसभा का जब-जब इतिहास लिखा जाएगा, तब-तब कैराना का हसन घराना अग्रणी रहेगा।
चबूतरे से देश की सर्वोच्च पंचायत तक
कैराना के मोहल्ला आलदरम्यान में स्व. चौ. अख्तर हसन का परिवार रहता है। चौ. अख्तर हसन मुस्लिम गुर्जर की 84 खाप के जीवन पर्यंत चौधरी रहे। उनके चबूतरे 84 खाप के गांवों के सामाजिक मामलों का सौहार्दपूर्ण माहौल में समाधान किया जाता रहा। एक ओर जहां आज लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग टिकट हासिल करने के लिए करोड़ों रुपये पार्टी फंड में जमा कराते हैं, वहीं 1984 में कांग्रेस का सिंबल उनके घर चलकर आया था। पूर्व विधायक सोमांश प्रकाश दो सिपाहियों की सुरक्षा में सिंबल लेकर आए तो हर तरफ इसके चर्चे हुए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए इन चुनाव में चौ. अख्तर हसन जीतकर देश की सर्वोच्च पंचायत लोकसभा में पहुंचें। इस तरह से उन्होंने चबूतरे से संसद तक का सफर तय किया।
पुत्र के बाद पुत्रवधू और पौत्र ने संभाला मोर्चा
चौधरी अख्तर हसन के पुत्र सांसद मरहूम मुनव्वर हसन का 10 दिसंबर 2008 को पलवल, हरियाणा में सड़क हादसे में असामयिक दुखद निधन हो गया था। उनके निधन के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में कैराना लोकसभा से मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम हसन ने बसपा के टिकट पर भाजपा के बाबू हुकुम सिंह को पराजित किया। 2018 में हुकुम सिंह के बाद उप चुनाव हुए तो सपा-रालोद ने तबस्सुम हसन को टिकट दिया। इस चुनाव में तबस्सुम हसन ने बाबू हुकुम सिंह की पुत्र मृगांका सिंह को पराजित किया। इतना ही नहीं, चौ. अख्तर हसन के पौत्र नाहिद हसन कैराना विधाानसभा सीट से जहां लगातार तीसरी बार सपा से विधायक हैं, वहीं उनकी बहन इकरा हसन वर्तमान में कैराना लोकसभा से सपा के सिंबल पर चुनाव में मैदान में उतरी हैं। इस तरह कैराना का हसन परिवार पश्चिमी उप्र की राजनीति में विशेष स्थान रखता है। यह अकेला परिवार जिसके सदस्यों ने कैराना लोकसभा सीट पर चार जीत दर्ज की है।
बेटे मुनव्वर हसन ने राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया
चौधरी मुनव्वर हसन ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत बाखूबी आगे बढ़ाया। मंडल लहर के बीच 1991 में मुनव्वर हसन ने राजनीति में पर्दापण करते हुए रामलहर के बावजूद कैराना विधानसभा सीट से तीन बार के विधायक कद्दावर विधायक कांग्रेस के बाबू हुकुम सिंह पराजित किया। इस चुनाव में मुनव्वर हसन को 42.34 मत प्राप्त हुए थे। इसके बाद 1993 में फिर से कैराना सीट पर जनता दल प्रत्याशी के रूप में हुकुम सिंह फिर मात दी। इतना ही नहीं, 1996 में कैराना लोकसभा सीट पर भाजपा के उदयवीर सिंह को पराजित किया। लेकिन 1998 में कद्दावर जाट नेता वीरेंद्र वर्मा के सामने वे हार गए। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने उनके लिए राज्यसभा के दरवाजे खोल दिए। जिस पर मुनव्वर हसन 1998 से 2003 के प्रारंभ तक राज्यसभा के सदस्य रहे। वर्ष 2003 में मुलायम सिंह हसन ने मुनव्वर हसन का उप्र विधान परिषद में भेज दिया।
देश के चारों सदनों में प्रतिनिधित्व का अनोखा रिकॉर्ड
मुनव्वर हसन को लोग आज भी याद करते हैं। इसलिए जहां वे कैराना विधानसभा सीट से लगातार दो बार जीतकर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे थे, वहीं कैराना लोकसभा तथा मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से भी विजयी हुए। हालांकि पराजय हिस्से में आई तो उनके राजनीतिक वजूद के चलते मुलायम सिंह यादव ने पहले राज्यसभा और फिर विधान परिषद में भेजा। इस तरह से देश के चारों सदनोंं में जनता का प्रतिनिधित्व करने का उनके नाम अनोखा रिकार्ड आज तक कायम है।