Friday, March 29, 2024
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जब खेड़ीकरमू आंदोलन से फर्श से अर्श तक पहुंची भाकियू

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  • एक मार्च 1987 को खेड़ीकरमू में शहीद हुए थे जयपाल-अकबर
  • बिजली दरों में वृद्धि की वापसी को हुआ था ऐतिहासिक अंदोलन

जनवाणी संवाददाता |

शामली: भारतीय किसान यूनियन के इतिहास के जब-जब स्वर्णिम पन्ने पलटे जाएंगे, तब-तब खेड़ीकरमू बिजलीघर आंदोलन को याद किया जाएगा। इस आंदोलन में भाकियू के दो जांबाज जयपाल सिंह और अकबर अली, न केवल शहीद हुए थे बल्कि उनकी शहादत ने किसानों में नई ऊर्जा का संचार कर दिया था।

इसलिए तत्कालीन प्रदेश की मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह की सरकार को भी भाकियू की ताकत के सामने नतमस्त होकर बिजली दरों में की गई वृद्धि के बाद पांच रुपये प्रति हॉर्स पावर कम करने पड़े थे। इसके बाद भाकियू का संगठन जनपद, तहसील, ब्लॉक और गांव दर गांव फैल गया था। फिर, एक से बढ़कर एक सफल ऐतिहासिक आंदोलन हुए।

वर्ष 1986 में उप्र की सत्ता की बागडोर मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के हाथों में थी। उस वर्ष इस सरकार एक फैसला ऐसा आया जिसने धरतीपुत्र किसान को आंदोलन के लिए विवश कर दिया। दरअसल, प्रदेश सरकार ने बिजली की दरें 22.50 रुपये प्रति हॉर्स पावर से बढ़ाकर 30 रुपये प्रति हॉर्स पावर कर दी थी।

यानी करीब दस रुपये प्रति हॉर्स पावर की वृद्धि को उस समय किसान अदा करने में पूरी तरह असमर्थ था। यह वह समय था जब शामली मुजफ्फरनगर जनपद का हिस्सा हुआ करता था। बढ़ी बिजली दरों के विरोध में 17 जनवरी 1987 को शामली स्थित खेड़ीकरकू बिजलीघर पर भाकियू के नेतृत्व में धरना दिया गया। धरने पर बड़ी संख्या में किसान जुटे।

इसके बाद भाकियू की राजधानी सिसौली में भाकिकू की 17 फरवरी को फिर से मासिक पंचायत हुई। किसानों में बिजली दरें बढ़ने को लेकर पहले से ही गुस्से की आग खेड़ीकरमू बिजलीघर के आंदोलन ने और भड़का दी थी। सो, पंचायत में अबकी बार कुछ ज्यादा ही किसान पहुंचें थे।

पंचायत का मुख्य मुद्दा भी बढ़ी बिजली दरों पर जाकर सिमट गया था। भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ. महेंद्र सिंह टिकैत की मौजूदगी में पंचायत में मौजूद किसानों ने साफ कर दिया था कि 30 रुपये प्रति हॉर्स पावर की बिजली दरें देना उनके बस की बात नहीं है। इस चौ. महेंद्र टिकैत ने मासिक पंचायत में बढ़ी बिजली दरों के विरोध में एक मार्च 1987 को फिर से खेड़ीकरमू बिजलीघर पर प्रदर्शन का ऐलान का बिगुल फूंक दिया।

टिकैत के साथ-साथ किसानों के लिए यह प्रदर्शन जीवन-मरण का प्रश्न बन गया था। प्रदेश सरकार से लेकर स्थानीय प्रशासन की नजरें खेड़ीकरमू बिजलीघर पर प्रस्तावित प्रदर्शन पर थी। इसलिए पुलिस ने शामली की चारों ओर से नाकेबंदी कर दी थी ताकि किसान किसी भी कीमत पर बिजलीघर पर न पहुंच पाएं।

ऐसे में खापों का महत्व और बढ़ गया था। खाप चौधरियों और थांबेदारों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई थी। सिसौली की ओर से बालियान खाप के किसानों को शामली के लिए कूच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी तो मेरठ की आरे से गठवाला खाप को धावा बोलना था। इनके अलावा बत्तीसा खाप को करनाल की ओर से शामली आना था। इनके अलावा निर्वाल खाप को शहर के शामली शहर के अंदर का दायित्व सौंपा गया था। लेकिन इन सबसे पुलिस का खुफिया विभाग अनजान था।

एक मार्च 1987 का सूरज उदय हो चुका था। भाकियू सुप्रीमो चौ. महेंद्र सिंह टिकैत के आह्वान पर किसान एक रात पहले ही खेड़ीकरमू बिजलीघर के प्रदर्शन को सफल बनाने के लिए गोपनीय रणनीति बना चुके थे तो पुलिस-प्रशासन ने शामली में प्रवेश करने वाले हर रास्ते पर बैरिकेडिंग कर दी थी।

इसी बीच सुबह के समय गठवाला खाप के चौधरी बाबा हरिकिशन मलिक और बहावड़ी के थांबेदार सीताराम बहावड़ी लाव-लश्कर के साथ खेड़ीकरमू बिजलीघर के लिए कूच कर चुके थे। किसानों ने काबडौत तथा कुड़ाना के पास कृष्णा नदी के पुलों पर बनाए बैरियर को तहस-नहस कर दिया था।

पुलिस की ललकार उनको बे-असर कर रही थी। लाठीचार्ज के बाद आंसू गैस के गोले किसानों के कदम नहीं डिगा पा रहे थे। इसलिए किसान बैरियर तोड़ते हुए खेड़ीकरमू बिजलीघर के लिए कूच करते हुए बुढ़ाना फाटक तक पहुंच गए। यहां किसानों को खदेड़ने के लिए पुलिस-पीएसी को फायरिंग करनी पड़ी।

जिसमें गांव लिसाढ़ के जयपाल सिंह और गांव ताजपुर सिंभालका के अकबर अली शहीद हो गए। पीएसी का एक जवान भी मारा गया। फिर, किसान खेड़ीकरमू बिजलीघर तक पहुंच गए।

सरकार ने पांच रुपये प्रति हॉर्स पावर किए थे कम

खेडीकरमू बिजलीघर आंदोलन में दो किसानों की शहादत और एक सिपाही के मारे जाने से तब प्रदेश की वीर बहादुर सिंह सरकार घबरा गई थी। लेकिन भाकियू ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए एक अप्रैल 1987 को फिर से शामली में रैली का ऐलान कर दिया।

रैली से पहले ही पर वीर बहादुर सिंह ने रैली से पहले ही प्रति हॉर्स पावर पांच रुपये कम करने की घोषणा की। इस ऐतिहासिक रैली में तीन लाख से भी अधिक किसानों की भीड़ जुटी थी। इसके बाद भाकियू का संगठन जिला, तहसील से गांव दर गांव तक खड़ा हो गया।

फिर, 29 मई 1987 को मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने सिसौली में आने की इच्छा जताई। उनकी यह इच्छा 11 अगस्त 1987 को पूरी हुई। जब वे सिसौली पहुंचे तो उनको मिट्टी के करवा की औक से पानी पिलाया गया।

…तब शहादत और अब आंसू बने अंगारे

गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन की अगुवाई करते समय पिछले माह जब भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत पर गणतंत्र दिवस प्रकरण में मुकदमा दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी का दबाव बढ़ा तो देश के किसानों की नए तीन कृषि कानूनों के चलते हीन दशा देखते हुए बरबस आंसू निकल आए थे। वे मीडिया के सामने फूट-फूटकर रोए थे।

इसके बाद अचानक किसान आंदोलन को एक नई ताकत मिली गई थी। उस समय नए किन-किन लोगों ने टिकैत पर नकारात्मक टिप्पणी की थी लेनिक उनको यह जान लेना चाहिए कि ये वहीं संगठन जिससे जुड़े किसान शहादत देने से भी पीछे नहीं रहे हैं। खेड़ीकरमू के अलावा कई और आंदोलन जिनमें किसानों ने अपने हक के लिए सीने पर गोलियां खार्इं हैं।

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