Saturday, December 28, 2024
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गतांक से आगे  गांठ

Ravivani 13


Sudhanshu Gupta 1फोन करने वाला कासिम था। उसे लगा वह समय आ गया है जब उसे अकबर के इंतकाल की खबर सुननी पड़ेगी। उसने जवाब दिया, मैं ठीक हूं भाई आप कैसे हो…कॉलोनी में सब खैरियत है ना… ?
कासिम ने बुझी हुई आवाज में जवाब दिया, कहां खैरियत है भाई…कुछ भी खैरियत नहीं है…आप तो सब जानते हैं…कितने लोग मारे गए हैं दंगों में…कितने तो यार दोस्त ही थे…।
वह अकबर के बारे में पूछना चाहता था, लेकिन उसमें हिम्मत नहीं हुई। कासिम ने ही फिर कहा, भाई वो अकबर था ना, जो लकड़ी का काम करता था, उसका भी इंतकाल हो गया…दुकान जल गई, घर जल गया…वह दुकान और घर को बचाने के चक्कर में…।
पता नहीं कासिम कब तक बोलता रहा। उसे कुछ सुनाई नहीं दिया।
इस बीच पत्नी कमरे के दो चक्कर काट चुकी थी। शायद वह भी सुन रही हो कि दंगों में लोग मारे गए हैं। शायद उसे भी इस बात का इल्म हो गया हो कि अकबर अब नहीं रहा। लेकिन पत्नी ने कुछ पूछा नहीं। उसने कुछ नहीं बताया। वह अंदर जाकर किचन में अपन काम करने लगी। लेकिन किचन से किसी तरह का शोर नहीं आ रहा था। कोई आवाज नहीं थी। वह अकबर के इंतकाल की खबर से सहमा हुआ था।

तभी पत्नी ने कमरे में प्रवेश किया और पूछा, ह्य क्या हुआ अकबर को?ह्ण
उसने बुझे मन से जवाब दिया, ह्यदंगाइयों ने उसका घर और दुकान जला दिए। वह इन्हें बचाने की कोशिश कर रहा था…लेकिन खुद भी जल गया….उसे बचाया नहीं जा सका…. ह्ण
ह्य पता नहीं दुनिया को क्या हो गया है…ह्ण पत्नी ने कहा और किचन में चली गई। दोनों ही इस स्थिति का सामना नहीं कर पा रहे थे।

क्या हो गया था दुनिया को। क्या हो गया है दुनिया को। क्यों पूरा समाज हिंसक होता जा रहा है। क्यों चारों तरफ मारकाट मची है। क्यों समाज इतना चोटिल हो गया है, जख्मी हो गया है। अगर समाज चोटिल है तो उसके शरीर पर कोई गांठ क्यों नहीं दिखाई देती। समाज के इस तरह चोटिल होने से किसके शरीर पर गांठ बननी चाहिए। कौन है जो समाज का प्रतिनिधित्व करता है। सही अर्थों में तो समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग अब रहे ही नहीं। सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी। सब मर चुके हैं। फिर कौन समाज का प्रतिनिधित्व करेगा। कौन समाज के इस छलनी होते शरीर के घावों के संकेत देगा। किसके शरीर का गांठ यह बताएगी कि समाज को चोट लगी है। घर में बैठना मुश्किल हो गया। वह घर से बाहर निकल आया।

वह पैर घिसटा घिसटा कर ही चल रहा था। लेकिन उसे बुरा नहीं लगा। वह चाहता था कि एक बार फिर से उसका पैर मुड़ जाए। अंगूठे में खून निकल आए। उसकी जांघ में कोई गांठ बन जाए। कम से कम वह तो समाज के चोटिल होने का संकेत दे। अकबर की मौत हो गई। और भी न जाने कितने लोग दंगों की भेंट चढ़ गए। तो कहीं तो इसके संकेत मिलने चाहिए। नियम सबके लिए यकसां होने चाहिए। अगर एक व्यक्ति को चोट लगने पर गांठ बनती है तो समाज के चोटिल होने पर भी गांठ बननी चाहिए। लेकिन यह गांठ किसके शरीर में बनेगी!

वह चल रहा है। कहां जा रहा है पता नहीं। चलने से उसके पैरों से घिसटने की आवाज आ रही है। वह कुछ देर यूंही चलता रहा। बेमकसद। कभी कभी कहीं न पहुंचने के लिए भी चलना चाहिए। अचानक उसने पाया कि वह एक विशालकाय हनुमान मंदिर के पास पहुंच गया है। वह जीवन में कभी मंदिर नहीं गया। फिर अचानक मंदिर के सामने कैसे पहुंच गया। उसका मन हुआ कि मंदिर में चल कर देखा जाए। क्या पता किसी देवता की आंखों से समाज की चोट दिखाई दे रही हो। ठीक उसी तरह जिस तरह वर्जिन मैरी की आंखों से कभी कभी खून टपकता है। वह खून भी तो इसी बात का प्रतीक होना चाहिए कि समाज चोटिल है। अर्जेंटीना के एक चर्च में कुछ लोगों ने वर्जिन मैरी की प्रतिमा से खून टपकने की घटना का दावा किया था। चर्च के पादरी और अन्य स्थानीय लोगों ने मूर्ति की आंखों से लाल रंग का तरल पदार्थ गिरते हुए देखा था। इस चर्च की देखभाल करने वाले का यह भी दावा था कि उसने वर्जिन मैरी को सपने में देखा था। हो सकता है यह सब झूठ ही हो। लेकिन इसे प्रतीक तो मानना ही चाहिए। उनकी आंखों से खून टपकने का सीधा सा अर्थ है कि समाज किसी बड़े दुख से गुजर रहा है। किसी बड़ी चोट से। हो सकता है भारत के चर्च में भी ऐसा कभी हुआ हो। वह कभी चर्च नहीं गया।

उसने पाया कि वह मंदिर के विशाल गेट के सामने खड़ा है। लोहे का गेट है। उसके एक तरफ से श्रद्धालुओं के जाने का रास्ता बना हुआ है। वह गेट के भीतर घुस गया। गेट के दायीं तरफ आपको चप्पल उतारनी पड़ती है। भगवान के दर्शन के बाद आप अपनी चप्पल वापस ले सकते हैं। उसने चप्पलें उतार कर दे दी हैं। कुछ दूर चलने पर ही आगे दायीं तरफ शिर्डी का साईं बाबा की मूर्ति लगी है। यह एकदम नई मूर्ति है। उसने सुना था कि इस मंदिर में सारे देवी देवता मौजूद हैं। शिर्डी के साईं बाबा की मूर्ति नई लग रही है। उसने शिर्डी के साईं बाब की तरफ देखा है। शिर्डी के साईं बाबा की प्रतिमा शांत भाव से बैठी है। वह किसी आसन पर विराजमान हैं। उन्होंने अपना दायां हाथ घुटने पर रखा था। हथेली पर ओम का निशान बना हुआ था। वह एकदम निरपेक्ष भाव से बैठे थे। मानो उन्हें समाज और संसार से कोई लेना देना नहीं हो। समाज में जो हो रहा था उसका कोई चित्र उनकी आंखों में नहीं था, खून बहने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

वह शिर्डी के साईं बाबा को छोड़कर आगे बढ़ गया। कुछ कदम चलने पर उसने देखा सामने ही एक लंबा सा मंच बना हुआ है। वह भी इस मंच पर चढ़ गया। मंच पर ही भक्त पूरी श्रद्धा से नीचे बैठे हुए थे। उसने सामने की ओर देखा। क्रमश: सभी देवी देवताओं की मूर्तियां वहां विराजमान थीं। भगवान शिव, भगवान राम-सीता, भगवान कृष्ण, हनुमान जी…सब के चेहरों पर दिव्य मुस्कराहट है…कहीं ऐसा नहीं लगता कि समाज में जो कुछ हो रहा है उसका इन पर कोई असर हो रहा। आंखों से खून टपकने की बात तो छोड़ दीजिए, इन सबकी आंखों में स्थायी गौरव और ईश्वर होने का ही भाव है। सभी भक्त इन सबके सामने हाथ जोड़ते, होंठों में कुछ बुदबुदाते और फिर इन प्रतिमाओं के सामने बिछी दरी पर बैठ जाते। उसने न किसी प्रतिमा के सामने हाथ जोड़े न हो होंठों में कुछ बुदबुदाया। बस उसके जहन में एक ही बात आ रही थी, क्या कभी इनकी आंखों से खून टपक सकता है। क्या कभी ये देवता भी समाज की चोटों को अपनी भाव भंगिमाओं से, अपनी आंखों से प्रदर्शित करेंगे। क्या कभी यहां आने वाले श्रद्धालु इनसे समाज की चोटों को ठीक करने की मांग करेंगे, क्या कभी इन के शरीर में कोई गांठ निकलेगी। इस आसक्त वातावरण में वह ज्यादा देर नहीं रुक पाया। वह समझ गया कि इन प्रतिमाओं से किसी तरह की उम्मीद रखना व्यर्थ है। वह लौट आया।

बिना खाना खाए ही वह बिस्तरे पर लेट गया। पत्नी ने भी खाने के लिए नहीं कहा। हो सकता है उसने भी न खाया हो। अबकर की मौता का उसे भी दुख होगा। रात को पता नहीं उस कब तक नींद नहीं आई। उसके मन मस्तिष्क में सभी देवी देवताओं की प्रतिमाएं घूमती रहीं उसे यह भी याद आया, एक बार वह मुंबई गया था। काफी साल पहले। मुंबई में उसके पास रहने की कोई जगह नहीं थी। उसके एक दोस्त ने बड़ी मुश्किल से कुर्ला में ही एक कमरे का जुगाड़ किया था। यूं तो कमरा ठीक था, लेकिन उसमें एक ही दिक्कत थी। उसमें सभी देवी देवताओं की मूर्तियां रखी हुई थीं। वर्जिन मैरी भी यहां थी। लेकिन एक मूर्ति को देखकर तो उसे बहुत ज्यादा डर लगा था। उसके कई हाथ थे, जीभ बाहर निकली हुई थी। पूरी रात उसे यही लगता था कि ये सारी मूर्तियां अचानक जीवित हो उठेंगी। इस वजह से वह पूरी रात नहीं सो पाता। लेकिन मूर्तियां कभी जीवित नहीं हुईं। जैसी वे रात में होतीं वैसी ही सुबह मिलतीं। पता नहीं अब वह कमरा कैसा होगा। क्या पता अब भी उसमें सारी मूर्तियां रखी हों। हो सकता है, उनमें से किसी आंखों से खून टपकने लगा हो या यह भी हा सकता है कि समाज की मौजूदा स्थितियों को देखते हुए किसी के शरीर में कोई गांठ उग आई हो…जांघ पर या बगलों में या किसी और जगह।

उसने अपनी जांघों पर हाथ लगाकार गांठ तलाश करने की कोशिश की है, लेकिन कहीं कुछ नहीं था। उसने दुख में आंखें बंद कर लीं। अचानक उसे लगा वह मुंबई के कुर्ला वाले कमरे पर पहुंच गया है। सारे देवी देवता अपनी-अपनी जगह छोड़कर उसकी ओर बढ़ रहे हैं…काली की जीभ खून से तर है..वर्जिन मैरी की आंखों से खून टपक रहा है…कृष्ण दायें हाथ की तर्जनी पर चक्र उठाए हुए हैं…हनुमान ने एक बड़ा सा पहाड़ उठा रखा है..भगवान राम सबको आशीर्वाद दे रहे हैं…धीरे धीरे सब उसकी ओर बढ़ रहे हैं…उसे लग रहा है, उसका दम घुट जाएगा…वह हिलने की कोशिश करता है…लेकिन वह हिलडुल नहीं पा रहा है…वह चीखना चाहता है लेकिन उसकी आवाज गायब हो चुकी है…वह कुछ भी बोल नहीं सकता…अचानक सारी मूर्तियां उसे चारों तरफ से घेर लेती हैं…सब उसके ऊपर झुक आई हैं…वह अपने दायें हाथ को हटाकर तेजी से उन सबको रोकने की कोशिश करता है…अचानक उसकी नींद खुल जाती है…उसे अहसास होता है कि उसका दायां हाथ दिल के पास रखा था….जब भी ऐसा होता है, उसे कोई न कोई भयानक सपना जरूर दिखता है…उसने देखा कि सूर्य की रोशनी दरवाजों से होती हुई भीतर आ रही है…भोर का समय है…कहते हैं भोर का सपना सच होता है…तो क्या अब हमारे देवी देवताओं की आंखों से भी खून टपकेगा…या उनके शरीर भी समाज पर आए इस संकट का कोई संकेत देंगे…क्या उनकी जांघों में भी कोई गांठ बनने वाली है…क्या उनकी बगल में कोई गांठ बनेगी…। कौन जाने…।

लेटे लेटे ही अचानक उसका दायां हाथ जांघ पर गया है। वहां कुछ दर्द सा हो रहा है। उसने अंगूठा लगाकर देखा, वहां एक गांठ सी उभर आई है। उसे अच्छा लगा। फिर उसने बायें हाथ से दायीं जांघ को छुआ। वहां भी उसे दर्द महसूस हुआ। उसने पाया कि वहां भी एक गांठ उग आई है। उसने अपनी बगलों में हाथ लगाकर देखा, वहां भी गांठें उग गई थीं। तो इस तरह हर व्यक्ति के शरीर में गांठें उगेंगी…। यही गांठें बताएंगी कि समाज चोटिल हो चुका है। लेकिन उसके पास अन्य लोगों के शरीरों पर इन गांठों को देखने का कोई जरिया नहीं था!
समाप्त


janwani address 83

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