जनवाणी संवाददाता |
शामली: बालियान खाप के चौधरी और भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ. नरेश टिकैत ने भाईचारा मिलन सम्मेलन में कहा कि रस्म पगड़ी के दिन होने वाले ब्रह्मभोज पर गुर्जर समाज से सीख लेने की जरूरत है, जहां कोई एक कप चाय तक नहीं पीता। एक नियत समय पर पगड़ी बंधती और लोग श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
रविवार को क्षेत्र के गांव गोहरपुर में भाईचारा मिलन सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दौरान भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने कहा कि मृत्यु के बाद रस्म तेरहवीं पर होने वाले ब्रह्मभोज को अनुचित बताते हुए कहा कि आज कल ऐसी प्रवृत्ति समाज में हो चली है कि किसी बुजुर्ग के देहांत पर शादियों की तरह खाना बनवाते हैं।
कई तरह के रस्सगुल्ले और मिठाई तक बनवाई जाती हैं। इससे ऐसा लगता है कि जैसे परिवार मृतक व्यक्ति से अपना पीछा छुटवाने के लिए बहुत खुशी है। ये सब उचित नहीं है। दूसरी ओर, गुर्जर समाज से जाट समाज को सीख लेनी चाहिए, उनके यहां ब्रह्मभोज तो छोड़िए कोई एक कप चाय तक नहीं पीता।
उसके बाद दोपहर ठीक एक बजे रस्म पगड़ी का आयोजन किया जाता है। न एक मिनट आगे, न एक मिनट पीछे लेकिन हमारे यहां तो लंबा चौड़ा भाषण चलता है। उन्होंने कहा कि आप सभी अच्छे और जिम्मेदार हैं, कोई आदमी बुरा नहीं होता, बुरे उसके विचार होते हैं।
बालियान खाप के चौधरी नरेश टिकैत ने कहा कि भाईचारा सम्मेलन का उद्देश्य भी कुरीतियों को रोकना है। समाज में आपसी झगड़े न हो और भाईचारा बना रहे। समाज को एक अच्छी दिशा दें।
भाईचारा सम्मेलन की अध्यक्षता ब्रह्मसिंह और संचालन संजीव राठी ने किया। इस अवसर कालखंडे खाप के चौधरी बाबा संजय कालखंडे, थांबेदार बाबा श्याम सिंह समेत बड़ी संख्या में क्षेत्र के लोग उपस्थित रहे।
तीन कृषि बिल पर लिखित में चाहिए: नरेश
शामली: भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने सम्मेलन के बाद पत्रकारों से बातचीत की। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा तीन कृषि बिल वापसी की घोषणा पर कहा कि सालों का आंदोलन प्रधानमंत्री के कहने भर से खत्म थोड़ा हो रहा है। लिखित में भी चाहिए ताकि साल से आंदोलन में हिस्सा लेने वाले समाज और किसान संगठनों को यकीन हो सके।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने 2014 में गन्ने का रेट 450 देने के लिए कहा था जबकि अब तक सिर्फ 350 रुपये का भाव हुआ है। इसलिए इनकी बात पर यकीन नहीं किया जा सकता। टिकैत ने कहा कि हम भी हिंसा में विश्वास नहीं करते।
राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान भी हमारा ही नुकसान है। हमें तरह-तरह के शब्दों से नवाजा जा रहा है, वह महसूस तो होता है लेकिन उसका भी गिला-शिकवा नहीं है। तीन कृषि बिल पर सिर्फ संयुक्त किसान मोर्चा को ही अधिकार है।