सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक अपनी यात्रा के दौरान एक ऐसे राजा के राज्य में अपने शिष्यों के साथ पहुंचे, जो बहुत अत्याचारी था। अपनी ही प्रजा की धन संपत्ति लूट-लूट कर अपना खजाना भरता रहता था । प्रजा राजा के अत्याचारों से त्रस्त थी। राजा को जब पता चला कि गुरु नानक देव जी उसके राज्य में आएं हुए हैं तो वह राजा गुरु नानक जी से मिलने पहुंचा।
गुरु नानक जी के शिष्य पहले ही राजा के बुरे और क्रूर व्यवहार की जानकारी गुरु नानक देव जी को दे चुके थे। गुरु नानक जी ने राजा से कहा, मुझे आपकी मदद की जरूरत है। मेरा एक कीमती पत्थर आप अपने पास गिरवी रख लें। यह पत्थर मुझे बहुत प्रिय है। इसका विशेष ध्यान रखना होगा। राजा ने उत्तर दिया, मुझे कोई एतराज नहीं, मैं इसे अपने पास रख लेता हूं, पर आप इसे वापिस कैसे लेंगे? गुरुनानक ने जवाब दिया कि जब हमारी मृत्यु हो जाएगी और हम मृत्यु के बाद मिलेंगे तब ये पत्थर मुझे वापस कर देना।
राजा हैरान हो गया, उसने कहा, ये कैसे संभव है? मृत्यु के बाद कोई भी अपने साथ कुछ कैसे ले जा सकता है? गुरुनानक ने कहा, जब आप ये बात जानते हैं तो आप प्रजा का धन लूटकर अपना खजाना क्यों भर रहे हैं? राजा को गुरुनानक की बात समझ आ गई। उसने क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि अब से वह अपनी प्रजा पर अत्याचार नहीं करेगा। इसके बाद से राजा ने अपने खजाने का उपयोग प्रजा की भलाई में खर्च करना शुरू कर दिया।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा